बुद्धिजीवी लोग भी मान रहे गुरु जी के ये वचन, आज से कई वर्ष पहले ही कर दिए थे वचन

Homosexuality

समलैंगिक संबंध राक्षसों की प्रथा, हमारे शास्त्रों में है अपराध: साजी नारायणन

आरएसएस के बड़े नेता हैं साजी नारायणन, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी जताई आपत्ति

नई दिल्ली (एजेंसी)। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) (Homosexuality) के एक वरिष्ठ नेता ने समलैंगिक संबंधों को राक्षसों से जोड़ते हुए इसे अप्राकृतिक बताया है। उनका कहना है कि समलैंगिक संबंध भारतीय शास्त्रों में अपराध हैं और यह राक्षसों की प्रथा है। इतना ही नहीं समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले ऐतिहासिक 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की भी आरएसएस नेता ने आलोचना की है।

उन्होंने समलैंगिकता को अप्राकृतिक बताया है। आरएसएस (Homosexuality)  से संबंधित मैगजीन द आॅर्गेनाइजर में छपे एक लेख में संघ की श्रमिक शाखा, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के पूर्व अध्यक्ष सीके साजी नारायणन ने दावा किया कि भारत के धर्मशास्त्र इस तरह के यौन व्यवहार को अपराध मानते हैं। नारायणन ने अपने आर्टिकल में कहा कि रामायण में समलैंगिकता का उल्लेख एक प्रथा के रूप में किया गया है, जिसे हनुमान जी ने लंका में देखा था। उन्होंने कहा कि धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र में समलैंगिकता को दंडित किया गया है।

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समलैंगिक पर पहले ही कर दिए थे वचन

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ये जो समलैंगिकता की बीमारी चली है जिसे लड़को में गे और लड़कियों में लेस्बियन कहा जाता है। बड़ी ही भयानक बीमारी है। इसके रिजल्ट आने वाले टाइम में भयानक जरूर होंगे। क्योंकि कुदरत के उलट जब-जब भी इन्सान चला है तब-तब ही उसे लेने के देने पड़े ही पड़े हैं। पशुओं से रिलेशन बनाया तो एड्स बीमारी ने आके घेर लिया, काला पीलिया आके चिपट गया। अब यें लेस्बियन या गे जो है जैसे-जैसे ये बीमारी बढ़ती जा रही है यानि आदमी का आदमी से रिश्ता, औरत का औरत से रिश्ता क्योंकि कइयों को अनपढ़ बेचारे पता नहीं होता ये गे या लेस्बियन क्या है। तो ये जो रिश्ता बढ़ता जाए जो कामुकता बढ़ती जा रही है ये भी ऐसी बीमारियां सामने लाएंगी जो बताते हुए शर्म आएगी पर छुपाई नहीं जा पाएगी। एड्स को काई छुपा थोड़ा नहीं पाता है। कितनी भयानक बीमारी है। ऐसी बीमारियों को बुला रहे हैं।

दिखने में भक्त नजर आते हैं। हाव भाव सारे भक्तों वाले है और कर्म सारे राक्षसों वाले हैं। कहां से घर परिवार में बाधा हो, कहां से खुद को भगवान के नूरी स्वरूप तो दूर साधारण स्वरूप के दर्शन कहां से हों। तो ये बीमारी भी हमारे समाज को खोखला कर रही है। कामवासना की आंधी है। इन्सान इतना गिर गया है पशु भी तब विषय विकार में पड़ते हैं जब उन्होंने बच्चा, औलाद लेना होता है। कुदरत के नियम को पूरा करना होता है। आदमी पशु से गिर गया है। इसको कोई लेना देना नहीं इन चीजों से। तो भाई ये एक बीमारी महाबीमारी बनती जा रही है।

कहीं भी देख लो, किधर भी देख लो इस बीमारी से जब हम निगाह घुमाते हैं कोई-कोई बचा नजर आता है। वो भी जिसके अच्छे संस्कार हैं। सतगुरु, अल्लाह मालिक से बेहद प्यार है। वरना तो सतगुरु के वचनों की धज्जियां उड़ाते हुए ऐसे कर्म करते नजर आते हैं और पल-पल उनको भोगना होगा। अगर वो ना चेते, अगर वो ना जागे, तो फिर ऐसे चिल्लाएंगे कि दुनिया जागेगी उनको पता चलेगा कि ये बीमारी के घर हैं।

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