रक्षाबंधन: एक अटूट विश्वास की डोर

Realizing love Is 'Rakshabandhan'

नई दिल्ली। रक्षाबंधन का त्यौहार सावन के महीने में पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षा बंधन दो शब्दों को मिलाकर बनता है, रक्षा और बंधन। जिसका मतलब एक ऐसा बंधन जो रक्षा करता हो। रक्षा बंधन भाई-बहन का प्रतीक माना जाता है। रक्षा बंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को जताता है और घर में खुशिया लेकर आता है। इसके अलावा यह त्यौहार भाइयों को याद दिलाता है कि उन्हें अपनी बहनों की रक्षा करनी चाहिए। रक्षा बंधन का त्यौहार भाई को अपनी बहन के प्रति उसका कर्तव्य याद दिलाता है। बहनें थालों में फल, फूल, मिठाइयां, रोली, चावल तथा राखियाँ रखकर भाई का स्वागत करती हैं, रोली-चावल से भाई का तिलक करती है और उसके दाएँ हाथ (कलाई) में राखी बांधती हैं। राखी बहन के पवित्र प्रेम और रक्षा की डोरी है। बहनें भाइयों को राखी बाँधकर परमेश्वर स दुआ माँगती हैं कि उनके भाई सदा सुरक्षित रहें और इस मायावी संसार में अच्छे कर्म करते हुए नैतिक जीवन बिताएं। भाई भी राखी बंधवाकर बहन से यह प्रतिज्ञा करते हैं कि ‘अगर बहन पर कोई संकट या मुसीबत आए, वह उस संकट का निवारण करने में बहन की सहायता के लिए अपनी जान की भी बाजी लगा देंगे।’

बहन-भाई के प्यार का अनूठा त्यौहार

रक्षाबंधन पर बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं। भाई अपनी बहन को सदैव साथ निभाने और उसकी रक्षा के लिए आश्वस्त करता है। यह परम्परा हमारे भारत में काफी प्रचलित है, और ये श्रावण पूर्णिमा का बहुत बड़ा त्यौहार है। रक्षाबंधन अर्थात संरक्षण का एक अनूठा रिश्ता, जिसमें बहनें अपने भाइयों को राखी का धागा बाँधती है। इसलिए, रक्षा बंधन ऐसा त्यौहार है, जब सभी बहनें अपने भाइयों के घर जाती हैं,और अपने भाइयों को राखी बांधती हैं, और भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का प्रण लेते है। रक्षाबंधन पर राखी बांधने की हमारी सदियों पुरानी परंपरा रही है। प्रत्येक पूर्णिमा किसी न किसी उत्सव के लिए समर्पित है। सबसे महत्वपूर्ण है कि आप जीवन का उत्सव मनाये। सभी भाइयों और बहनों को एक-दूसरे के प्रति प्रेम और कर्तव्य का पालन और रक्षा का दायित्व लेते हुए ढेर सारी शुभकामना के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाना चाहिए।

रक्षा बंधन का इतिहास

रंक्षा बंधन का त्यौहार भारतीय घरों में खुशियों के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को गरीब से लेकर अमीर तक सभी मनाते हैं। जैसे सभी त्यौहारों का इतिहास होता है, ऐसे रक्षा बंधन का भी अपना इतिहास है। रक्षा बंधन का त्यौहार सबसे पहले सन 300 ई.वी. मनाया गया था। उस समय राजा सिकंदर भारत को जीतने के लिए अपनी सारी सैना लेकर यहां आया था और यहां सम्राट पुरु का काफी नाम था। सिकंदर ने कभी किसी से मात नहीं खाई लेकिन सम्राट पुरु की सैना के साथ लड़ने में उन्हें परेशानी हो रही थी। लेकिन जब सिकंदर की पत्नी ने रक्षा बंधन के बारे में पता चला तो उसने सम्राट पुरु के लिए राखी भिजवाई। उनका राखी भिजवाने का मकसद यह था कि जिससे सम्राट पुरु उनके पति सिकंदर को जान से न मार दें। इसलिए पुरु ने सिकंदर की पत्नी की भेजी हुई राखी का रिश्ता निभाया और सिकंदर को नहीं मारा।

इन्द्र देव की कहानी

भविष्य पुराण के मुताबिक असुर राजा बाली ने देवताओं पर हमला किया था, तो उस समय देवताओं के राजा इंद्र को काफी क्ष्यती पहुंची थी। इंद्र की पत्नी सची से ऐसी स्थिति देखी नहीं गई। फिर वह विष्णु के पास गई और उनसे समाधान मांगने लगी। तब विष्णु ने सची को एक धागा दिया और कहा कि वह इस धागे को अपने पति की कलाई पर बांधे। ऐसा करने पर इंद्र के हाथों राजा बलि की पराजय हो गई। इसलिए पुराने जमाने में युद्ध में जाने से पहले सभी पत्नियां और बहनें अपने पति और भाइयों के हाथ में रक्षा का धागा बांधती थी।

महाभारत में राखी

महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।

चंद्रशेखर आजाद ने भाई होने का निभाया फर्ज

बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे। फिरंगी उनके पीछे लगे हुए थे। फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतू आजाद एक तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्ठे आजाद को डाकू समझ कर पहले तो उस औरत ने शरण देने से इन्कार कर दिया लेकिन जब आजाद ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आजाद को आभास हुआ कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आजाद ने महिला से कहा, मेरे सिर पर पांच हजार का ईनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ्तारी पर पांच हजार रुपए का ईनाम पा सकती हैं और आप अपनी बेटी का विवाह सम्पन्न करवा सकती हैं।
यह सुन विधवा रो पड़ी। उसने कहा, ‘‘भैया! तुम देश की आजादी हेतू अपनी जान हथेली पर रखे घूमते हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।’’ यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बाँध कर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रुपए पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- ‘अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी-सी भेंट’- आजाद ।

 

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