Death Penalty In Qatar: कतर में आठ भारतीय पूर्व नेवी अफसरों को मौत की सज़ा के असल मायने!

Death Penalty In Qatar
Death Penalty In Qatar: कतर में आठ भारतीय पूर्व नेवी अफसरों को मौत की सज़ा के असल मायने!

Death Penalty In Qatar: सबमरीन प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारियां इजरायल को लीक करने के आरोप में जिन पूर्व भारतीय अफसरों को कतर की अदालत ने सज़ा ए मौत का ऐलान किया है,यह मामला पूरा संदिग्ध लग रहा है। क्योंकि जब भी किसी भी देश के नागरिक को किसी भी आरोप में गिरफ्तार किया जाता है तो सबसे पहले उसे देश की एंबेसी को सूचित किया जाता है, जबकि इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। हालांकि गिरफ्तारी से रोका नहीं जा सकता लेकिन एम्बेसी सहित उनके परिजनों को सूचित करना जरूरी होता है। ताकि उन्हें सही समय पर कानूनी सहायता मुहैया करवाई जा सके।

दोहा स्थित दहरा ग्लोबल खमीस अल अजमी कंपनी में नौकरी करने वाले आठ भारतीय पूर्व अफसरों को कतर की अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सज़ा के पीछे आखिर उनका खास मकसद क्या है? क्या इजराइल व फिलिस्तीन आतंकवादी संगठन हमास के बीच चल रही जंग के दौरान भारत ने इजराइल का समर्थन किया तो अब कतर भारत से इसका बदला ले रहा है ? ऐसा नहीं तो एक और बात सोचने वाली है एक कंसलटेंसी एजेंसी में काम करने वाले यह भारतीय अफसरों ने यदि जासूसी की भी हो तो यह किसके कहने पर जासूसी करने गए थे? क्या इजरायल के साथ भारत की कोई गुप्त संधि थी? इन सभी अहम बिंदुओं पर सोचने की जरूरत है।

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Death Penalty In Qatar: कतर में आठ भारतीय पूर्व नेवी अफसरों को मौत की सज़ा के असल मायने!

भारत सरकार को बिना देरी किए कार्रवाई करनी चाहिए

इस पर भारत सरकार को तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है। विदेश मंत्रालय इस मामले में लगा भी हुआ है,लेकिन अपील करने का आधा समय बीत चुका है। इसे में यदि 8 दिन ओर चले गए तो इन नेवी अफसरों की जान पर संकट बन जाएगा। क्योंकि क़तर ऐसा देश है जो जासूसी जैसे गंभीर मामलों में कई बार लोवर कोर्ट के फैसले पर भी मौत के अंजाम तक पहुँचा देता है। इस मामले में नेपाल के एक युवक को अदालती फैसला आते ही कुछ दिन बाद गोली मारकर सज़ा देने का उदाहरण दुनियाभर के सामने है।

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सर्विस प्रोवाइडर्स कम्पनी में कार्यरत थे सभी भारतीय असफर

दरअसल यह कंपनी टेक्नोलॉजी और कंसल्टेसी सर्विस प्रोवाइड करती थी और इसी कंपनी में ये आठों नेवी अफसर भी काम करते थे। इन पर सबमरीन प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारियां इजरायल को लीक करने के आरोप हैं। सबसे चिंता करने की बात यह है की विश्व के किसी भी देश के पास दो विशेष अधिकार होते हैं। यदि उसके ही देश के लोग किसी भी मामले में देश के खिलाफ बोले तो उन्हें देशद्रोह के आरोप में कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। इसी प्रकार किसी दूसरे देश का नागरिक उसके देश में आकर रहता है तो उसे भी शक के दायरे में आने पर जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है। पर इसके पर्याप्त सबूत होने चाहिए। गिरफ्तारी के बाद संबंधित देश और परिजनों को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए।

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नहीं किया गया अंतर्राष्ट्रीय धर्म का पालन

कतर प्रशासन ने इनकी गिरफ्तारी के बाद इस अंतरराष्ट्रीय धर्म का पालन नहीं किया इसके पीछे उनका खास मकसद क्या था यह सोचने की बात है। भारतीय नेवी अफसर के मामले में तो गिरफ्तारी के समय से ही बिना आरोप तय किया इनके साथ थर्ड डिग्री का टॉर्चर किया गया। इन्हें ऐसी कैद में रखा गया जहां सिर्फ अकेला कैदी ही रहता है। यानी इनको किसी से भी मिलने की इजाजत नहीं थी।

सॉलिटेरी कन्फाइनमेंट यानी थर्ड डिग्री टॉर्चर

कतर के नियमानुसार उन्हें इल्जाम साबित न होने के बावजूद भी सॉलिटेरी कन्फाइनमेंट यानी एकांत कैद मिलती है। इनको अपने ही कैदी साथियों से भी मिलने पर कड़ी पाबंदी थी, हालांकि इन सभी आठों अफसरों को कतर के सुरक्षाबलों ने 30 अगस्त 2022 को गिरफ्तार किया था। उसी दिन से इन्हें सीरीज सॉलिटेरी कन्फाइनमेंट में भेज दिया जाता है।

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करीब एक महीने बाद मिले थे भारतीय राजदूत

करीब एक महीने बाद दोहा में भारतीय राजदूत और डिप्टी हेड आफ मिशन जेल में बंद 8 पूर्व भारतीय नेवी अफसर से मिलने जाते हैं। तब जाकर इन्हें कानूनी मदद मिलने का रास्ता साफ होता है। उससे भी ज्यादा सोचने की यह बात है दहरा ग्लोबल खामिस अल अजमी कतर की वह कंपनी है, जो कतर अमीरी नेवल फोर्स को ट्रेनिंग देने के साथ-साथ उसे लॉजिस्टिक्स यानी साजो सामान मुहैया करवाती है। उन साजो सामान की मरम्मत में भी यही एजेंसी मदद करती थी। इस मामले में 3 अक्टूबर 2022 को एक नाटककीय घटनाक्रम सामने आता है।

कंपनी का सीईओ समर्थन में आया तो उसे भी किया गिरफ्तार

दहरा ग्लोबल खमीस अल अजमी के सीईओ खमीस अल अजमी अपनी कंपनी में काम करने वाले अफसर की मदद के लिए सामने आ जाते हैं। लेकिन कतर सरकार ने उनकी बात को अनसुना करते हुए उल्टा उन्हें ही गिरफ्तार कर लिया। उन्हें भी सीधे 2 महीने के लिए सॉलिटेरी कन्फाइनमेंट यानी एकांत कैद में डाल देते हैं। यहां यह बताना भी उचित होगा कि रॉयल ओमान एयरफोर्स से रिटायर्ड खमीस अल अजमी दहरा ग्लोबल खमीस अल अजमी के मालिक थे और उनकी कंपनी इन दोनों कतर की नौसेना के लिए काम कर रही थी। इसी कंपनी में भारत के आठों नेवी ऑफिसर की कार्यरत थे। इनके अलावा इस कंपनी में अधिकतर भारतीयों को ही नौकरी पर रखा गया था। कतर की खुफिया एजेंसी की राडार पर आ चुकी इस कंपनी ने दोहा से अपना सारा कामकाज समेट दिया और धीरे-धीरे इसके ज्यादातर कर्मचारी अपने-अपने घरों को वापस भी लौट गए, जिनमें से अधिकतर भारतीय ही थे।

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भारत सरकार के सामने ये हैं विकल्प

हालांकि यह पहला मौका नहीं है। जब कतर ने किसी दूसरे देश कि नागरिकों को सजा मौत सुनाई हो। इससे पहले भी खाड़ी देश ने फिलिपींस के तीन अफसर को जासूसी कर देते हुए मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन बाद में इस मामले में जब अपील की गई तो कोर्ट ने सजा कम करके आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था। अब भारत के पास भी दो विकल्प बचते हैं। पहले तो भारत इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जा ले जाकर चुनौती दे सकता है। दूसरा इस केस में कतर के अमीर से अपील की जा सकती है कि यदि संभव हो तो आठ भारतीय अफसर को माफ कर दिया जाए। भारत सरकार ऐसा कर भी रही है। लेकिन इससे पहले इस बात पर गहन मंथन करने की जरूरत है कि क्या इन भारतीय अफसर ने वास्तव में जासूसी की थी या नहीं? कभी यह इसराइल हमास के युद्ध का नतीजा तो नहीं है।

हालांकि इन्हें गिरफ्तार 2022 में कर लिया गया था, लेकिन सजा जिस गति से दी गई है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि भारत हमास- इजरायल युद्ध में इजराइल के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है,पर ये भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत सरकार ने इन्सानियत का फर्ज निभाते हुए गाज़ा के लोगों के लिए भी आवश्यक खाद्य पदार्थ भेजे हैं। भारत के इस स्टैंड से कतर सहित सभी देश खफा चल जा रहे हैं। कतर की कोर्ट ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अफसर को मौत की सजा सुनते ही भारत सरकार भी हरकत में आ गई है। इस मामले में भारतीय विदेश मंत्रालय ने दखल देते हुए कहा है कि नौसेना के पूर्व अफसर की रिहाई करवाने के लिए सभी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि वह नौसेना के इन आठ अफसर को हर मदद मुहैया करवाने के लिए तैयार है। लेकिन तब तक कभी देरी न हो जाए।

डिप्लोमेटिक विंडो के जरिए आस बरकार

भारत सरकार अब डिप्लोमेटिक विंडो के जरिए इस मामले में राहत की कोशिश कर रही है। कतर के सुरक्षा बलों ने जब इन भारतीय गिरफ्तार किया था। तब उन्होंने कहा था किया भारतीय अफसर इसराइल के लिए जासूसी कर रहे थे। इस काम के बदले उन्हें पैसे दिए जा रहे थे। उन्होंने यह मामला अपने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ बताया था। खास बात यह है कि भारत के आठ पूर्व नौसेना अधिकारियों को 26 अक्टूबर को फांसी की सजा सुना दी गई थी लेकिन भारत सरकार का विदेश मंत्रालय इस मामले में किसी भी प्रकार के कार्रवाई के लिए आगे बढ़ने से पहले डिटेल फैसले का इंतजार कर रहा है। जबकि डिटेल फैसला कतर में भारत के हाई कमिश्नर को उसी दिन मिल जाना चाहिए था। अब इस मामले में भारत के विदेश मंत्रालय को यह भी निगरानी रखनी होगी की कभी नेवी के इन आठ अफसर के साथ वही कहानी न बन जाए जो नेपाल के नागरिक के साथ बनी थी। यह पूरी तन्मयता से सोचने का विषय है।

डॉ. संदीप सिंहमार।
वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।