आंदोलनों की भेंंट चढ़ती सार्वजनिक संपत्ति
आखिर देश का आम नागरिक कब तक आंदोलनों के आगे लाचार होता रहेगा। भले ही बात कितनी भी गंभीर हो पर हिंसा उसका जबाव नहीं हो सकता। हांलाकि 2017 के सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पहुंचाने के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो साफ हो जाता है