माल्या के प्रत्यर्पण से बैंक लुटेरों में बढ़ेगा खौफ

The extradition of mallya will increase fear in bank robbers
भगोड़े व्यापारी और लिकर किंग के नाम से कुख्यात विजय माल्या का प्रत्यर्पण की उम्मीद बढ़ गयी है। प्रत्यर्पण के खिलाफ विजय माल्या लगातार लड़ाई हार रहे हैं। ब्रिटेन के हाईकोर्ट में भी विजय माल्या लड़ाई हार चुके हें। ब्रिटेन का हाईकोर्ट ने प्रत्यर्पण के पक्ष में फैसला दिया है। अब 14 दिनों के अंदर उसे ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करनी होगी। अगर अपील दायर नहीं की तो फिर प्रत्यर्पण पर फैसला लेने का अधिकार ब्रिटेन की गृहमंत्री के पास होगा।
ब्रिटेन की सरकार भी इस भगोड़े अपराधी को क्यों पालना चाहेगी? ब्रिटेन की सरकार को विजय माल्या को बचा कर क्या हासिल होने वाला है। इसलिए उम्मीद होनी चाहिए कि ब्रिटेन की सरकार भी प्रत्यर्पण के पक्ष में ही फैसला सुनायेगी। अगर विजय माल्या सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेगा तो भी उसे शायद ही कोई सफलता मिलेगी? दुनिया के अंदर में अब आर्थिक भगोड़ों और अपराधियों को मानवाधिकार के नाम पर कोई संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। अंतर्राष्टीय कानून और परमपराएं ऐसी विकसित होनी चाहिए जिससे भगोड़े और अपराधी संरक्षण न पायें। अगर ऐसी व्यवस्था होती तो विजय माल्या भारतीय बैंकों के कई हजारों करोड़ लेकर फरार नहीं होता और न ही ब्रिटेन जैसे देश में ऐसो-अराम से रह पाता। विजय माल्या जैसे लोगों को पंचतारा जीवन शैली के सहचर बनने के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए। विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधियों की जगह सिर्फ और सिर्फ जेल होनी चाहिए।
विजय माल्या के खिलाफ भारतीय एजेंसियों की मेहनत की प्रशंसा होनी चाहिए। नरेन्द्र मोदी सरकार का भी यह ईमानदार प्रयास है। विजय माल्या कांग्रेस राज के कार्यकाल का आर्थिक अपराधी है पर वह नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत से ब्रिटेन भागा था। विजय माल्या के देश छोड़ने पर कैसी राजनीति भारत में हुई थी यह भी उल्लेखनीय है। विजय माल्या को आसान कर्ज दिलाने की दोषी कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी पर विजय माल्या को भगाने के आरोप लगाये थे। कांग्रेस तब कहती थी कि नरेन्द्र मोदी उद्योगपतियों और कारपोरेट घराने की हितैषी हैं, उद्योगपति और कारपोरेट घराने देश को लूट कर विदेश भाग रहे हैं। कांग्रेस ही क्यों बल्कि नरेन्द्र मोदी विरोधी सभी तबकों ने इस पर हायतौबा मचाने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। जब विजच माल्या देश छोड़कर भागा था तब उसके खिलाफ बैंकों की कार्रवाई पहले चरण में थी। इसी कारण विजय माल्या को भागने का अवसर मिला था।
जबकि नरेन्द्र मोदी सरकार पहले ही दिन से यह कह रही थी कि विजय माल्या को पकड़ कर जरूर लाया जायेगा और उसके अपराध की उसे सजा जरूर दिलायी जायेगी। इसके लिए जरूरी कानूनी कार्यवाहियां जरूर होंगी। कानूनी कार्यवाहियां पूरी किये बिना विजय माल्या जैसे कुख्यात आर्थिक अपराधियों की गर्दन नापना मुश्किल होता है। सीबीआई और अन्य जांच एजेसियों को जांच करने और उसके अपराध को साबित करना कोई आसान काम नहीं था। एक-एक पहलु को कानूनी कसौटी पर कसना होता है। कर्ज वसूली के तरीके भी नियम कानून से बंधे होते हैं। सबसे बड़ी बात यह थी कि विजय माल्या ने कर्ज के बदले में जो संपत्ति बैंकों को दिखायी थी उन संपत्तियों का मालिकाना अधिकार काफी विवादित था। पहले अपने देश के न्यायालयों से विजय माल्या को अपरााधी घोषित कराना था। देश के न्यायालयों में विजय माल्या ने देरी कराने का हथकंडा अपनाया। उसके वकीलों ने न्यायालय को गुमराह कराने काम किया, न्यायालयों को फैसले तक पहुंचने में अनावश्यक तौर पर रोड़ा डाला गया। इस कारण सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियां काफी समय देश के न्यायालयों में ही उलझी रही।
ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देश मानवाधिकार के अति आग्रही रहे हैं। दुनिया भर के आर्थिक अपराधी ही नहीं बल्कि मानवीय अपराधियों तथा खूंखार आतंकवादियों को भी मानवाधिकार के नाम पर ब्रिटेन और यूरोप में शरण देते हैं और यूरोप-ब्रिटेन की सरकार तथा न्यायालय सवर्ग इन्हें कानूनी संरक्षण भी उपलब्ध करा देती है। गुलशन कुमार हत्याकांड आपको याद करना होगा। गुलशन कुमार ने भजन गायकी को एक नया आयाम दिया था, छोटे-छोटे गायकों को उसने गली-मुहल्लों से उठा कर भजन गायकी का सिरमौर बना दिया था। उसकी कंपनी टी सीरिज रातोंरात आसमान पर बैठ गयी थी। मुबंई फिल्मी दुनिया में मठाधीश गायकों की नींद खराब हो गयी थी, कैसेट कंपनियों का भ्रट्ठा बैठ गया था। माफिया कैसेट कंपनियों और माफिया गायकों की साजिश हुई और गुलशन कुमार की हत्या हो जाती है।
पुलिस जांच में यह पाया गया नदीम की संलिप्तता। नदीम और श्रवण की गायकी जोड़ी बड़ी विख्यात थी। नदीम का अपराध प्रमाणित था। नदीम की गिरफ्तारी होनी ही थी कि वह भाग कर ब्रिटेन चला गया। ब्रिटेन में वह आराम के साथ रह रहा है। नदीम का प्रत्यार्पण नहीं हुआ। ब्रिटेन की न्यायालय कितु-परंतु के प्रश्न पर प्रत्यार्पण की मांग को ठुकरा दिया था। आज तक नदीम का प्रत्यार्पण नहीं हुआ और वह अपने अपराध की सजा पाने से साफ बच गया। नदीम जैसे और भी कई उदाहरण हैं। नदीम के उदाहरण से साफ हो गया है कि यूरोपीय देशों से अपराधियों को वापस लाने का काम कितना कठिन था। लेकिन भारतीय जांच एजेंसियों ने विजय माल्या के प्रत्यर्पण के लिए कितनी मेहनत की होगी।
विजय माल्या कोई छोटा आर्थिक अपराधी नहीं है। वह एक बड़ा आर्थिक अपराधी है। उसने बैंकों के नियम को अपने पैरों तले रौंदा था। कर्ज देने वालें बैंकों के अधिकारी उसके गुलाम थे। उसकी धमक कोई बैंकों के अधिकारियों के ऊपर ही हावी नहीं होती थी बल्कि तत्कालीन यूपीए वन और टू की सरकार के उपर भी हावी थी। विजय माल्या के भागने के बाद कई खुलासे हुए जिसमें यह प्रमाणित हुआ है कि उसकी पहुंच सत्ता के उच्च शिखर तक थी। बैकों के कर्ज को उसने ऐसोआराम करने में खर्च किया, कुप्रबंन में किया। कुप्रबंधन नहीं होता और निजी हैसियत प्रदर्शन करने की कुइच्छा नहीं होती तो फिर किंगफिशर एयरलाइंस डूबता ही क्यों ? और किंगफिशर के डूबने से हजारों लोग बेरोजगार नहीं होते।
विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण कर कड़ी सजा दिलायी जानी चाहिए। बैंकों का कर्ज लेकर डकारने का अपराध किस कदर बढ़ा है, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है। भारतीय बैंक आज घोटालों के कारण संकट में फसें हुए हैं। विजय माल्या जैसों को कड़ी सजा मिलती है तो फिर बैंकों के कर्ज लेकर डकारने वाले अपराधियों में खौफ पैदा होगा। इसके अलावा बैंकों के भ्रष्ट अधिकारियों को भी कड़ा संदेश जायेगा। अच्छी बात यह है कि नरेन्द्र मोदी सरकार विजय माल्या के प्रत्यर्यण पर ईमानदार और गंभीर है। उम्मीद है कि भारत ब्रिटेन की सुप्रीम कोर्ट में भी प्रत्यर्पण की जीत हासिल करेगा।

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