कर्जमाफी के अलावा कृषि की कोई सुध नहीं
जिस राज्य में विधान सभा चुनाव होते हैं वहां सरकार तय रेट के मुताबिक फसल खरीद लेती है
जबकि रही दूसरे राज्यों में वही फसल कम रेटों पर खरीदी जाती है।
नागरिकता व जनसंख्या रजिस्टर पर भी भ्रम
केंद्र व राज्य सरकारें सत्तापक्ष व विपक्ष ने एक ऐसा माहौल बना दिया है
कि आम व्यक्ति को समझ ही नहीं आ रही कि संविधान की महत्वता का आधार क्या है?
उम्मीद है सरकार जल संरक्षण को एक क्रांति का रूप देगी
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्य नदियों के पानी के लिए कानूनी लड़ाई तो लड़ रहे हैं लेकिन इन राज्यों में पानी की बचत को लेकर जागरूकता मुहिम नाम की कोई चीज ही नहीं।
क्यों नहीं लिया जा रहा सबक
महानगरों की सुंदरता की अपेक्षा सुरक्षा कहीं अहम मुद्दा है। मुआवजा देने के बाद मामले के समाधान पर चुप्पी साधने की औपचारिकताओं से अब तौबा हो और भयानक हादसों के होने पर सरकार संवेदनशीलता का प्रमाण दे व अपने कर्तव्यों को निभाए।
क्षेत्रवाद का प्रभाव
ताजा परिणामों से यह स्पष्ट है कि राज्यों के मुद्दों को राष्ट्रीय पार्टियों ने अनदेखा किया है,
जिस कारण लोगों ने एक बार फिर क्षेत्रीय पार्टियों या छोटी पार्टियों में दिलचस्पी दिखाई है।
साम्प्रदायिक राजनीति की बजाय भारतीय पहचान पर हो जोर
अब भाजपा घर-घर जाकर लोगों को समझाएगी कि कानून आखिर है क्या,
लेकिन इस बिल को जब कानून बनाया जा रहा था तब भाजपा घर-घर क्यों नहीं गई?
प्रदूषण सरकारों के लिए कोई मुद्दा नहीं रहा!
हमारे पास स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग जैसी बहादुर युवती नहीं जो अपने देश के शासकों को भारतीय फिÞजां दूषित होने का ताना मार सके। लोग जहर जैसा पानी पीकर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। नदियां दूषित नाले बनती जा रही हैं। नदियों की संभाल केवल रैलियां व सार्वजनिक संभाओं तक सीमित है।


























