ऑनलाइन गेमिंग पर बने ठोस नियम

भारत में बच्चे, बूढ़े और जवान सभी मोबाइल से रमी और तीन पत्ती जैसे आॅनलाइन गेमों के दीवाने हो गये हैं। खरबों रुपये की इस इंडस्ट्री में कोरोना काल के बाद 38 फीसदी की सालाना विकास दर बतायी जा रही है। गेमिंग जैसी इंडस्ट्री से जुड़े स्टार्टअप और यूनिकॉर्न के सहारे देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर ले जाने का सपना भी देखा जा रहा है। केंद्र सरकार ने गेमिंग पर नियमों का जो मसौदा जारी किया है, वे समाज, अर्थव्यवस्था और कानून के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। इन नियमों को नोटिफाई करने के बाद गेमिंग कंपनियां स्व-नियमन के लिए खुद का नियामक बनायेंगे, जिसके तहत सभी कंपनियों का पंजीकरण जरूरी होगा।

गेम खेलने वालों के केवाइसी और सत्यापन के साथ कंपनियों को भारत में अपने अधिकारियों की नियुक्ति भी करनी होगी। गेमिंग में जमा पैसे की निकासी, रिफंड और फीस आदि का विवरण भी रखना होगा। भारत में आॅनलाइन गेमिंग के लिए अभी तक कोई कायदा-कानून नहीं था। इस लिहाज से इन्हें संतुलित और अच्छी शुरूआत माना जा सकता है। पूरी तस्वीर को समझने और बेहतर कानून बनाने के लिए इन ड्राफ्ट नियमों का चार पहलुओं से विश्लेषण जरूरी है। आॅनलाइन गैंबलिंग पूरी दुनिया में सिरदर्द बन गया है।

ब्रिटेन के हाउस आॅफ लॉर्ड्स की रिपोर्ट के अनुसार आॅनलाइन गैंबलिंग कोरोना से भी खतरनाक महामारी हो गया है। पिछले चार सालों में आॅनलाइन जुए की लत के शिकार हुए लोगों ने कैसिनो और आॅनलाइन सट्टेबाजी में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये गंवा दिये हैं। इसके कहर से समाज के अनेक वर्गों में खुदकुशी, तलाक, दिवालियापन, बेरोजगारी और अवसाद के साथ बड़े पैमाने पर अपराध बढ़ रहे हैं। गेमिंग कंपनियां मध्यस्थ (इंटरमीडियरी) नहीं हैं- आॅनलाइन गेम अनेक तरह के होते हैं। उनमें एक स्किल यानी कौशल वाले और दूसरे चांस यानी सट्टेबाजी के वर्गीकरण प्रमुख हैं। ड्राफ्ट नियमों में ऐसे अनेक प्रकार के गेमिंग के बारे में स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं।

सोशल मीडिया कंपनियों का काम पोस्टमैन की तरह ही होता है, इसलिए उन्हें इंटरमीडियरी कहा जाता है, जिनके आइटी एक्ट के तहत सीमित कानूनी जवाबदेही होती है। लेकिन गेमिंग कंपनियां तो गेम खिलाने के साथ पैसे का कारोबार भी करती हैं। इसलिए ड्राफ्ट नियमों में गेमिंग कंपनियों को इंटरमीडियरी का दर्जा देना सरासर गलत है। इसलिए गेमिंग के नये नियमों को नोटिफाई करने के बाद भी कानूनी अड़चनों की वजह से समाज और देश को सीमित लाभ ही होगा।

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