तेल कीमतों पर गौर करने की आवश्यकता

Need to look at oil prices

कांग्रेस ने गत दिवस तेल कीमतों में वृद्धि के खिलाफ देश भर में बंद का न्यौता दिया। चाहे यह पार्टी का अपना विरोध कार्यक्रम था किंतु आम लोगों में भी तेल कीमतों में वृद्धि के कारण निराशा व अनिश्चितता का माहौल है। साधारण लोग रोष प्रदर्शन नहीं करते और न ही उनके पास इतना समय होता है लेकिन अब जनता का आक्रोश वास्तविकता को प्रस्तुत कर रहा है। नि:संदेह तेल कीमतों में वृद्धि ने जनता का कचूमर निकाल दिया है। चाहे हर व्यक्ति ने तेल नहीं खरीदना होता लेकिन जब ट्रकों की ढुलाई महंगी होती है तो उसकी मार परिवार के प्रत्येक सदस्य को झेलनी पड़ती है। पेट्रोल की कीमत 80 को पार कर गई है। इससे मध्यम वर्ग बुरी तरह परेशान है। नि:संदेह अंतरराष्ट्रीय मंडी में कच्चे तेल की कीमतें सस्ती हैं, लेकिन देश में केंद्र व राज्य सरकारें जो धड़ाधड़ टैक्स लगा रही हैं उसे तो घटाया जा सकता है। लगता है तेल कीमतों में वृद्धि को केंद्र सरकार ने अटल सच्चाई स्वीकार कर लिया है और इस मामले में राज्य सरकारों के साथ तालमेल लगभग बंद ही कर दिया या इसके प्रति कोई सक्रियता ही नजर नहीं आती। केंद्र सरकार राज्यों को वैट घटाने की अपील नहीं कर रही। देश में डेढ़ दर्जन राज्यों में भाजपा की सरकार है। यदि केंद्र में भाजपा अपने राज्यों को ही बोले तो तेल कीमतों को कम करना संभव है। आंध्र प्रदेश सरकार ने डीजल-पेट्रोल 2 रुपए सस्ता कर दिया है। इसी तरह देश बंद का न्यौता देने वाली कांग्रेस पंजाब व अपनी सरकार वाले अन्य राज्यों में तेल पर वैट घटाकर लोगों को राहत दे सकती है। यदि जनता के साथ राजनैतिक पार्टियों को हमदर्दी है तो राज्यों में वैट घटाने की शुरूआत होनी चाहिए। भाजपा ने 2014 के लोक सभा चुनावों में महंगाई को मुख्य मुद्दा बनाया था। जब डीजल 56 रुपए के करीब था अब यह सेंचुरी लगाने के नजदीक पहुंच गया है। रसोई गैस सिलेंडर की कीमत भी चार सालों में दोगुनी हो गई है। यह भी हैरानी है कि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद कह रहे हैं कि तेल कीमतों को घटाना सरकार के हाथ में नहीं हैं लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार ने तेल डी-कंट्रोल कर केवल इसका रेट तय करने की जिम्मेदारी ही कंपनियों को दी है न कि देश चलाने की फिर टैक्स तो सरकार ही लगाती है, कम क्यों नहीं किया जाता। यह सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह महंगाई को नियंत्रण में रखे और जनता को मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाने में अपना फर्ज निभाए। तेल कंपनियों ने पिछले समय में मोटी कमाई की है और राज्यों ने वैट बढ़ाकर खूब पैसा वसूला है। इन हालातों में केंद्र व राज्य सरकारें दोनों ही तुरंत लोकहित में फैसला लें। सरकार की उज्जवला मुफ्त गैस जैसी योजनाओं का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता यदि तेल आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाता है। केंद्र सरकार बंद के असर का कोई परिणाम निकालने की बजाय जनता की समस्याओं पर गौर करे।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।