बंजर भूमि में बहार छा गई, सच्ची सरकार आ गई …

Shah Mastana Ji
Shah Mastana Ji बंजर भूमि में बहार छा गई, सच्ची सरकार आ गई ...

सच्ची सरकार आ गई
भाईचारा प्रेम जब मिटने लगा
हर रिश्ते में दरार आ गई ,
तरस खाकर करने उधार रूहों का
सच्ची सरकार आ गई ।
कार्तिक की पूर्णमासी ,
हर रूह के मस्तक पर उज्जास था ।
सुखी कलियां जी उठी ,
रूहानियत के बादशाह का आगमन बड़ा खास था उनके दर से कोई खाली जाए ।
न किसी की भूख बर्दाश्त थी ,
हर मस्तक पर रौनक और मुस्कान हो ।
केवल उनकी यही अरदास थी ,
साधुओं को मिठाई खिलाकर ।
उनकी भूख मिटाते थे ,
मेहनत हक हलाल का खाना खुद अपनाते ,
और सिखाते थे ।
जी उठा आलम सारा ,
बंजर भूमि में बहार छा गई ।
सच्ची सरकार आ गई ,
सादगी के पुंज , प्रेम प्रतीक ।
और महानों के महान थे ,
कण – कण , ब्रह्मण्ड उनके वश में और दुनिया के अरमान थे ।
प्यासे की प्यास मिटी और भूखों का सहारा हुआ नंगे को कपड़ा , तंग को धन ,
भव में डूबते को किनारा हुआ ।
हर बुराई मिटने लगी ,
अंधेरे में उजाला हुआ ,
रूहानियात की महक जो छा गई ।
सच्ची सरकार आ गई ।।
जन्म मरण के दुख फिर मिटाने लगे ,
देकर नाम का वरदान , शराब के गंदे नशों से
मुक्त कराने लगे ।
काल हुआ चिड़चिड़ा क्योंकि ,
रूहों को छुड़ाने की मर्ज उसे दुखा गई
सच्ची सरकार आ गई ।
भाईचारा प्रेम की लहर चली ,
अच्छाइयों का पौधा खिल उठा
काल बड़ा छटपटाया ,
साम्राज्य उसका हिल उठा ।
जब सचखंड ले जाने को उनके ,
मसीहा की पतवार आ गई ।
सच्ची सरकार आ गई ।।
तरस खाकर करने उधार रूहों का
सच्ची सरकार आ गई ।।

लेखक – कुलदीप स्वतंत्र