प्रसन्नता का कौशल | motivation

motivation

प्रसन्नता को लेकर दुनिया भर में कई प्रकार के द्वंद एवं अंतर्द्वंद है। भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार और मत प्रसन्नता को लेकर हैं। इस गंभीर चिंतन का विषय है कि बहुत सारे लोग प्रकृति के नियमों की अज्ञानता के चलते ऐसा मानते हैं कि जब खुश होंगे तब कुछ सार्थक और सकारात्मक बदलाव आएगा। अर्थात् सामान्य रूप से हमने प्रसन्नता को अपने नियंत्रण से बाहर कर रखा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि प्रसन्नता तो पूर्णतया हमारे नियंत्रण में है एवं स्वैच्छिक भी है। जब हम प्रसन्न होते हैं। तब स्वत: ही बहुत सारे सार्थक और सकारात्मक परिवर्तन हमारे जीवन में आते हैं ऐसा प्राकृतिक विज्ञान कहता है।
प्रसन्नता स्व-नियंत्रण में है कि नहीं इसी उधेड़बुन में कई लोगों का जीवन व्यतीत हो जाता है। किसी सार्थक अर्थ में नहीं केवल व्यर्थ में व्यतीत हो जाता है। वे इस बात की प्रतीक्षा करते रहते हैं कि जब कोई सार्थक सकारात्मक परिवर्तन आएगा तब हम प्रसन्न होंगे। प्रसन्नता एक मानसिक अवस्था है यही सत्य है। हम हमारे आसपास बाह्य जगत में जो भी घटित हो रहा है। हम उस पर नियंत्रण करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं। पर जो भी हमारे आस पास हो रहा है उस पर हमारी कैसी क्रिया और प्रतिक्रिया होगी यह विशुद्ध रूप से बहुत सरलता से हमारे ही नियंत्रण में है। इन दोनों सरल सी बातों को हम लोग सहजता से स्वीकार नहीं करते। इसीलिए दुनिया भर में सबसे बड़ा कोई यदि संकट है तो वह प्रसन्न न होने या कम प्रसन्न होने का संकट है। दुखों की तकलीफ का भंडार नजर आएगा किंतु प्रसन्नता की बात करो तो लोग तुलनात्मक रूप से कम प्रसन्न नजर आएंगे। यह भी तय है कि जो लोग कम प्रसन्न नजर आएंगे वे बहुत आसानी से दोषारोपण करते नजर आएंगे, क्योंकि उनको सदा ऐसा लगेगा कि उनकी अप्रसन्नता, दुख या तकलीफ का कोई बाह्य कारक है। जब ऐसी सोच होती है तो इस प्रकार की सोच वाला व्यक्ति उस बाह्यय कारक को जो मूलत: है ही नहीं फिर भी ढूंढ ही लेता है। ये कारक कभी समाज, कभी सरकार, कभी परिवार, कभी रिश्तेदार या कोई स्थिति-परिस्थिति कुछ भी हो सकता है।

Parents and children
हम जिन्हें दुख का कारण मानते हैं। उन बातों का हिसाब किताब रखने लगते हैं। हिसाब किताब रखना भी चाहिए क्योंकि हिसाब किताब से लाभ हानि का गणित निकालना सरल होता है। हमें हमारी खुशियों का अकाउंट यानी लेखा-जोखा रखना होगा किंतु करते इसके विपरीत हैं। हम दुखों का अकाउंट यानि लेखा-जोखा बराबर रखते हैं। दुख व उनके कथित कारकों की बहुत मोटी मोटी मानसिक फाइलें तैयार कर लेते हैं जो सदा हमारे दुखों का रोना रोती रहती हैं।

यानी हमें हिसाब किताब रखना था खुशियों का हमने किया उसका उल्टा और एक पुरानी कहावत है कि जिस भी विषय का हिसाब किताब रखा जाता है वह काम सरलता से हो जाता है। हम जब दुखों का हिसाब किताब रखेंगे तो हमारा ध्यान व ऊर्जा दुखों की तरफ केंद्रित होगी। जब हम जो भी सुख है उनका हिसाब किताब रखेंगे तो हमारा ध्यान व ऊर्जा सुख की तरफ केंद्रित होगी। इस से सुख के बिंदु व प्रसन्नता के अवसर धीरे-धीरे बढ़ने लगेंगे। इस सत्य पर विश्वास करके, जब जागो तभी सवेरा की भांति अभी से एक डायरी और पेन ले। प्रतिदिन सिर्फ प्रसन्नता प्रदान करने वाले बिंदुओं का उल्लेख हो और प्रतिदिन यह भी ढूंढने का प्रयास करें कि कल की तुलना में आज प्रसन्नता के कौन से नवीन बिंदु सम्मिलित किए जा सकते हैं। ध्यान रहे कि दुख का उल्लेख नहीं करना है इससे धीरे धीरे नकारात्मकता और दुख के विषय समाप्त होने की प्रबल संभावना है। जैसा हम विश्वास करते हैं वैसा ही हमको प्राप्त होता है। इसलिए हमारे आत्मिक संवाद में इस बात का सदा उल्लेख हो कि हम सदा प्रसन्न है। परिणाम निश्चित तौर पर आपके पक्ष में ही आएगा।


इसके साथ जो भी प्राप्त है उसके लिए सदा कृतज्ञता की भावना से प्रसन्नता की भावना और सशक्त होती है। यदि हम किसी चीज के लिए कृतज्ञ है तो संभव ही नहीं है कि हम दुखी हों। क्रोध स्वत: होता है ,शांति हमारा चयन है। घृणा स्वत: उत्पन्न होती है ,प्रेम हमारा चयन है। नकारात्मकता स्वयं ही उत्पन्न हो जाएगी किंतु सकारात्मकता हमारी चॉइस है। असंतुष्ट रहना शिकायत करना स्वत: ही हो जाएगा किंतु कृतज्ञता ज्ञापित करना हमारी पसंद (च्वॉइस) है। हम कब तक और कितने प्रसन्न रहना चाहते हैं। यह हम ही सुनिश्चित कर सकते हैं। किंतु कैसे करना है यह भी शत-प्रतिशत हमारे ही नियंत्रण में है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि जीवन में निराशा, नकारात्मकता, दुख-तकलीफ, कठिनाइयां, चुनौतियां व क्रोध नहीं आएगा। यह सब भी आएंगे क्योंकि यह जीवन का एक हिस्सा है किंतु सफल वही है जो प्रसन्न रहने के अपने कौशल को विकसित करके इन सब से पार निकल जाए। यही कारण है कि दुनिया में दुख ज्यादा है क्योंकि लोग जीवन के संघर्षों से पार पाने के स्थान पर दुख के सामने समर्पण करने को ही विजय समझते हैं। परिस्थितियों को दोष देकर आप कदाचित सहानुभूति तो प्राप्त कर सकते हैं। किंतु सफलता प्राप्त करने के लिए स्वयं को प्रसन्नता पर केंद्रित करने के वैचारिक एवं मानसिक कौशल की आवश्यकता है जो निरंतरता से ही समृद्ध हो सकता है।

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