छिलका रहित व सर्वाधिक न्यूट्रिशन वैल्यू वाली है यह किस्म
जयपुर (सच कहूं /गुरजंट सिंह धालीवाल)। गेहूं और चावल को प्रसिद्धि मिलने से पहले, साठ के दशक तक जौ जैसा अनाज हमारे भोजन की मुख्य सामग्री में से एक था। एक ही श्रेणी में आने पर भी जौ की लोकप्रियता अन्य अनाज दानों के समक्ष फीकी पड़ गई । विभिन्न आहार व्यवस्थाओं के उद्भव से इस पोषक तत्व से भरपूर अनाज जौ की लोकप्रियता बढ़ाने एवं कुछ नया करने की इच्छा ने प्लांट ब्रीडर को जौ पर अनुसन्धान की ओर अग्रसर किया है। ऐसी ही दृढ इच्छा के साथ राजस्थान एग्रीकल्चर रिसर्च सेंटर (फअफक), दुर्गापुरा, जयपुर जौ की एक ऐसी किस्म तैयार कर रहा है, जो कि मैदानी इलाकों में बेहद उपयोगी सिद्ध हो सके। इस नई किस्म की न्यूट्रिशन वैल्यू व उत्पादन को जानकर आप हैरान रह जाएंगे। देश के विभिन्न सेंटर्स पर इस वैरायटी का ट्रायल चल रहा है। Jaipur News
देश में जौ का बुवाई रकबा चार गुना घटा
श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर के कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने बताया कि 1960-70 के दशक में भारत में 28 से 30 लाख हेक्टयेर में जौ की खेती होती थी, जो अब घटकर 8 लाख हेक्टेयर हो गई है। जौ की औसत उपज करीब 20 क्विंटल प्रति हेक्टयेर रह गई है। राजस्थान के परिपेक्ष में तो जौ की खेती 2.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र एवं उत्पादन करीब 6.20 टन एवं औसत उपज 27.50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के आसपास है’ जौ की क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बहुत कम है। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है।
छिलका रहित जौ पर रिसर्च | Jaipur News
जौ की उत्पादकता बढ़ाने हेतु केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के साथ विश्वविद्यालय भी प्रयासरत है। इसी के तहत रारी में जौ की ऐसी किस्म तैयार की जा रही है जिसका उत्पादन करीब 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के साथ ही उसका पोषण मान भी अधिक हो। डॉ. सिंह ने बताया कि इस वैरायटी में सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि इसके दाने छिलका रहित होंगे अर्थात गेंहू के दाने की तरह जौ का दाना होगा। इस कारण इस जौ को गेंहू की तरह खाने में कोई परेशानी नहीं होगी।
पशु चारे की भी ऑन लैस किस्म तैयार
इसके अतिरिक्त जौ कि एक ऐसी किस्म भी तैयार की जा रही है जो पशु चारे में बेहद कारगर सिद्ध होगी। इस किस्म में जौ के दाने पर छिलका ऑन लैस यानी तीखा, नुकीला नहीं होंगा, जिससे मवेशी का तालू क्षतिग्रस्त नहीं होगा और उसे आसानी से खा सकेगा।जौ की इस किस्म को खारे पानी में भी बोया जा सकेगा एवं टर्मिनल हीट से भी इसके उत्पादन पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि छिलका रहित जौ कि इस नई किस्म का मुख्य उदेश्य गेहूं का विकल्प तलाशना है। श्रीअन्न में शामिल जौ की अनेक विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि आगामी कुछ वर्षों में जौ प्रमुख खाद्यान के रूप में न केवल भारत बल्कि विश्व में एक अलग पहचान बना लेगा।
सर्वधिक माल्ट वाली किस्म आरडी-2849 भी रारी की देन | Jaipur News
कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने बताया कि भारत में जौ का उपयोग पारंपरिक रूप से होता रहा है। लेकिन अब इसका व्यावसायिक उपयोग बेहद व्यापक रूप से हो रहा है, क्योंकि जौ में बीटा ग्लूकन नामक रेशा पाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद उपयोगी माना जाता है। इसलिए आजकल बीटा ग्लूकन को निकालकर कई तरह के खाद्य पदार्थो में उपयोग में लाया जाता है। जौ से बनी दवाईयों का प्रयोग काफी प्रभावी माना जाता है। आजकल ब्रुईंग इंडस्ट्री में जौ की काफी मांग होती है इस वजह से कई कंपनियां किसानों से जौ अच्छे दामों पर खरीद रही हैं।
इसका उपयोग चॉकलेट, सिरप, कैंडी और जौयुक्त दूध बनाने में किया जाता है। जौ का उपयोग गेहूं के आटे के साथ मिलाकर आजकल बिस्किट बनाने में हो रहा है। अन्य उत्पादों में-इस समय में जौ के उत्पादन का 60 प्रतिशत उपयोग बीयर, 25 प्रतिशत पावर ड्रिंक, 7 प्रतिशत दवाईयों और 8 से 10 प्रतिशत व्हिस्की बनाने में होता है। देश में हर साल जौ की मांग में 10 प्रतिशत की वृद्दि हो रही है।
आरडी 2849 का प्रमाणित बीज के लिए एमओयू | Jaipur News
जौ के व्यावसायिक उत्पादन के लिए दुर्गापुरा रारी की किस्म आरडी-2849 राजस्थान की जलवायु के अनुसार सर्वाधिक माल्ट वाली किस्मों में से एक है। इसकी खेती के लिए प्रदेश के किसानों को क़ृषि विज्ञानं केन्द्रो एवं क़ृषि विभाग के प्रसार कार्यकर्ताओ के सहयोग से प्रेरित किया जा रहा है। डॉ सिंह ने बताया कि इस वैरायटी में माल्ट की मात्रा बहुत अधिक होने से मल्टीनेशनल कंपनियां इस वैरायटी का जौ अच्छे दामों पर खरीदने के लिए तैयार है। इन कंपनियों को डिमांड के अनुसार जौ नहीं मिल पा रहा है, इसलिए करीब 2.5 लाख मीट्रिक टन जौ का आयात ठंडे देशों यथा-रूस से हो रहा है। राजस्थान की जलवायु के अनुसार आरडी-2849 वैरायटी इसका बेहतरीन विकल्प है, इसलिए इसकी बुवाई के लिए किसानों को प्रमाणित बीज उपलब्ध करवाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
डॉ सिंह ने बताया कि श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर ने नीमराना की कंपनी बालमार्ट से एमओयू किया है। इसके तहत कंपनी को करीब 600 क्विंटल आरडी 2849 किस्म का प्रमाणित बीज मुहैया करवाया जाएगा, जिसका उपयोग प्रदेश में जौ की बुवाई का रकबा बढाने में मददगार साबित होगा। उन्होंने बताया कि अकेले बॉलमार्ट कंपनी को करीब दो लाख मीट्रिक टन जौ की आवश्यकता है। प्रदेश के किसान इस किस्म की बुवाई करेंगे तो उनकी आय मे इजाफा सुनिश्चित होगा। Jaipur News
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