देशी मजदूरों पर डॉलर संस्कृति का चलता बुलडोजर
देशी मजदूर हों या फिर विदेशी भारतीय मजदूर, इनके बीच फर्क करना सही नहीं है। खासकर देशी मजदूरों के साथ इस तरह का व्यवहार चिंताजनक है। देशी मजदूर सही में हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ हैं। अगर देशी मजदूर पूरी तरह खेती व्यवस्था पर चल निकले तो फिर देश की अर्थव्यवस्था का बुरा हाल हो सकता है।
हिन्दू शरणार्थियों के नरकीय जीवन के दोषी कौन?
हम लगभग 73 साल इन भेड़ियों के बीच कैसे रहे हैं, हम किस प्रकार के उत्पीड़न झेले हैं, हम किस प्रकार से प्रताड़ित हुए हैं, हमारे लाखों भाई-बहनों को किस प्रकार से अपने धर्म से विमुख होने के लिए मजबूर किया गया, अपने धर्म से विमुख होने से इनकार करने पर किस तरह से अंग-भंग किया गया, अस्मिता लूटी गयी


























