सृष्टि की धुरी, सदा संभालें सन्त…

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संत सनातन आदि युग, सृष्टी का आगाज।
संत सदा परहित रहें, सदा संवारें काज।


सदा संवारें काज, राज कहा तुलसी जी ने।
दीन्हे कानन हाथ, उन्हें हम भी नहीं चिन्हे।


उन बिन सब प्रलय गह्यो, सब विनशै सब अन्त।
‘बघियाड़’ सृष्टि की धुरी, सदा संभालें सन्त।।