Trending News: बारहवीं कक्षा की परीक्षाएं चल रही थीं और ऊपर से झुलसाती गर्मी। मैं, सुबह-सवेरे मां के साथ खेत में गेहूँ की कटाई करता, और फिर दोपहर बारह बजे स्कूल जाकर पेपर देता। अक्सर माँ मुझे परीक्षा के लिए रवाना करने से पहले एक-दो रोटियां खिला देती थी। पर उस दिन मैं थोड़ा देर से उठा, और खाए बिना ही निकलना पड़ा।
माँ ने न जाने कितने दिनों से बचाकर रखे बीस रुपए मेरी जेब में डालते हुए कहा ले बेटा, ये पैसे रख ले, अगर भूख लगे तो कुछ खा लेना। मैं नहाकर स्कूल गया, परीक्षा दी और शाम को लौट आया। Trending News
कई दिन बीत गए। न मैंने माँ के दिए बीस रुपए खर्च किए, न ही माँ ने उनसे दोबारा जिक्र किया।
करीब एक महीना बीत गया। एक दिन माँ को पैसों की जरूरत पड़ी। उन्होंने मुझे बुलाकर पूछा- गुरविंदर बेटा, मैंने तुझे बीस रुपए दिए थे, उनमें से कुछ तो बचे होंगे?
मैं कमरे में गया, बस्ते से वह बीस का नोट निकाला और माँ के हाथ पर रख दिया। उस दिन मैंने अपनी माँ की आँखों में मजबूरी और खुशी दोनों का रूप एक साथ आँसुओं में बहते देखा। समय बीत गया।
पच्चीस साल बाद, पेंशन मिलने की खुशी में माँ मेरे लैब पर आई। जैसे ही बैठी, पचास रुपए का एक नया नोट मेरी ओर बढ़ाते हुए बोलीं ले बेटा, बाजार से कुछ खा लेना। मैंने माँ के साथ चाय पी, कुछ बातें कीं, और फिर माँ घर चली गईं। पर माँ का चेहरा मुझे यह साफ बता गया कि वो बीस रुपए वाली बात अभी भी उनके दिल में बसी थी। आज मेरी माँ को इस दुनिया से गए डेढ़ महीना बीत चुका है। अफसोस इस बात का है कि मैं उन्हें यह कभी नहीं बता सका कि माँ, तेरे इन पचास रुपयों को भी मैं खर्च नहीं सका।
-गुरविंदर, कैंपर दिड़बा
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