102 साल का हुआ जामिया मिल्लिया इस्लामिया

दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया (राष्ट्रीय इस्लामी विश्वविद्यालय) एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, जो आज 102 साल पूरे कर रही है। 29 अक्टूबर 1920 को अलीगढ़ में छोटी संस्था के तौर पर शुरू होकर एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनने तक की इसकी कहानी कई संघर्षों से भरी है। गांधीजी के कहने पर ब्रिटिश शासन के समर्थन से चल रही शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार शुरू हुआ था। राष्ट्रवादी शिक्षकों और छात्रों के एक समूह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छोड़ा और जामिया मिल्लिया इस्लामिया की नींव पड़ी। स्वतंत्रता सेनानी मौलाना महमूद हसन ने 29 अक्टूबर 1920 को अलीगढ़ में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की नींव रखी। यह संस्था शुरू से ही कांग्रेस और गांधीजी के विचारों से प्रेरित थी। 1925 में आर्थिक सेहत बिगड़ी तो गांधीजी की सहायता से संस्था को करोल बाग, दिल्ली लाया गया। तब महात्मा गांधी ने यह भी कहा था- जामिया को चलना होगा। पैसे की चिंता है तो मैं इसके लिए कटोरा लेकर भीख मांगने के लिए भी तैयार हूं। बापू की इस बात ने मनोबल बढ़ाया और संस्था आगे बढ़ती रही। भारत के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन महज 23 साल की उम्र में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय से ली और लौटकर जामिया के वाइस चांसलर का पद भी संभाला। साल 1963 में उन्हें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। डॉ. जाकिर हुसैन के पूरे जीवन काल को ‘द फिलॉस्फर प्रेसिडेंट स्पीक्स’ पुस्तक के जरिए बताया गया है।
भारत के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के दो साल के बाद ही 3 मई 1969 को डॉ. जाकिर हुसैन का निधन हो गया। उन्हें नई दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय ) के परिसर में दफनाया गया। वह हमेशा एक बात कहते थे, ‘मैं मजबूती से इस सच के साथ खड़ा हूं कि तालीम से ही राष्ट्र के उद्देश्य पूरे किए जा सकते हैं।

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