संतों का दिल दुखता है जब कोई झूठ बोलता है और बुरा कर्म करता है

बरनावा। सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शुक्रवार को शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा (यूपी) से अपने फेसबुक पेज पर आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से अमृतमयी रूहानी वचनों की वर्षा की। पूज्य गुरु जी ने आमजन से आह्वान किया कि वो दिखावा छोड़कर सच्ची भावना से भगवान और उसकी सृष्टि से प्रेम करे।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि बड़ा मुश्किल है इन्सान का पहचान पाना कि वो जो कह रहा है, वो ही उसके अंदर है। वो जो दिखा रहा है क्या वो उसके अंदर है। जी नहीं, पुराने समय में एक गाना आया था, बड़ा सुना करते थे, आप लोगों ने भी शायद वो लाइनें सुनी हों, ‘रब्ब नाल ठग्गियां क्यों मारे बंदेया, दिन-रात पापां च’ गुजारे बंदेया’ आज वो बिल्कुल सही समय है इन लाइनों के लिए। आज का इन्सान ये मानने को तैयार ही नहीं होता कि भगवान सब जानता है। कहता ना…ना… मैं चतुर-चालाक, मेरे में अकल, मैं ऐसा, मैं भगवान को क्या समझता हूँ।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आपको कई बार एक बात सुनाई है कि एक संत थे और उनके पास कोई गुरुमंत्र लेने आया। दो लोग थे। एक काबिल था और एक नाकाबिल था। उस समय में संत, पीर-फकीर परीक्षा लिया करते थे। आज के दौर में तो बिना परीक्षा के राम-नाम दिया जाता है और परीक्षा लेने लग जाओ तो कोई-कोई ही निकलेगा। उस समय की बात, एक लायक था और एक राम-नाम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ख़ुदा, रब्ब के काबिल नहीं था। संतों ने उन दोनों को दो बटेर दिए कि इनकी परीक्षा लेते हैं। ये समझकर कि इनमें से एक ही लायक है, वैसे जवाब नहीं दे सकते। तो उनको बटेर दिए और बोले कि जाओ और थोड़ा सा इसे बेहोश करके वापिस ले आओ।

अब दोनों चल दिए। एक, जो आज के समय में भी हैं चतुर-चालाक, भगवान को कुछ दिखाना, बोलना कुछ और, अंदर जलवे कुछ और, पर्दे में जलवे कुछ और। तो वो गया, उसने झाड़ियों की तरफ देखा, कोई भी नहीं, इधर-उधर देखा कोई भी नहीं, गर्दन थोड़ी सी दबाई बटेर बेहोश हो गया। तो वो वापिस आया और संतों को कहने लगा कि लो जी आपका बटेर, ये बेहोश हो लिया है। तो संत-पीर, फकीर कहने लगे कि वो दूसरा अभी तक नहीं आया, पता नहीं क्या बात हो गई, क्यों नहीं आया। पहले वाला कहने लगा कि जी, वो कहीं दूर निकल गया होगा, क्या पता उसका? कौन सा पता चलता है किधर है? काफी समय बाद दूसरे सज्जन भी आ गए।

संतों ने पूछा कि भई बटेर को ऐसे ही ले आया, ये होता है भक्त, भक्त की श्रेणी, जैसा अंदर वैसा बाहर। तो संतों को आकर कहने लगा कि जी आपने बोला था कि जहां कोई भी न देख रहा हो वहां बेहोश करना। संत कहते, हाँ, बिल्कुल कहा था। वो कहता कि जी, मैं झाड़ियों में गया, सोचा यहां कोई नहीं देख रहा। जैसे ही मैंने इसको (बटेर को) मेरी तरफ किया तो ये मुझे देख रहा था और ये मुझे देख रहा था। कहता मैंने उसका उधर घुमाया, अब जैसे गला दबाने लगा कि बेहोश हो जाए तो अचानक ख्याल आया कि ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड तो कण-कण में, जर्रे-जर्रे में रहता है और हर किसी को देखता रहता है। कहता कि जैसे ही ये विचार आए मैं कुछ नहीं कर पाया। तो संत जी मुझे माफ करना, ये लो आपका बटेर, मैं बेहोश नहीं कर पाया।

तो संत मुस्कुराए, जो पहले गला दबाकर बेहोश करके लाया था उसे कहते बेटा! तू काबिल नहीं है। जो यह नहीं जानता कि मालिक हर जगह है, जानते हुए भी अन्जान बनता है, उससे बड़ा दूसरा पापी नहीं हो सकता। और ये इसको पता है कि भगवान हर जगह है और देख रहा है तो असल राम-नाम के लायक ये है, इसको गुरुमंत्र हम देते हैं। तो इस तरह से भाई आज के युग में बटेर का गला दबाकर वापिस लाने वाले बहुत हैं। भगवान को तो मजाक समझते हैं, बात ही कुछ नहीं। अपनी इगो, काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मान-बड़ाई के भूखे, नंबरों का चक्कर, और कुछ नहीं। समाज में ज्यादातर लोगों का सारा साजोसामान इसी पर टिका हुआ है।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अच्छे लोग भी बहुत हैं, जो परहित, परमार्थ करते हैं, नेकी करते हैं। जो उनके दिलोदिमाग में होता है, वो ही जुबान पर होता है। पर हमें बड़ा दर्द होता है कि जब कोई सज्जन झूठ बोल रहा होता है। दिखावा कुछ और, कर्म उसके सामने दिख रहे होते हैं राम जी की कृपा से, कि भई कर्म बुरे कर रहा है या इसकी नीयत क्या है? पर ये दिखा क्या रहा है? चुगली खा जाता है उसका फेस, चुगली खा जाती हैं उसकी आँखें। वो आँख ही नहीं मिलाता, मिलाता है तो फिर उसको पता है कि सब पढ़ लिया जाएगा। और उसे ये नहीं पता कि ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु तो सबके अंदर है और फकीर उसके सेवादार होते हैं, फकीरों को भी भगवान इशारा कर देता है।

पर फकीर कभी किसी का पर्दा नहीं उठाते। अब सांझे में तो बात कर रहे हैं, अकेले में बोलेंगे तो कि भई तूं खड़ा हो जा, तूं ये है। तो उसी टाइम कपड़े-लत्ते से बाहर। मुझे कहा, तो कहा कैसे? इसलिए फकीरों का काम सच्ची बात तो जरूर कहना, पर सांझे कहना है, पर्सनल नहीं। समझ ले तो भी फायदा, ना समझे तो आने वाला टाइम उसको भोगना होगा। फिर कुछ नहीं बनता। मौका होता है, अवसर होता है कि आदमी तौबा कर ले, अपनी चतुर-चालाकी छोड़ दे, नंबरबाजी से बाज आ जाए, नहीं तो भाई रामजी के घर थोड़ी सी देर है, अंधेर नहीं है।

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