सावण शाह ने बख्शा, रूहानियत का ताज, मस्ताना जी के रूप में, आई रब्बी जोत आज…
पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपना सर्वस्व अपने पूर्ण सतगुरु बाबा सावन सिंह जी महाराज के चरणों में अर्पित कर दिया। पूज्य सार्इं जी के प्यार-मोहब्बत व गुरु भक्ति को देखकर बाबा सावन सिंह जी महाराज ने हुक्म फरमाया ‘‘ हे मस्ताना! तू बागड़ में जा। राम-नाम का डंका बजा। लोगों को सच्चाई का रास्ता दिखा और काल के जाल में फंसी रूहों को इस भवसागर से पार लंघाने का परोकार कर। हे मस्ताना! हमने तुम्हारे को सब काम करने वाला जिन्दाराम दिया। पीर भी बनाया और अपना स्वरूप भी दिया। तुम्हारे को वो राम बख्शिश में दिया जो किसी और को न दिया।’’अपने मुर्शिद का आदेश सुनकर बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज बोले, सच्चे पातशाह जी, ये जो शरीर है, इतना पढ़ा-लिखा नहीं है। कैसे ग्रन्थ पढ़ेंगे? कैसे लोगों को समझाएंगे।
असीं केवल सिन्धी बोली ही जानते हैं। इस पर बाबा सावण शाह जी ने फरमाया ‘‘ मस्ताना शाह! तुझे किसी ग्रंथ की जरूरत नहीं, तेरी आवाज मालिक की आवाज होगी।’’ पूज्य मस्ताना जी ने फिर सावण शाह जी महाराज से अर्ज की कि ‘‘दाता जी! रास्ते में बढ़ी चढ़ाईयां हैं, बड़ी गहराईयां हैं। कहीं त्रिकुटी, कहीं भंवर गुफा है। हम कैसे समझाएंगे? हमें इन चक्करों में न फंसाओ। हमें तो कुछ ऐसा नाम दो, जिसे भी हम नाम (गुरुमंत्र) दें उसका एक पैर यहां धरती पर और दूसरा सचखंड में हो। ’’ इस पर पूज्य बाबा सावण शाह जी ने कहा, ‘‘ठीक है भाई, हमें तेरी यह बात भी मंजूर है। ’’पूज्य सार्इं जी ने एक बार फिर अर्ज करते हुए कहा, सच्चे पातशाह जी! हम कोई नया धर्म नहीं चलाना चाहते। ‘‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’’ नारा बोलना चाहते हैं। जिसको सभी धर्म वाले मानें ’’। इस पर बाबा सावण शाह जी ने फरमाया, ‘‘ हे मस्ताना! तुम्हारी मौजा, तुम्हारे लिए, ‘‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’’ मंजूर किया। ये नारा सारी दुनियां में ही नहीं अपितु दोनों जहानों में काम करेगा।’’
80 वर्षीय लाजवंती आज भी अपने ‘गुरु’ के लिए पूर्णतया समर्पित हैं। आज से करीब 68 साल पहले लाजवंती ने पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज से नाम की अनमोल दात प्राप्त की थी तब उसकी आयु 12 वर्ष की थी। उस समय वह अपने माता-पिता के साथ गांव कड़ा, जिला सरसा में रहती थी थी। लाजवंती ने बताया कि उसकी माँ सार्इं मस्ताना जी की मुरीद थी। बेपरवाह मस्ताना जी उसकी माता महंगो बाई को नाम से बुलाया करते थे, उन्होंने बताया कि एक दिन मैं सरसा आश्रम में मिट्टी की सेवा कर रही थी, तभी अचानक सार्इं जी दर्शन देने आए। इस दौरान मेरी माँ ने पूज्य सार्इं जी से हमारे घर चरण डालने की अर्ज की। मस्ताना जी ने आशीर्वाद से नवाजते हुए हमारी विनती स्वीकार की और अपने पवित्र चरण हमारे घर टिकाए। लाजवंती की शादी रादौर में नथूराम मेहता के साथ हुई। उनके दो बेटियां व दो बेटे हैं, पोते, पोतियां व दोहते-दोहतियां हैं। सभी ने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से नामदान लिया हुआ हैं। लाजवंती के बेटे प्रेमचंद इन्सां ने बताया कि जब वह छोटे थे तब आवाजाही के साधन बहुत कम थे। उनकी माता लाजवंती कई-कई घंटे डेरा सच्चा सौदा सेवादारों को लेकर जाने वाली गाड़ी का इंतजार करती रहती थी। लेकिन सेवा में हमेशा तत्पर रहती थी।
-लाजवंती (80 वर्षीय), रादौर, जिला यमुनानगर।
हिसार के ब्लॉक गंगवा निवासी केसरी देवी इन्सां का भरा-पूरा परिवार है। केसरी देवी प्रदेश के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा की माता जी हैं। केसरी देवी का कहना है कि आज से 60 साल पहले उन्होंने सरसा आश्रम में बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के सत्संग से प्रभावित होकर ‘गुरुमंत्र’ की अनमोल दात ली थी। उन्हें पूज्य सार्इं जी के नूरी स्वरूप के दर्शन और आशीर्वाद भरपूर मिला। केसरी देवी कहती है मैं स्वयं को भाग्यशाली समझती हूँ जिसे पूज्य सार्इं जी, परम पिता शाह सतनाम जी महाराज व पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के दर्श-दीदार करने का मौका मिला। केसरी देवी का कहना है कि तीनों पातशाहियों ने उनके घर पर पावन चरण टिकाए हुए हैं। केसरी देवी ने बताया कि जब गंगवा में डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम बना तब आश्रम निर्माण के दौरान उनके पति राजाराम व उन्होंने बहुत सेवा की। पूज्य सार्इं जी के पावन आशीर्वाद की बदौलत ही उनका बेटा आज डिप्टी स्पीकर है।
केसरी देवी इन्सां (90 वर्षीय), गंगवा, हिसार।
पुराने समय में समाज के लोगों में जात-पात का भेदभाव बहुत था, मुझ में भी ये भावना थी। लेकिन पूज्य सार्इं जी के एक करिश्में ने मेरी जिन्दगी बदल दी। बेपरवाह सार्इं जी से शाह मस्ताना जी धाम में ‘नाम’ दान लेने के बाद एक दिन जब मैं आश्रम में लंगर की सेवा कर रही थी तो वहां एक काले रंग की महिला जिसकी एक बाजू टूटी हुई थी, वो भी लंगर बना रही थी। मैं लंगर की सेवा तो कर रही थी, लेकिन मेरे मन पर जात-पात का रंग अभी भी चढ़ा हुआ था। लेकिन उस दिन अचानक मस्ताना जी महाराज वहां आ गए और सीधा उस माता के पास गए जो काले रंग की थी। पूज्य सार्इं जी ने उसके हाथ का बना लंगर बहुत खुश होकर खाया। मैं ये सब देख रही थी। मुझे समझ आ गया था कि भगवान के बनाए सभी जीव एक समान हैं। जब संत, पीर, फकीर किसी से जात-पात का भेदभाव नहीं करते तो मैं कैसे कर सकती हूँ। इतना ही नहीं पूज्य सार्इं जी अक्सर सेवा कार्य के दौरान अपने हाथों से सेवादारों को मतीरे खिलाते थे। पूज्य सार्इं जी फरमाते ‘‘ लोग मौसम के अनुसार मतीरे खाते हैं और संत बे-मौसम मतीरे खिलाते हैं।
-रेशमा देवी (95 वर्षीय) पुणे, महाराष्टÑ।
रूहों के आए जी आज वणजारे…
पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का जन्म विक्रमी संवत् 1948 यानि सन् 1891 में कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन गांव कोटड़ा, तहसील गंधेय, रियासत कोलायत (बिलौचिस्तान) वर्तमान पाकिस्तान में पूज्य पिता श्री पिल्ला मल जी के घर, पूज्य माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से हुआ। जब आप जी का इस धरती पर आगमन हुआ तो हर एक कण अलौकिक प्रकाश से दमक उठा। आप जी के पूज्य पिता जी गांव में ‘शाह जी’ के नाम से प्रसिद्ध थे। वे धार्मिक विचारों के ईमानदार व्यक्ति थे। आप जी अपनी चार बड़ी बहनों के लाडले अनुज थे। आप जी के बचपन का नाम ‘खेमामल’ था। पूज्य माता तुलसां बाई जी आप जी को बहुत लाड़-प्यार करती थी। पूज्य माता जी ने आप जी के अवतार धारण करने के पश्चात् लगभग दो माह तक आप जी को एक क्षण के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने दिया और हमेशा अपनी गोद में ही लिए रहतीं।
डेरा सच्चा सौदा की स्थापना
पूजनीय सावण सिंह जी महाराज ने पूज्य सार्इं जी को अपने खजाने में से सवा रूपया रूहानी ताकत देकर सर्व-समर्थ स्वयं परमात्मा बनाकर जीवों का उद्धार करने की पूरी जिम्मेवारी सौंपी और बागड़ का बादशाह बनाकर वर्ष 1946 में सरसा भेज दिया। पूज्य सार्इं जी ने सरसा शहर से दो कि.मी. दूर स्थित सरसा-भादरा मार्ग पर फावड़े का टक लगाकर 29 अप्रैल 1948 को सर्व धर्म संगम डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की। डेरा सच्चा सौदा के शुभ मुहूर्त के समय मुंबई के एक सत्संगी कविराज ने जो भजन गाया, उसकी टेक थी ‘‘ हरि की कथा कहानियां, गुरमीत सुनाइयां’’ पूज्य सार्इं जी ने इस भजन पर अपनी मस्त वाणी में व्याख्या भी की और इसके साथ आश्रम बनाने की सेवा का कार्य जोर-शोर से शुरू हुआ। इस दौरान यहां से सांप-बिच्छू जहरीले जीव निकले। पूज्य शहनशाह जी ने सेवादारों को हुक्म फरमाया, ‘‘ किसी ने इन्हें मारना नहीं है बल्कि इन्हें सावधानी से पकड़कर आबादी से दूर छोड़कर आना है।’’ यह प्रथा आज भी डेरा सच्चा सौदा में ज्यों की त्यों चल रही है।
18 अप्रैल 1960 को बदला चोला, ये हमारा ही रूप हैं
28 फरवरी 1960 को आप जी ने श्री जलालआणा साहिब के जैलदार पूज्य सरदार वरियाम सिंह जी व पूजनीय माता आस कौर जी के लाडले हरबंस सिंह जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर विराजमान कर उन्हें रूहानियत व डेरा सच्चा सौदा की बागडोर सौंप दी। आप जी ने श्री जलालआणा साहिब के हरबंस सिंह जी को खुद खुदा के रूप में जाहिर कर शाह सतनाम सिंह जी नाम दिया। आप जी ने परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की ओर इशारा करते हुए साध-संगत को वचन फरमाए, ‘‘चाहे तुम्हें कोई सोने के बर्तन बनवा दे, सोने की धरती बनवा दे या सोने की चारपाई बनवा दे, परन्तु तुमने किसी के पीछे नहीं लगना। हमने इनको आत्मा से परमात्मा किया है, सतगुरु बनाया है। ये हमारा ही रूप हैं। इनको हमसे भी बढ़कर समझना है।’’ डेरा सच्चा सौदा के उज्जवल भविष्य के बारे आप जी ने अनेक इलाही वचन फरमाए और 18 अप्रैल 1960 को अपना नूरानी चोला बदल लिया।
इंसानियत के मार्ग पर आगे बढ़ रहा 6 करोड़ का कारवां
वर्ष 1960 में पूज्य सार्इं बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के चोला बदलने के पश्चात डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने आप जी के हुक्मानुसार हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली समेत देश के अनेक राज्यों में परमात्मा के नाम का प्रचार किया। दुनिया के नक्शे पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो ऐसा कोई हिस्सा नहीं जहां डेरा सच्चा सौदा के सेवादार मौजूद न हों। हजारों से शुरू हुआ यह कारवां आज पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन रहनुमाई में करोड़ों में तबदील हो चुका है। वर्तमान में 6 करोड़ से भी अधिक डेरा श्रद्धालु पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणा एवम् मार्गदर्शन में 134 मानवता भलाई के कार्यों द्वारा इंसानियत की अलख को जगाए हुए हैं।
रूहानी इश्क: तेरे थे, तेरे हैं, तेरे ही रहेंगे
यह बात सन् 1955 की है। तब पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज टोहाना स्थित बख्तावर सिंह की ढाणी में आए हुए थे। मैं भी पूज्य सार्इं जी को देखने के लिए गया। मैंने वहां जो देखा, उसे देखकर मैं हैराना था। मैंने देखा कि बेपरवाह सार्इं जी अपनी गद्दी के नीचे से सोना-चांदी निकालकर लोगों में बांट रहे हैं। लेकिन सार्इं जी ने खुद टाकी लगे वस्त्र पहने हुए हैं। मैं समझ गया था कि ये कोई पहुंचे हुए रूहानी फकीर हैं। मैंने सार्इं जी को सिर झुकाकर सजदा किया। पूज्य मस्ताना जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि ‘‘बेटा! मालिक कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं रखेगा।’’ तब से मैं डेरा सच्चा सौदा की ओर आकर्षित होने लगा। मैं पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के समय में भी आश्रम में जाता, सेवा करता, लेकिन नाम लेने का सौभाग्य मुझे पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से प्राप्त हुआ। पूज्य सार्इं जी के वचनानुसार आज सच में मेरे पास किसी चीज की कोई कमी नहीं है।
सीताराम इन्सां (76 वर्षीय), टोहाना, फतेहाबाद।
मैंने 25 वर्ष की उम्र में पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से ‘नाम’ शब्द लिया था। मैं अपने मायके गांव केलनियां से गांव की अन्य महिलाओं के साथ पैदल ही सरसा सत्संग सुनने जाया करती थी। बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने हमारे गांव केलनियां में भी अपने पावन चरण टिकाते हुए सत्संग किया था। मुझे याद है कि जब बेपरवाह जी घुंकावाली से पैदल चलकर नुहियांवाली साध बेला धाम में आए थे। उस समय मैं अपनी सास के साथ पूज्य सार्इं जी का सत्संग सुनने के लिए गई थी। शाह मस्ताना जी महाराज के बैठने के लिए एक ऊंचा मिट्टी का चबूतरा तैयार किया गया था। उन्होंने उस पर बैठकर सत्संग किया। उस समय सेवादार पानी छिड़कने की सेवा कर रहे थे। सत्संग के बाद साध-संगत को खूब बंूदी का प्रसाद बांटा गया। सत्संग उपरान्त पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज गांव के कुछ घरों में भी गए थे। मुझे शाह मस्ताना जी महाराज द्वारा किए गए वचन याद है। उन्होंने सरसा में सत्संग के दौरान वचन करते हुए फरमाया था कि ‘‘इस जगह (पुराना आश्रम) के आस-पास अब तो खाली जगह पड़ी है, लेकिन आने वाले समय मेंं यहां हर तरफ संगत ही संगत होगी।’’
नात्थी देवी इन्सां (90 वर्षीय) नुहियांवाली, सरसा।
यह बात सन् 1953 की है जब मैं अपनी बुआ के पास फता मालोका (पंजाब) में पढ़ने के लिए गया हुआ था। मैं स्कूल के पास बस स्टैंड पर आया तो वहां पर फूलों से सजी जिप्सी में शहन शाहों के शहंशाह शाह मस्ताना जी महाराज को देखा। साध-संगत की भीड़ भी खड़ी थी। पूज्य सार्इं जी ने सबको अपना पावन आशीर्वाद दिया और ‘बल्ले-बल्ले’ वचन फरमाए। दसवीं तक की पढ़ाई करने के बाद मुझे हरियाणा सिंचाई विभाग में सरकारी नौकरी मिल गई। लेकिन मुझे सार्इं मस्ताना जी का रूहानी तेज अपनी और आकर्षित करता रहता। नाम लेने से पहले मेरे स्वप्न में बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज आते रहते। फिर सन् 1974 में मैंने पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से डेरा सच्चा सौदा में मासिक सत्संग के दौरान ‘गुरुमंत्र’ लिया। नामदान लेने के बाद सब नशों का त्याग कर सारे परिवार को भी गुरु चरणों में जोड़ा। आज पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन शिक्षा पर चलकर इंसानियत की सेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।
बलदेव सिंह इन्सां, गांव चांदपुरा, जाखल, फतेहाबाद।
सन् 1953 में मात्र 14 वर्ष की आयु में मुझे दोनों जहान के मालिक पूज्य सार्इं जी से गुरुमंत्र की दात प्राप्त हुई। मैं बहुत खुशनसीब इंसान हूँ जिसे खुद खुदा की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। बेपरवाह सार्इं जी के साथ बिताया गया समय, उनकी मीठी बातें आज भी मुझे याद हैैं। पूज्य सार्इं जी हमेशा सूती धागे से बनी धोती, कुर्ता, पगड़ी व चमड़े से बनी जूती पहनते थे। सार्इं जी हमेशा अपने साथ एक लाठी भी रखते थे। पूज्य सार्इं जी साध-संगत को हमेशा सेवा व सुमिरन से जोड़े रखते थे। उन्हें जहां-जब ठीक लगता वही पर सत्संग लगा लेते। बेपरवाह जी ने मुझे कई बार सेवा का मौका दिया। एक बार पूज्य सार्इं जी मुझे कालांवाली मंडी से 52 क्विंटल अनाज की पिसाई के लिए पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के साथ भेजा। सार्इं जी के हुकमानुसार नुहिंयावाली साध वेला, फेफाना, दारेवाला, जलालआणा व डेरा सच्चा सौदा सरसा में कई बार सेवा का मौका मिला। उनकी सेवाओं की बदौलत आज मैं और मेरा परिवार इसी राह पर अग्रसर हैं।
तनसुख, नम्बरदार, गांव सादेवाला, रानियां।
सन् 1958 में जब पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने डबवाली के मास्टर गुलजारी लाल के घर के बाहर सत्संग लगाया था। उस समय मैंने नाम की अनमोल दात प्राप्त की थी, तब मेरी आयु 20 वर्ष की थी। उस रात मैं सिनेमा घर में फिल्म देखने के लिए जा रहा था जब मैं सिनेमा हॉल के बाहर पहुंचा तो फिल्म खत्म हो चुकी थी और लोग अपने घरों की ओर वापिस जा रहे थे। जिसको देखकर वह भी वापिस चल पड़ा। जैसे ही वह रेलवे लाइन के पास पहुंचा तो उसने देखा की मास्टर गुलजारी लाल के घर के बाहर काफी भीड़ एकत्रित थी। जिन्हें देखकर मैं भी वहां चला गया। वहां पर पहुंचने पर मुझे पता चला कि पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज सत्संग फरमा रहे हैं और सत्संग में लगभग 35-40 लोग थे। बस फिर क्या था मैं भी वहां बैठ गया और रूहानियत का सत्संग सुना। सत्संग खत्म होने के बाद सेवादारों ने ‘नाम शब्द’ लेने वालों को घर के अंदर बुलाया और मैं चला गया। पूज्य सार्इं जी से नाम की अनमोल दात लेने के बाद बुराइयों व नशों से छुटकारा तो मिला ही, साथ ही राम नाम से जुड़कर परमात्मा को पाने का सही मार्ग भी मिला।
कृपाल सिंह (82 वर्षीय), एकता नगरी, डबवाली।
रामपुर थेड़ी में सत्संग था और पता लगा कि सरसा से कोई फकीर आया है। हम भी साईकिल पर सत्संग सुनने के लिए गए। बहुत कम तादाद में हम लोग थे और हमने नजदीक बैठकर पूज्य सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का सत्संग सुना। बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी के बेबाक बोल थे। पूज्य सार्इं जी ने फरमाया कि सत्संग सुनने व सुनाने के पैसे नहीं लगते। सत्संग के दौरान ही ढोलक बजाने वाले को पूज्य सार्इं जी ने कहा कि तुम कहीं भी सत्संग में जाते हो तो ढोलक बजाने के पैसे लेते हो। ढोलक बजाओ पर सत्संग के नाम से पैसा नहीं लेना। पूज्य सार्इं जी परम पिता परमात्मा के इश्क के ऐसे वचन सुनाते जिनको सुनकर सत्संग में बैठी संगत मस्ती से नाचने लगती। बेपरवाह जी के नूरी स्वरूप के दर्शन पाकर ऐसा लगा मानो भगवान स्वयं धरती पर आ गया हो। पूज्य सार्इं के सत्संग से प्रभावित होकर नामदान प्राप्त किया और फिर सेवा, सुमिरन में जुट गए।
धर्मचंद कंबोज, मोजु की ढाणी, ब्लॉक ऐलनाबाद।
सन् 1960 की बात है जब में तकरीबन 9-10 वर्ष का था। लगातार तीन दिन मैं अपने दोस्तों के साथ साइकिल पर सत्संग सुनने के लिए गया। हम जब सत्संग सुनने के लिए जाया करते थे, तो बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज हमसे आश्रम में पड़ी र्इंटों को इधर-उधर करवाते थे। पहले गारे से कच्ची र्इंटे बनाई जाती थी, पूज्य सार्इं जी स्वयं पास खड़े होकर सेवा करवाते और सेवादारों को समझाने के लिए स्वयं काम करके भी दिखाते। लेकिन हमें हैरानी तब होती थी जब हमारे सामने देखते ही देखते कुछ ही पलों में र्इंटों का बड़ा भंडार लग जाता। पूज्य सार्इं जी से ‘गुरुमंत्र’ लेने के बाद जीवन में बेशुमार खुशियों का अनुभव हुआ। मैंने तीनों पातशाहियों का पावन स्वरूप देखा है। रूह एक ही है, बस बॉडी अलग-अलग है।
सरवन सिंह, पूर्व सरपंच, गांव प्यार नगर, ऐलनाबाद।
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