
Trump Impact: अनु सैनी। नई दिल्ली। अमेरिका में बदली इमिग्रेशन नीति का सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों और प्रोफेशनल्स पर पड़ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप की सख्त पॉलिसियों के कारण भारतीय कर्मचारियों को मिलने वाले H-1B वीजा में एक साल के भीतर ही रिकॉर्ड गिरावट देखी गई है। इस वर्ष केवल 4.5 हजार भारतीय कर्मचारियों को ही H-1B मंजूरी मिली है, जो कि पिछले दस वर्षों में सबसे कम आंकड़ा है।
H-1B वीजा मंजूरी में 37% की कमी | Trump Impact
रिपोर्ट्स के अनुसार H-1B वीजा की स्वीकृति दर में पिछले वर्ष की तुलना में 37% तक की गिरावट दर्ज की गई है। अमेरिकी इमिग्रेशन विभाग (USCIS) के डेटा से पता चलता है कि ट्रंप प्रशासन ने वीजा प्रक्रिया को सख्त बनाते हुए स्किल्ड वर्कर्स के लिए कई नए नियम लागू किए। इससे खासतौर पर भारतीय पेशेवर प्रभावित हुए हैं, क्योंकि H-1B वीजा का सबसे बड़ा हिस्सा कई वर्षों से भारतीयों के नाम ही जाता रहा है। पहले जहां भारतीय कंपनियां हजारों कर्मचारियों को विदेश भेज पाती थीं, वहीं अब यह संख्या तेजी से घटती जा रही है।
भारतीय आईटी कंपनियों पर सबसे ज्यादा असर
भारतीय कंपनियों—जैसे TCS, Infosys, Wipro, HCL और Tech Mahindra—H-1B वीजा के सबसे बड़े आवेदक मानी जाती हैं। लेकिन नई अमेरिकी नीति ने इन कंपनियों को गहरा झटका दिया है। इस साल भारत की सभी कंपनियों को मिलाकर कुल 4,500 H-1B वीजा ही जारी किए गए, जो एक दशक में सबसे कम हैं। पहले जहां TCS और nfosys जैसी कंपनियों के हजारों कर्मचारी हर साल अमेरिका भेजे जाते थे, वहीं अब इनकी स्वीकृति दर लगभग आधी रह गई है। इससे न केवल कंपनियों की विदेशी परियोजनाओं में देरी हो रही है, बल्कि वैश्विक विस्तार पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।
ट्रंप की सख्त इमिग्रेशन नीति है बड़ी वजह
H-1B में आई गिरावट के पीछे सबसे बड़ा कारण ट्रंप द्वारा लागू की गई “अमेरिकन्स फर्स्ट” नीति मानी जा रही है।
इस नीति के अनुसार:-
1.अमेरिकी कंपनियों को पहले अपने देश के नागरिकों को नौकरी देनी होगी।
2.विदेशी कर्मचारियों के लिए वीजा वेरिफिकेशन कड़ा किया गया।
3.वीजा की समीक्षा प्रक्रिया लंबी और मुश्किल बनाई गई।
4आईटी सेक्टर की नौकरियों पर विशेष नियम लागू हुए।
इसी सख्ती का नतीजा है कि 2015 से अब तक H-1B वीजा की मंजूरी में 70% तक की गिरावट देखी गई है।
कई भारतीय कर्मचारियों के सपनों पर लगा ब्रेक
अमेरिका में आईटी सेक्टर में काम करने का सपना देखने वाले हजारों भारतीय युवाओं के लिए यह फैसला बड़ा झटका है।
पहले जहां कंपनियां नए इंजीनियरों और अनुभवी प्रोफेशनल्स को अमेरिका भेजकर उन्हें ग्लोबल एक्सपोज़र दिलाती थीं, वहीं अब कंपनियों को स्थानीय अमेरिकी कर्मचारियों को प्राथमिकता देनी पड़ रही है। इस बदलाव से भारत में नौकरी के अवसरों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि कई प्रोजेक्ट्स जो पहले अमेरिका से संचालित होते थे, अब वहीं के कर्मचारियों से पूरे कराए जा रहे हैं।
वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा पर असर
H-1B वीजा में कमी केवल कर्मचारियों का ही नुकसान नहीं है, बल्कि यह भारतीय आईटी इंडस्ट्री की वैश्विक स्थिति पर भी असर डाल रही है। अमेरिकी कंपनियां अब भारतीय फर्मों के साथ कम प्रोजेक्ट साझा कर रही हैं, जिससे भारत का IT एक्सपोर्ट ग्रोथ भी प्रभावित हो रहा है। इससे आने वाले वर्षों में भारत की IT सर्विसेज ग्रोथ धीमी पड़ सकती है, खासकर तब जब दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन तेजी से बढ़ रहा है।
भविष्य को लेकर कंपनियों में चिंता बढ़ी
आईटी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका की यह नीति आगे भी जारी रहती है, तो भारतीय कंपनियों को अपने मॉडल में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं। कई कंपनियां पहले ही यूरोप, मिडिल ईस्ट और एशिया जैसे बाजारों में नए अवसर तलाश रही हैं, साथ ही भारतीय कर्मचारियों को भी अपनी स्किल्स—जैसे AI, साइबर सिक्योरिटी, क्लाउड टेक्नोलॉजी—में तेजी से सुधार करना होगा, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी मांग बनी रहे।














