बेड़ियों के बीच
लुहार ने सोचा कि जब वह अपनी कुशलता और मेहनत से मजबूत बेड़ी बना सकता है तो वह उसी कुशलता और मेहनत का प्रयोग कर उस बेड़ी से अपने हाथों को मुक्त भी कर सकता है। उसने कुएं में अपना सारा अनुभव, शक्ति और बुद्धि उस बेड़ी को खोलने में लगा दी।
लॉकडाउन में विस्तार जरूरी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का यह तर्क भी जायज है कि लॉकडाउन के कारण ही मरीजों की गिनती अभी 7000 से नीचे है, अन्यथा अब तक मरीजों की गिनती 2 लाख को पार कर जानी थी। अब हालातों को देखकर उन लोगों को भी समझ जाना चाहिए जो मास्क नहीं पहनते और सावधानियों को नहीं मान रहे। अब लापरवाही का वक्त नहीं रहा।
डोनाल्ड ट्रंप के व्यवहार को समझे भारत
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ जिस तरह की भाषा का इस्तेमान किया है, वह विदेश नीति के स्थापित सिंद्वातों और मयार्दाओं का उल्लंघन तो है ही, साथ ही अमेरिकी कूटनीति के स्याह चेहरे को भी दुनिया के सामने प्रकट करता हैं।
शिक्षा कानून का एक दशक: आधी हकीकत आधा फसाना
आज भी बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूल बुनियादी ढांचागत सुविधाओं, जरूरी संसाधन, शिक्षा के लिये माहौल और शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति द्वारा फरवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में संसद में पेश की गयी रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर चिंता जाहिर की गई है।
अध्यापक का आदर्श
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सूर्यसेन की नियुक्ति बंगाल के एक विद्यालय में हुई थी। वह बेहद स्वाभिमानी और आदशर्वादी थे। शिक्षक के रूप में उन्होंने छात्रों के दिल में एक जगह बना ली थी।
वायु, थल, जल, सेना के साथ बनानी होगी आयुष सेना
यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत व इसकी सुरक्षा एजेसियां इस बात से सक्रिय हो गई होंगी कि दुनिया अगर जैविक युद्ध के दौर में प्रवेश कर चुकी है तो वह पारंपरिक सेना, जल, थल, वायु के साथ ही अब आयूष सेना भी तैयार कर ले।
जॉर्ज वाशिंगटन
अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन समय के बड़े पाबंद थे। उनका हर काम वक्त पर होता था। वह निर्धारित समय पर उठते थे। नियत समय पर नाश्ता करते और तय समय पर अपने काम में लग जाते थे।
सहकारी समितियों के माध्यम से गांवों से ही हो फसल खरीद
फसलों की खरीद में सरकार इस बार अपनी रणनीति बदलकर यदि फसलों की खरीद सीधे गांवों व खेतों से कर ले तब बहुत सी मुश्किलें हल हो सकती हैं। इस मुश्किल वक्त में सरकार का साथ कोऑपरेटिव समितियां दे सकती हैं, किसान अपने गांव में ही सहकारी समितियों पर अपनी फसल बेचें।
ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था विकसित करने का समय
क्यों न शहरीकरण और औद्योगिकिकरण पर सिल-सिलेबार विराम लगाते हुए ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था को फिर से विकसित करने के उपाय किए जाएं ? इससे गांव से जो शहरों की ओर पलायन होता है और फिर विपरीत परिस्थितियों में आज की तरह जो पलायन हो रहा है, इन कठिन हालातों का देश को सामना नहीं करना पड़े।
झील का चांद
तुम्हारा मन इस झील की तरह है। तम्हारे पास ज्ञान तो है लेकिन तुम उसका प्रयोग करने के बजाय सिर्फ उसे अपने मन में लेकर बैठे हो, ठीक उसी तरह जैसे झील असली चांद का प्रतिबिंब लेकर बैठी है।


























