दिवगंत नेताओं पर स्तरहीन ब्यानबाजी राजनीति का गिरता स्तर

politics on the departed leaders

लोक सभा चुनावों के प्रचार में घटिया शब्दावली का प्रयोग करना चिंता का विषय है। यूं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व राहुल गांधी एक-दूसरे पर जमकर शाब्दिक प्रहार बोल रहे हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों के चुनाव प्रचार में जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी ने मरहूम प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ आरोप व भाषा का प्रयोग किया है, वह राजनीतिक मर्यादा के दायरे में नहीं आते। मोदी ने राजीव गांधी पर कुछ सनसनीखेज आरोप लगाए हैं, जिसका जिक्र न तो नरेन्द्र मोदी व न ही उनकी पार्टी ने पिछले 30 सालों में किया था। मोदी ने राजीव गांधी पर भ्रष्टाचारी नंबर.1 के आरोप लगाए। इसी तरह मोदी ने राजीव गांधी पर उनके प्रधानमंत्री रहते हुए भारतीय सेना के युद्धपोत आईएनएस विराट पर यात्रा कर छुट्टियां मनाने का भी आरोप लगाया। हालांकि कांग्रेस ने इसका स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि वह राजीव गांधी की अधिकारिक यात्रा थी। 1987-88 के दौरान वजाहत हबीबुल्लाह लक्षद्वीप के प्रशासक थे, जहां राजीव ने यात्रा की थी।

उन्होंने भी कहा कि यह यात्रा आधिकारिक थी। दरअसल चुनाव प्रचार में इसे आरोप-प्रत्यारोप कहें तो उचित नहीं होगा। यह चिंता वाली बात है जब कोई प्रधानमंत्री इस प्रकार की घटिया स्तर की राजनीति करे। नि:संदेह चुनावों के लिए विरोधियों पर शाब्दिक हमले किए जाते हैं, लेकिन बिना प्रमाण व तथ्य के आरोप लगाकर नेता समाज में झूठी सनसनी फैला देते हैं। यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या उनकी पार्टी के पास ऐसी कोई जानकारी थी तब उन्हें इतने सालों के बाद कैसे राजीव गांधी पर आरोप लगाने की याद आई, जो समझ से परे है। दरअसल किसी प्रधानमंत्री का सेना के साथ संबंधित विमानों पर जाने का क्या उद्देश्य है? इस संबंधी अधिकारियों के पास पूरा रिकार्ड होता है। यूं भी प्रधानमंत्री या राष्टÑपति विमानों के निरीक्षण के लिए अक्सर ही जाते रहे हैं।

डॉ. अब्दुल कलाम ने अपने राष्टÑपति कार्यकाल में फाइटर विमान का निरीक्षण किया था। सबसे दुख:द बात यह है विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में चुनावों के दौरान बयानबाजी का स्तर गिर चुका है। विशेष तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में विकास के मुद्दों की बात की बजाए नेहरू, गांधी परिवार पर ज्यादा शाब्दिक हमले बोल रहे हैं। नि:संदेह अपनी पार्टी के लिए मोदी प्रचार कर सकते हैं। प्रधानमंत्री पद की भी अपनी गरिमा है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री के भाषण में कांग्रेस के प्रति घटिया शब्दावली के प्रयोग करने से यह स्पष्ट संकेत है कि भाजपा को विरोधियों से कड़ी टक्कर मिल रही है। फिर भी नेताओं को यह बात समझनी होगी कि केवल विरोधियों कोसना ही चुनाव प्रचार या राजनीतिक सफलता की शर्त नहीं है।

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