राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी एक सार्थक पहल

National Recruitment Agency

छले सत्तर सालों में देश की तमाम समस्याओं में बेरोजगारी भी शामिल है। सरकारी व प्राईवेट सेक्टर में नौकरियां मांग के हिसाब से काफी कम है। सरकारी नौकरी भले ही वो केंद्र की हों या प्रदेश सरकार की नौकरी चाहने वालों की पहली पसंद रहती है। लेकिन सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार, अनियमितता और लेटलतीफी बड़ी समस्या है। बदलते दौर में नौकरियों का स्वरूप बदला है तो वहीं भर्ती के तरीके भी बदले हैं। बी और सी समूह के गैर तकनीकी पदों के लिए केंद्रीय सेवाओं में रोजगार देने की दिशा में राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (एनआरए) को मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब तीन करोड़ युवा सरकारी नौकरियों के लिए हर साल परीक्षाएं देते हैं। निस्संदेह भर्ती प्रक्रिया में सुधार का लाभ उन्हें मिलेगा। यह कदम देश में राष्ट्रीय स्तर की रिक्तियों में चयन के लिए परीक्षा तंत्र को और अधिक मजबूत करने के लिए उठाया गया है।

दरअसल, अब तक देश में लगभग बीस भर्ती एजेंसियां प्रतियोगिता परीक्षाओं का आयोजन करती रही हैं। इनके केंद्र भी अलग-अलग स्थानों पर निर्धारित होते थे, जिसके चलते कई बार परीक्षार्थियों को दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था। कई बार परीक्षार्थियों की संख्या का इतना दबाव होता था कि उन्हें रेलगाड़ी और बसों की छत में बैठकर सफर तय करना पड़ता था। फिलहाल सरकार ने तीन प्रमुख एजेंसियों- कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड तथा बैंकिंग कर्मिक चयन संस्थान को ही राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की साझा पात्रता परीक्षा में शामिल किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शीघ्र ही अन्य बड़ी एजेंसियां इसमें शामिल हो सकें। सरकार ने राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के क्रियान्वयन के लिए पंद्रह हजार करोड़ से ज्यादा की राशि स्वीकृत की है।

केन्द्र सरकार का यह फैसला जमीन पर कितने बदलाव लाएगा, ये अभी ज्यादा लोगों का समझ नहीं आ रहा है। वास्तव में राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी का लाभ देश के करोड़ों परीक्षार्थियों को मिल सकेगा, क्योंकि अब वे एक ही परीक्षा पास करके कई पदों के लिए आवेदन कर सकेंगे। साथ ही आवेदकों को बार-बार आवेदन करने और फीस भरने के झंझट से निजात मिलेगी। इस एजेंसी के गठन से बैंक और रेलवे सहित केंद्र सरकार एवं बैंक जैसे सार्वजनिक उद्यमों में बी और सी समूह के गैर तकनीकी पदों पर नियुक्ति हेतु एक ही प्रवेश परीक्षा होगी जिसे पास करने के बाद अपने इच्छुक विभाग की अंतिम परीक्षा में बैठा जा सकेगा। अच्छी बात ये रहेगी कि फाइनल परीक्षा में फेल होने के बाद दोबारा प्रवेश परीक्षा से मुक्ति मिल जायेगी। प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होना एक तरह से प्राथमिक योग्यता मानी जायेगी। अभी विस्तृत विवरण आना बाकी है।

सबसे खास बात यह है कि अब रोजगार चाहने वालों को परीक्षा देने के लिए दूरदराज के शहरों में धक्के नहीं खाने पड़ेंगे, और तमाम दूसरी परेशानियां नहीं उठानी पड़ेगी। योजना के मुताबिक अब पूरे देश में एक हजार से ज्यादा परीक्षा केंद्र बनाये जायेंगे। कोशिश होगी कि हर जिले में एक परीक्षा केंद्र हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि साझा पात्रता परीक्षा युवाओं के लिए वरदान साबित होगी। निश्चित रूप से इस प्रयास से बेरोजगारों के समय व धन की बचत होगी। इससे गरीब पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को राहत मिलेगी। वर्तमान में, उम्मीदवारों  को बहु-एजेंसियों द्वारा संचालित की जा रही विभिन्न परीक्षाओं में भाग लेना होता है।

परीक्षा शुल्क के अतिरिक्त उम्मीदवारों  को यात्रा, रहने-ठहरने और अन्य पर अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है। कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीईटी) जैसी एकल परीक्षा से काफी हद तक उम्मीदवारों  पर वित्तीय बोझ कम होगा। इससे महिला अभ्यर्थियों को भी काफी राहत मिलेगी क्योंकि कभी-कभी उन्हें इन दूरस्थ स्थानों पर स्थित इन केंद्रों  तक पहुंचने के लिए उपयुक्त व्यक्ति को ढूंढना पड़ता है। प्रत्येक जिले में परीक्षा केंद्रों  की अवस्थिति से सामान्य तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों और विशेष रूप से महिला उम्मीदवारों को अधिक लाभ होगा।

परीक्षा हेतु पंजीयन भी आॅनलाइन किया जा सकेगा। इस बारे में उल्लेखनीय है कि अतीत में महाराष्ट्र में दूसरे राज्यों से भर्ती परीक्षा में आये परीक्षार्थियों के साथ मारपीट जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। इन अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं से उम्मीदवारों के साथ-साथ संबंधित भर्ती एजेंसियों पर भी बोझ पड़ता है। इसमें बार-बार होने वाले खर्च, कानून और व्यवस्था व सुरक्षा संबंधी मुद्दे और परीक्षा केंद्रों संबंधी समस्याएं शामिल हैं। औसतन, इन परीक्षाओं में अलग से ढाई से तीन करोड़ उम्मीदवार शामिल होते हैं। साझी पात्रता परीक्षा (सीईटी) उम्मीदवार एक सामान्य योग्यता परीक्षा में केवल एक बार शामिल होंगे तथा उच्च स्तर की परीक्षा के लिए किसी या इन सभी भर्ती एजेंसियों में आवेदन कर पाएंगे।  सीईटी में भाग लेने के लिए अवसरों की संख्या पर कोई सीमा नहीं होगी।

सरकार की मौजूदा नीति के अनुसार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अति पिछड़ा वर्ग और अन्य श्रेणियों के उम्मीदवारों को ऊपरी आयु-सीमा में छूट दी जाएगी। आने वाले समय में इस परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को प्रदान सीईटी स्कोर को केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रदेशों, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, निजी क्षेत्र की अन्य भर्ती एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है। इस परीक्षा में हासिल स्कोर तीन साल तक मान्य होंगे। परीक्षा आयोजित करने के लिए हर जिले में कम से कम एक परीक्षा केंद्र स्थापित किया जाएगा। इसके तहत परीक्षा के परिणाम भी जल्दी आयेंगे जिससे अभ्यर्थियों को विभिन्न नौकरियों में अपनी पसंद चुनने का बेहतर अवसर मिल सकेगा। केंद्र सरकार का ये कदम प्रशासनिक सुधार के साथ ही पारदार्शिता बढाने वाला होना भी चाहिए।

जमीनी सच्चाई यह है कि देश में प्रतिवर्ष बेरोजगार युवाओं को तमाम परीक्षाओं के लिए अलग-अलग फीस भरनी पड़ती थी और दूर-दराज के इलाकों में परीक्षा देने के लिए आवागमन में खर्च भी करना पड़ता था जो बेरोजगारी के दौर में उनकी मुश्किलों को ही बढ़ाता था। देर से उठाये गये इस कदम का बेहतर ढंग से क्रियान्वयन बेरोजगार युवाओं के लिए राहत का सबब बन सकता है। देश में बेरोजगारी की भयावह स्थिति के कारण बहुत बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की है जो अलग-अलग परीक्षाओं के कारण परेशान हो गये हैं। इस एजेंसी को मूर्तरूप लेने में निश्चित रूप से कुछ समय लगेगा। देश भर के जिलों में केंद्र खोलकर परीक्षा का आयोजन भी आसान काम नहीं होगा। लेकिन इस फैसले को एक बड़े सुधार के तौर पर देखा जा सकता है।

राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के गठन से भर्ती प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आने की उम्मीद करना गलत नहीं होगा। लेकिन केंद्र सरकार को ये देखना चाहिए कि एजेंसी का काम निश्चित समय सीमा में सम्पन्न हो क्योंकि हमारे देश में सुधारवादी फैसले लिए जाने के बावजूद उन्हें अमल में लाने का काम मंथर गति से होने के कारण उनकी उपयोगिता और प्रभाव दोनों नकारात्मक हो जाते हैं। अगर पूरी दृढ़ता और इच्छा शक्ति से इस फैसले को लागू किया जाए तो एक देश एक भर्ती परीक्षा का निर्णय राष्ट्रीय एकता को मजबूत करेगा, और देश के साधनों और संसाधनों की भी बचत के साथ भर्ती प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता भी आएगी।

                                                                                                                -राजेश माहेश्वरी

 

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