Daughter-in-law’s Rights: बहू का अधिकार, नहीं छीन सकता ससुराल! सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर किया पलटवार

Daughter-in-law's Rights
Daughter-in-law's Rights: बहू का अधिकार, नहीं छीन सकता ससुराल! सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर किया पलटवार

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सास, ससुर एवं बहू के विवाद में एक प्रमुख फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि बहू का ससुराल में रहने का साझा हक है और यह हक बहू से नहीं छीना जा सकता। अदालत ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 के तहत त्वरित प्रक्रिया अपनाकर ससुराल पक्ष किसी बहू को घर से नहीं निकाल सकता। Daughter-in-law’s Rights

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून, 2005 (पीडब्ल्यूडीवी) का उद्देश्य महिलाओं को ससुराल के घर या साझे घर में सुरक्षित आवास मुहैया कराना एवं उसे मान्यता देना है, भले ही साझे घर में उसका मालिकाना हक या अधिकार न हो। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 को हर स्थिति में अनुमति देने से, भले ही इससे किसी महिला का पीडब्ल्यूडीवी कानून के तहत साझे घर में रहने का हक प्रभावित होता हो, वो उद्देश्य पराजित होता है, जिसे संसद ने महिला अधिकारों के लिए हासिल करने एवं लागू करने का लक्ष्य रखा है।’’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के हितों की रक्षा करने वाले कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वे बेसहारा नहीं हों या अपने बच्चे या रिश्तेदारों की दया पर निर्भर ना रहें। Daughter-in-law’s Rights

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Daughter-in-law’s Rights: बहू का अधिकार, नहीं छीन सकता ससुराल! सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर किया पलटवार

पीठ ने कहा, ‘‘साझे घर में रहने के किसी महिला के अधिकार को इसलिए नहीं छीना जा सकता है कि वरिष्ठ नागरिक कानून 2007 के अनुसार त्वरित प्रक्रिया में खाली कराने का आदेश हासिल कर लिया गया है।’’ इस पीठ में जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल थीं। बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। हाई कोर्ट ने महिला को ससुराल के घर को खाली करने का आदेश दिया था। सास और ससुर ने माता-पिता की देखभाल और कल्याण तथा वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 के प्रावधानों के तहत आवेदन दायर किया था और अपनी पुत्रवधू को उत्तर बेंगलुरु के अपने आवास से निकालने का आग्रह किया था। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 17 सितंबर, 2019 के फैसले में कहा था कि जिस परिसर पर मुकदमा चल रहा है वो वादी की सास (दूसरी प्रतिवादी) का है और वादी की देखभाल और आश्रय का जिम्मा केवल उनसे अलग रह रहे पति का है।

बहू का सास-ससुर की संपत्ति में कितना अधिकार

देश का कानून कहता है कि मां-बाप द्वारा स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटों का अधिकार होता है। वे माता-पिता की खुद बनाई प्रोपर्टी पर अपने अधिकार का दावा कर सकते हैं। वहीं बहू सास-ससुर द्वारा अर्जित संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकती है। बहू ऐसी संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती।

हिस्सा पाने की यह है प्रक्रिया

बहुओं के अधिकार की बात की जाए तो बता दें कि पति की पैतृक संपत्ति पर बहुओं का अधिकार दो तरह से हो सकता है। अगर पति संपत्ति का अधिकार बहू को ट्रांसफर कर दे तो इस स्थिति में बहू का अधिकार उस पर हो सकता है। इसके अलावा पति के निधन के बाद बहू का अधिकार संपत्ति पर हो सकता है। शादी होने के बाद बेटी दूसरे परिवार में बहू के रूप में जाती है। हालांकि, ससुराल की संपत्ति में बहू हिस्सा मांगने की हकदार नहीं है, वहीं पिता की संपत्ति पर उसका पूरा हक होता है। आपको इस बारे में पता होना चाहिए कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच ट्रांसफर होने वाली संपत्ति पैतृक संपत्ति मानी जाती है। वहीं बंटवारा होने के बाद पैतृक संपत्ति स्व-अर्जित संपत्ति में बदल जाती है।

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