Nanital History: नैनीताल का इतिहास पौराणिक कथाओं और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रभाव दोनों से जुड़ा हुआ है। मूल रूप से “खासदेश” के नाम से जाना जाने वाला और खासियों द्वारा शासित यह क्षेत्र हिंदू पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह 64 शक्ति पीठों में से एक है, जहाँ सती की आँखें गिरी थीं, जिसके कारण इस झील का नाम “नैनी झील” पड़ा। अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी में नैनीताल को एक हिल स्टेशन और ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में स्थापित किया, जिसने इसके विकास को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया।

पौराणिक उत्पत्ति: स्कंद पुराण और स्थानीय मान्यता के अनुसार, नैनीताल 64 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ सती की बाईं आँख (नैन) गिरी थी, जिससे झील का नाम पड़ा।
प्रारंभिक इतिहास: यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से कुमाऊँ क्षेत्र का हिस्सा था और यहाँ कत्यूरी और चंद राजाओं सहित कई राजवंशों का शासन था।
ब्रिटिश खोज: 1839 में, ब्रिटिश व्यवसायी पी. बैरन ने झील पर नजर डाली और इसे ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थल के रूप में पहचाना, जिससे एक यूरोपीय उपनिवेश का विकास हुआ।
हिल स्टेशन विकास: ब्रिटिश शासन के दौरान नैनीताल एक लोकप्रिय हिल स्टेशन और संयुक्त प्रांत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गया।
1880 भूस्खलन: 1880 में भारी वर्षा और एक छोटे भूकंप के कारण हुए एक बड़े भूस्खलन से काफी नुकसान हुआ और जान-माल का नुकसान हुआ, जिससे शहर के बुनियादी ढांचे पर असर पड़ा और इसके परिदृश्य में बदलाव आया।
स्वतंत्रता के बाद: भारत की स्वतंत्रता के बाद, नैनीताल उत्तर प्रदेश का हिस्सा बन गया और बाद में, 2000 में, इसे उत्तराखंड के नवगठित राज्य में शामिल कर लिया गया। Nanital History