सूदखोरी में टूटती जीवन की डोर
सूदखोरों के दबाव में बिजली के तार को छूकर मौत को गले लगाने का मामला भले ही जयपुर का हो पर कमोबेस यह उदाहरण देश के किसी भी कोने में देखा जा सकता है। जयपुर में एशिया की सबसे बड़ी कालोनी मानसरोवर में इसी 29 मई को मुहाना के 43 वर्षीय बाबू लाल यादव ने अपने...
शिक्षा कानून का एक दशक: आधी हकीकत आधा फसाना
आज भी बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूल बुनियादी ढांचागत सुविधाओं, जरूरी संसाधन, शिक्षा के लिये माहौल और शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति द्वारा फरवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में संसद में पेश की गयी रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर चिंता जाहिर की गई है।
बाल अधिकारों से खिलवाड़
यह चिंताजनक है कि देश में सख्त बाल कानून की मौजूदगी के बावजूद भी बाल अधिकारों का उलंघन लगातार बढता जा़ रहा है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक विगत वर्षों में बाल अधिकारों के उलंघन की 4,202 शिकायतें दर्ज की गयी हैं। इसमें से 1,237 शिकायत...
ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था विकसित करने का समय
क्यों न शहरीकरण और औद्योगिकिकरण पर सिल-सिलेबार विराम लगाते हुए ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था को फिर से विकसित करने के उपाय किए जाएं ? इससे गांव से जो शहरों की ओर पलायन होता है और फिर विपरीत परिस्थितियों में आज की तरह जो पलायन हो रहा है, इन कठिन हालातों का देश को सामना नहीं करना पड़े।
घुसपैठिए रोहिंग्याओं की घर वापसी जरूरी
असम में अवैध रूप से रह रहे सात रोहिंग्या घुसपैठियों की वापसी का सिलसिला सरकार का स्वागत योग्य कदम है। सात रोहिंग्याओं को प्रत्यर्पित कर म्यांमार भेजा जाएगा। हालांकि यह संख्या बहुत कम है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार ही 14,000 रोह...
प्रणव दा के नाम पर सर्वसम्मति क्यों जरूरी?
आगामी 17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवारों को लेकर चल रही राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गयी हैं। सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है तो कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने संकेत दिए हैं कि अगर सरकार को स्वीकार हो...
देशी मजदूरों पर डॉलर संस्कृति का चलता बुलडोजर
देशी मजदूर हों या फिर विदेशी भारतीय मजदूर, इनके बीच फर्क करना सही नहीं है। खासकर देशी मजदूरों के साथ इस तरह का व्यवहार चिंताजनक है। देशी मजदूर सही में हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ हैं। अगर देशी मजदूर पूरी तरह खेती व्यवस्था पर चल निकले तो फिर देश की अर्थव्यवस्था का बुरा हाल हो सकता है।
फर्जी मतदाता मामले में मिला चुनाव आयोग को नोटिस
मध्यप्रदेश और राजस्थान की मतदाता सूची में फर्जी मतदाताओं के नाम होने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की शीर्ष अदालत ने हाल ही में चुनाव आयोग को एक नोटिस जारी किया है। जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने केन्द्रीय चुनाव आयोग के साथ-साथ...
कश्मीर में शान्ति बहाली ही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि
कारगिल विजय दिवस विशेष | Kargil Victory Day Special
26 जुलाई 2017, 18वां कारगिल विजय दिवस, वो विजय दिवस जिसका मूल्य वीरों के रक्त से चुकाया गया! वो दिवस, जिसमें देश के हर नागरिक की आंखें विजय की खुशी से अधिक हमारे सैनिकों की शहादत के लिए सम्मान में ...
अर्थ व आहार के संकट से देश को किसान ने बचाया
पिछले तीन माह से चल रहे कोरोना संकट ने अब तय कर दिया है कि आर्थिक उदारीकरण अर्थात पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की पोल खुल गई है और देश आर्थिक व भोजन के संकट से मुक्त है तो उसमें केवल खेती-किसानी का सबसे बड़ा योगदान रहा है।
विपक्षी एकता का नाटक और कुमारस्वामी के आंसू
पिछले दिनों कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी एक सभा में रो पड़े। यह भी माना जा सकता है कि गठबंधन सरकार का प्रमुख बनने के बाद की परिस्थितियों ने उनके आंसू निकाल दिए। कुमारस्वामी के आंसू जेडीएस और कांग्रेस के खट्टे और तल्ख रिश्तों की पोल तो उजागर करते...
आखिर बीच चौराहे इतना जानलेवा गुस्सा क्यों?
जानलेवा मारपीट होती जा रही है आम
दिसबंर के पहले पखवाड़े की नई दिल्ली के पांडव नगर और मयूर विहार में दो युवकों की रोडरेज (Why The Intersection Between This Is So Fierce Anger?) में हत्या अब कोई नई बात नहीं रही है। यह कोई अकेली दिल्ली की घटना भी नहीं ह...
चीन से निकले मौत के वायरस के कृत्रिम होने की शंकाएं?
फ्रांस के नोबेल पुरुस्कार विजेता वैज्ञानिक लूक मांटेग्नर ने इस दावे का समर्थन किया है कि कोविड-19 महामारी फैलाने वाले नोवल कोरोना वायरस की उत्पत्ति प्रयोगशाला में की गई है और यह मानव निर्मित है। उनका यह भी दावा है कि एड्स बीमारी को फैलाने वाले एचआइवी वायरस की वैक्सीन (टीका) बनाने की कोशिश में यह अधिक संक्रामक और घातक वायरस तैयार किया गया है।
भारत में आदिवासी उपेक्षित क्यों हैं
अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस सिर्फ उत्सव मनाने के लिए नहीं, बल्कि आदिवासी अस्तित्व, संघर्ष, हक-अधिकारों और इतिहास को याद करने के साथ-साथ जिम्मेदारियों और कत्र्तव्यों की समीक्षा करने का दिन भी है। आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने और उनकी समस्याओं का निर...
आदिवासियों की अस्मिता है जंगल
जंगल जो आदिवासियों की अस्मिता है। जहां उनकी जिन्दगी की गुजर-बसर होती है। उस जंगल और जमीन से (Tribal is the Asmita forest) लाखों आदिवासियों को बेदखल होना पड़ेगा। वजह, आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने ‘जंगल का अधिकार’ कानून का मोदी सरकार अदालत...