Lok Sabha Election : रोजगार के मुद्दे गायब, आरोप-प्रत्यारोप का दौर

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देश में अब तक लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के दो चरण संपन्न हो चुके हैं। राजनीतिक दलों के लिए यह समय ‘करो या मरो’ की तरह नजर आ रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में जोश व उत्साह आवश्यक है लेकिन राजनीतिक दलों का हमलावर रवैया बिल्कुल घटिया स्तर तक पहुंच गया है। राजनीति के आदर्श गायब होते जा रहे हैं। एक-दूसरे को कोसने की बजाए निजी हमले कर बदमाम किया जा रहा है, वह भी बिना किसी तथ्यों व सबूतों के। दरअसल, नेताओं की यह धारणा बन चुकी है कि ज्यादा आरोप-प्रत्यारोप करने से ही लोगों में उनकी छवि बनेगी।

राजनीति में नेताओं का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। इस आरोप-प्रत्यारोप के दौर में जनता के मुद्दे नजरअंदाज हो जाते हैं। बेरोजगारी, कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे तो शायद अब राजनीति में मुद्दे ही नहीं रहे। एक-दूसरे के लिए नफरत की बजाए सद्भावना और सम्मान की भावना जरूरी है। नेताओं को पूरी जिम्मेदारी से बयान देने चाहिए। साथ ही एक-दूसरे को कोसने की बजाए जनता के मुद्दों पर चर्चा करें। राजनीति में विरोध आवश्यक है लेकिन यह बेबुनियाद या केवल वोट के लिए पैंतरेबाजी न बने।

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