दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर | Air Pollution

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नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। राजधानी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) (air pollution) में मंगलवार को वायु प्रदूषण का स्तर बेहद खराब स्तर दर्ज किया गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के अनुसार आज सुबह 08.30 बजे दिल्ली में वायु प्रदूषण के हालात बेहद गंभीर स्थिति में रहे है। कई इलाकों में वायु गुणवत्ता का स्तर 400 के दर्ज किया गया। वहीं नरेला में एक्यूआई 571 के खतरनाक स्तर दर्ज किया गया है। आईटीओ पर एक्यूआई 441, राजपथ पर 417 और मंदिर मार्ग पर 352 दर्ज किया। इस बीच फसलों की कटाई के बाद पराली जलाने के मामले बढ़ने से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ सकता है। प्रदूषण का स्तर बढ़ने के कारण लोगों को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। तीन दिनों से दिल्ली और एनसीआर में स्मॉग की परत और धुंध देखी जा रही है और फिलहाल इससे राहत के आसार नहीं दिख रहे है।

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प्रदूषित शहरों में घुटता जीवन !

Polluted-city!

 

स्विट्जरलैंड की ‘आईक्यू एयर’ संस्था द्वारा बीते दिनों जारी विश्व वायु गुणवत्ता सूचकांक-2020 रिपोर्ट के मुताबिक,दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में 22 शहर भारत के हैं। इस सूचकांक में चीन का खोतान शहर शीर्ष पर है,जबकि गाजियाबाद दुनिया का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में दसवें स्थान पर है,लेकिन यह दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बन कर उभरी है। शीर्ष 30 प्रदूषित शहरों की फेहरिस्त में उत्तर प्रदेश के दस और हरियाणा के नौ शहर शामिल हैं। वहीं 106 देशों की इस सूचकांक में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे प्रदूषित देश है।

विकसित और अमीर देश प्रदूषण फैलाने में अपेक्षाकृत आगे

 

इसके विपरीत स्वीडन, आइसलैंड, फिनलैंड, नार्वे और पुर्तो रिको की गिनती दुनिया के सबसे स्वच्छ देशों में हुई है। विकसित और अमीर देश प्रदूषण फैलाने में अपेक्षाकृत आगे हैं, लेकिन इसका दंश निम्न और मध्यम आय वाले देशों को अधिक भुगतना पड़ता है। दुनिया का एक चौथाई वायु प्रदूषण भारतीय उपमहाद्वीप के चार देशों-बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान में देखने को मिलता है। वायु प्रदूषण केवल जनस्वास्थ्य और पर्यावरण को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि जीवन-प्रत्याशा, अर्थव्यवस्था, पर्यटन और समाज पर भी इसका ॠणात्मक असर पड़ता है। वायु प्रदूषण की गहराती समस्या वर्तमान और भावी दोनों पीढ़ियों के लिए मुसीबतें खड़ी करती हैं। इस तरह एक पीढ़ी के कारस्तानियों की सजा आने वाली कई पीढ़ियों को भुगतनी पड़ती है।

The danger of air pollution is not less than the epidemic

1990 की तुलना में 2019 में वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्यु दर में 115 फीसद की वृद्धि

ब्रिटिश स्वास्थ्य पत्रिका ‘द लैंसेट’ की प्लेनेटरी हेल्थ रिपोर्ट-2020 के मुताबिक 2019 में भारत में सिर्फ वायु प्रदूषण से 17 लाख मौतें हुईं,जो उस वर्ष देश में होने वाली कुल मौतों की 18 फीसद थी। हैरत की बात यह है कि 1990 की तुलना में 2019 में वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्यु दर में 115 फीसद की वृद्धि हुई है। यही नहीं, देश में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारी के इलाज में एक बड़ी धनराशि खर्च हो जाती है। 2019 में वायु प्रदूषण के कारण मानव संसाधन के रूप में नागरिकों के असमय निधन होने तथा बीमारियों पर खर्च के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2.60 लाख करोड़ रुपये की कमी आई थी। शहरों में आधुनिक जीवन की चकाचौंध तो है, लेकिन इंसानी जीवनशैली नर्क के समान होती जा रही है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि सुख-सुविधाओं के बल पर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले शहरों में खुलकर सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। हाल के कुछ दशकों में वायु प्रदूषण एक बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम के रूप में सामने आया है। कई अनुसंधानों से यह तथ्य सामने आया है कि प्रदूषित इलाकों में लगातार रहने से बीमारियां बढ़ती हैं और जीवन प्रत्याशा घटने लगती है।

Air pollution situation in Delhi is serious on Friday

जानें, शोधकर्ताओं ने क्या कहा… air pollution

ऐसा ही एक शोध बीते दिनों कार्डियोवैस्कुलर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ, जिसमें शोधकतार्ओं ने माना कि वायु प्रदूषण के चलते पूरे विश्व में जीवन प्रत्याशा औसतन तीन वर्ष तक कम हो रही है, जो अन्य बीमारियों के कारण जीवन प्रत्याशा पर पड़ने वाले असर की तुलना में अधिक है। मसलन तंबाकू के सेवन से जीवन प्रत्याशा में तकरीबन 2.2 वर्ष, एड्स से 0.7 वर्ष, मलेरिया से 0.6 वर्ष और युद्ध के कारण 0.3 वर्ष की कमी आती है। बीमारी,युद्ध और किसी भी हिंसा में मरने वालों से कहीं अधिक संख्या वायु प्रदूषण से मरने वालों की है। जबकि इस अपराध के लिए किसी खास व्यक्ति या संस्था को दोषी ठहराया नहीं जा सकता है। देश के कई शहर प्रदूषण की घनी चादर ओढ़े है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 84 फीसद भारतीय उन इलाकों में रह रहे हैं, जहां वायु प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के मानक से ऊपर है। वहीं वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित इलाकों में रहने वाले भारतीय पहले की तुलना में औसतन पांच साल कम जी रहे हैं। कई राज्यों में यह दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है।

Air pollution reduces life expectancy

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आने वाली पीढ़ियों को हम… air pollution

आधुनिक अनुसंधान इस बात का भी दावा करते हैं कि प्रतिदिन प्रदूषित हवा में सांस लेना तंबाकू सेवन करने की तुलना में कहीं ज्यादा खतरनाक है। दिलचस्प बात यह है कि तंबाकू का सेवन एक निश्चित आबादी ही करती है, लेकिन सांसों के जरिए प्रदूषित हवा बड़ी आसानी से हम सबों के फेफड़ों तक पहुंच जाती है। व्यक्ति चाहे तो तंबाकू खाने या धुम्रपान करने की अपनी आदत को कुछ महीनों में छोड़ सकता है, लेकिन खुली हवा में सांस लेना कोई पलभर के लिए भी भला कैसे छोड़ सकता है! दूसरी तरफ देश में वायु प्रदूषण के खतरे से बचाव को लेकर नागरिकों में पर्याप्त सजगता का अभाव दिखाई पड़ता है। प्रदूषित वायु की गुणवत्ता सुधार कर दुनियाभर में हर साल होने वाली करीब सत्तर लाख मौतों को टाला जा सकता है। भारत में हर साल केवल प्रदूषण से पांच लाख बच्चों की मौत हो जाती है। ऐसे में वर्तमान पीढ़ी को ही यह तय करना होगा कि आने वाली पीढ़ियों को हम कैसा परिवेश मुहैया कराना चाहते हैं?

जब हम शुद्ध हवा के लिए तरसेंगे! | air pollution

बहरहाल वायु प्रदूषण का यह जानलेवा स्वरूप अंधाधुंध विकास और मानव के पर्यावरण-प्रतिकूल व्यवहार व कृत्य का ही गौण उत्पाद (बाइ-प्रोडक्ट) है। प्रदूषण की वजह से इंसान असामान्य जीवन गुजारने को लाचार है। नि:संदेह तालाबंदी के कुछ महीनों में शहरों की आबोहवा स्वच्छ रही,लेकिन उसके बाद अधिकांश शहरों में प्रदूषण का स्तर जस का तस है। दरअसल शहरों में खुला, स्वच्छ और प्रेरक वातावरण का नितांत अभाव है। कहने में संकोच नहीं कि कालांतर में हमारी आने वाली पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों तथा स्वच्छ परिवेश के अभाव में घुटन भरी जिंदगी जीने को विवश होगी। वास्तव में आधुनिक जीवन का पर्याय बन चुके औद्योगीकरण और नगरीकरण की तीव्र रफ्तार तथा पर्यावरणीय चेतना की कमी के कारण पर्यावरण बेदम हो रहा है। यह भी स्पष्ट है कि अगर समय रहते वायु प्रदूषण पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया,तो वह समय दूर नहीं जब हम शुद्ध हवा के लिए तरसेंगे! हमारे पूर्वजों ने हमें कितना शुद्ध और स्वच्छ वातावरण दिया था। क्या हम आगे आने वाली पीढ़ियों को इसे उसी रूप में स्थानांतरित कर पाएंगे?

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