लुई के जीवन ने यह साबित किया कि समर्पण, लगन और संघर्ष से हर बाधा को पार करना संभव
Louis Braille: पेरिस के पास स्थित गांव कूप्रे में एक विशेष दिन का आयोजन हो रहा था। सुबह से ही सरकारी अधिकारी, नेता और स्थानीय लोग गांव की ओर जुट रहे थे। गांव का कब्रिस्तान अचानक भीड़ और सभा का केंद्र बन गया। एक खास कब्र को सजाया गया था। सभा को संबोधित करते हुए एक अधिकारी ने घोषणा की कि फ्रांस सरकार ने ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल के सम्मान का दिन घोषित किया है। खुशी और तालियों के बीच, लुई ब्रेल के शव को कब्र से निकाला गया और पूरे राजकीय सम्मान के साथ दोबारा धार्मिक रस्मों के तहत दफनाया गया। यह घटना उनकी मृत्यु के सौ साल बाद हुई। लुई ब्रेल ने दृष्टिहीनों के लिए एक ऐसी लिपि बनाई, जिसने उनकी जिंदगी में ज्ञान और आनंद का प्रकाश फैलाया। संयुक्त राष्ट्र ने 2019 से 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस घोषित कर उनके योगदान को सम्मानित किया।
लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी, 1809 को फ्रांस के कुप्रे नामक गांव में हुआ। उनके पिता साइमन रेले ब्रेल एक साधारण मोची थे, जो शाही परिवार और अमीरों के घोड़ों की काठी एवं जीन बनाने का काम करते थे। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनका परिवार कड़ी मेहनत के बावजूद छह सदस्यों का पालन-पोषण मुश्किल से कर पाता था। परंपरा के अनुसार, साइमन ने लुई को भी छोटी उम्र से ही अपने काम से जोड़ लिया। तीन साल का लुई अपनी चंचलता और जिज्ञासा के कारण दुकान पर चमड़े के औजारों जैसे चाकू, सूआ, और हथौड़ी से खेलता था। Louis Braille
एक दिन, खेलते समय लुई की आंख में सूआ लग गया। घायल आंख का इलाज सही ढंग से नहीं हो सका और संक्रमण ने उनकी दूसरी आंख को भी प्रभावित कर दिया। आठ वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लुई अपनी दृष्टि पूरी तरह खो बैठे। उनकी दुनिया अब अंधकारमय हो गई। परिवार और समाज में वह दया और सहानुभूति का पात्र बन गए, लेकिन लुई ने इस परिस्थिति को स्वीकार नहीं किया। उस समय नेत्रहीनों की शिक्षा के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं था। हालांकि, पेरिस में ‘रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड’ नामक एक विद्यालय था, लेकिन उसमें प्रवेश पाना आम लोगों के लिए मुश्किल था। लुई के पिता ने उनके अनुरोध पर एक पादरी से संपर्क किया, जिनकी मदद से 1821 में लुई का दाखिला इस विद्यालय में हो गया। उस समय नेत्रहीनों को पढ़ाने के लिए कोई खास लिपि उपलब्ध नहीं थी। विद्यालय में केवल इतिहास, भूगोल और गणित जैसे विषयों की सामान्य जानकारी दी जाती थी।
एक दिन, शाही सेना के अधिकारी चार्ल्स बार्बियर, जो सैनिकों के लिए अंधेरे में पढ़े जा सकने वाले गुप्त संदेशों की लिपि पर काम कर रहे थे, विद्यालय में प्रशिक्षण देने आए। उनकी लिपि में 12 बिंदुओं का उपयोग होता था, जिन्हें सैनिक स्पर्श से पढ़ सकते थे। हालांकि, इसमें विराम चिह्नों या गणितीय संकेतों को अंकित करना संभव नहीं था। चार्ल्स के काम से लुई प्रेरित हुए और उन्होंने इस लिपि में सुधार के सुझाव दिए। चार्ल्स लुई की प्रतिभा से प्रभावित हुए और उनके सुझावों को अपनाया। चार्ल्स की कूट लिपि को समझने के बाद लुई ने नेत्रहीनों के लिए एक नई और उपयोगी लिपि विकसित करने का निश्चय किया। 1829 में, आठ वर्षों की अथक साधना के बाद उन्होंने ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। इस लिपि में 6 उभरे हुए बिंदुओं का उपयोग होता है, जिनसे 64 अक्षरों, विराम चिह्नों, गणितीय संकेतों और संगीत नोटेशन को अंकित किया जा सकता है। ब्रेल लिपि ने नेत्रहीनों के लिए पढ़ाई और अभिव्यक्ति को सरल बना दिया।
हालांकि, ब्रेल लिपि को तत्काल मान्यता नहीं मिली। इसे सेना के कूट रचना का साधन मानकर अनदेखा कर दिया गया। लुई ने जीवनभर अपनी लिपि के प्रचार और मान्यता के लिए संघर्ष किया। वह अपने सीमित जीवनकाल में यह नहीं देख पाए कि उनकी लिपि नेत्रहीनों के लिए शिक्षा और आत्मनिर्भरता का आधार बन गई। लुई ब्रेल का जीवन 6 जनवरी, 1852 को, मात्र 43 वर्ष की आयु में समाप्त हो गया। उनकी मृत्यु के 16 वर्षों बाद, 1868 में, फ्रांस सरकार ने ब्रेल लिपि को औपचारिक मान्यता दी। धीरे-धीरे यह लिपि विश्वभर में लोकप्रिय हो गई। Louis Braille
भारत में भी ब्रेल लिपि के माध्यम से नेत्रहीनों के लिए कई विद्यालय और प्रशिक्षण केंद्र खोले गए। 4 जनवरी, 2009 को, लुई ब्रेल की 200वीं जयंती के अवसर पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। यह उनके प्रति भारत की ओर से श्रद्धांजलि थी। लुई ब्रेल ने नेत्रहीनों को शिक्षा और आत्मनिर्भरता का जो अमूल्य उपहार दिया, उसकी बदौलत वह हमेशा याद किए जाएंगे। उनके जीवन ने यह साबित किया कि समर्पण, लगन और संघर्ष से हर बाधा को पार किया जा सकता है। उनका योगदान संपूर्ण मानवता के लिए अमूल्य है, और विश्व उनके प्रति सदा ऋणी रहेगा।
                                                                        -प्रमोद दीक्षित मलय (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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