सरकारों की नाकामी किसान की परेशानी

Governments failure Farmers problem
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दिल्ली व एनसीआर में प्रदूषण फैलाने से संबंधित मामले में जानकारी दी है कि सरकार ने आयोग का गठन किया है। केंद्र सरकार ने प्रदूषण फैलाने वालों को पांच साल की जेल और एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना करने का फैसला लिया है। इस फैसले से किसानों को भी प्रभावित होने की चर्चा है, किंतु दिल्ली व एनसीआर में फैल रहे प्रदूषण का एक बड़ा कारण पंजाब-हरियाणा सहित कई राज्यों जलाई जाने वाली पराली को ही माना जाता है।
नि:संदेह प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या है, लेकिन यह सरकारों की नाकामी का परिणाम है जो किसानों को भी भुगतना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकारों को दो बार आदेश जारी कर पराली न जलाने के लिए किसानों को रोक चुका है। इसके बावजूद सरकारों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। पंजाब सरकार और हरियाणा सरकार पिछले साल पराली को आग न लगाने वाले किसानों को 2500 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा देने का ऐलान किया था, लेकिन यह मुआवजा सभी किसानों को नहीं मिला था। इसी तरह पराली खेत में नष्ट करने वाली मशीनरी पर सब्सिडी मुहैया करवाने की केंद्र सरकार की योजना है। पंजाब सरकार ने इस योजना का पूरा पैसा खर्च ही नहीं किया, जिस कारण किसान योजना के लाभ से वंचित रह गए। सरकारों की नाकामियों के कारण किसान पराली को आग लगाने के लिए मजबूर थे।
बात स्पष्ट है कि केंद्र व राज्य सरकारें दोनों ही पराली की समस्या का समाधान निकालने में नाकाम रही हैं दूसरी तरफ छोटे किसान पराली नष्ट करने वाली मशीनरी खरीद नहीं सकते क्योंकि हैप्पी सीडर जैसी मशीन न केवल महंगी है, बल्कि मशीन को चलाने के लिए 50 हार्स पॉवर ट्रैक्टर की जरूरत है जो मध्यम व सीमांत किसानों के बस की बात नहीं। राज्य सरकारें केवल अक्तूबर-नवंबर में पराली के मुद्दे पर नींद से जागती हैं और साल भर चुप्पी साधे रहती हैं। आखिर जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल या सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश आता है तो किसानों पर सख्ती करने का ऐलान कर मामला लटका दिया जाता है। किसानों को बलि का बकरा बनाने की बजाय सरकारें इस मामले का कोई स्थायी समाधान निकालें।
इस बार भी केंद्र सरकार ने आयोग बना दिया, लेकिन आयोग का सारा ढांचा बनते-बनते पराली को आग लगाने के दिन निकल जाएंगे। ऐसे फैसले भी समय बर्बाद करने वाले हैं। पराली का मामला जितना गंभीर है, उतना ही राजनीतिक भी है। किसान पहले ही केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। किसानों पर सख्त कार्रवाई के साथ टकराव के हालात भी बन सकते हैं। यह समस्या मामले का समाधान निकालने की बजाय खानापूर्ति वाली है। बेहतर हो यदि किसानों को पराली न जलाने के लिए उचित मुआवजा देने के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाए। सहकारी सोसायटियों के द्वारा किसानों को हैप्पी सीडर मशीनें व किराये पर ट्रैक्टर मुहैया करवाए जाएं, केवल कैद या जुर्माना ही समस्या का समाधान नहीं।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।