किसान आंदोलन का सफल समापन

Agitated farmers will not celebrate Holi

आखिर केंद्र सरकार व किसानों में सहमति के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन को खत्म कर घर वापिसी का ऐलान कर दिया है। 11 दिसंबर को किसान वापिसी करेंगे, जो देश के इतिहास में बड़ा दिन होगा। यह लोकतंत्र की मजबूती और जीत का प्रतीक है। इसके अलावा सरकार और जनता के बीच सुदृढ़ संबंधों को महत्वता मिली है। अच्छी बात है कि हम परिणाम पर पहुंचे हैं, कोई भी ऐसा मामला नहीं जिसका समाधान बातचीत से संभव नहीं। हमारी संस्कृति और सभ्यता ही बातचीत, बहस और तर्क की बात करती है। भले ही किसान साल भर इस बात पर अड़े रहे कि विवादित कृषि कानूनों की वापिसी से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन किसानों की इस दृढ़ता के पीछे जिद्द या हठ नहीं बल्कि तर्क था।

उन्होंने हमेशा यही कहा कि सरकार उनके साथ प्वार्इंट टू प्वार्इंट बहस करे, कई बार बहस भी हुई और 12 बार किसान और केंद्र सरकार के बीच बैठकें भी हुर्इं। किसानों के पास विश्व भर के आंकड़े, तथ्य और तर्क थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी किसानों का पक्ष मजबूत बनाते हुए कानूनों पर अनिश्चितकालीन समय के लिए रोक लगा दी। एक-दो घटनाओं को छोड़कर किसान आंदोलन का प्रभाव बुद्धिजीवियों की चर्चा और अनुशासनात्मक इक्ट्ठ वाला रहा। किसान आंदोलन अपनी विचारधारा के कारण जनआंदोलन बन गया जिसे व्यापारी और शहरी वर्ग का भी समर्थन मिला। आंदोलन की समाप्ति का सबसे गुणात्मक पहलू यह है कि एमएसपी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार किसान नेताओं के साथ मिलकर काम करेगी जो अपने-आप में लोकतंत्र में सहमति जैसे मूल्यों की महत्वता को दर्शाता है।

नि:संदेह साल भर चले आंदोलन ने विचारों के आदान-प्रदान और अलग-अलग पक्ष (सरकार, किसान, कर्मचारी और व्यापारी) को एक-दूसरे के रूबरू किया। यह बात भी सामने आई कि इसी तरह की उच्च स्तरीय चर्चा बेरोजगारी, प्रदूषण और स्वास्थ्य जैसे मामलों पर होनी चाहिए। किसान आंदोलन जनता के मामलों के प्रति संवेदनशीलता, सरकारों की जिम्मेदारी, आर्थिक चुनौतियों के रूबरू करता हुआ किसानों की खुशहाली के साथ-साथ इससे जुड़े वर्गों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक और लोकपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने का संदेश देता है।

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