आदमी का दिमाग विचार शून्य नहीं होता: पूज्य गुरु जी

बरनावा। सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा (यूपी) से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से साध-संगत के सवालों के जवाब देते हुए उनकी जिज्ञासा को शांत किया। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि घर-गृहस्थ में रहना, पर संयम हो। संयम पति-पत्नी दोनों में होना चाहिए। अदरवाइज पारिवारिक ढांचा बिगड़ सकता है। अदरवाइज झगड़े हो सकते हैं। अदरवाइज रिश्तों में खटास, शक और पता नहीं क्या-क्या चीजें आ जाएंगी और रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच जाएंगे।

हाँ, दोनों में संयम हो, जोकि सुमिरन से ही हो सकता है, राम-नाम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ख़ुदा, रब्ब की भक्ति से ही संयम आता है और संयम एक ऐसी चीज है, जो इन्सान को बेइंतहा खुशियां देती है। तो घर-गृहस्थ में रहते हुए संयम होना ही चाहिए। ब्रह्मचर्य में तो ये परफैक्ट होता है, अगर कोई ब्रह्मचर्य का पालन करे। पर घर-गृहस्थ में सुमिरन के द्वारा, भक्ति के द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है अपने विचारों को, अपने ख्यालों को।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आदमी का दिमाग विचार शून्य नहीं होता। कुछ न कुछ अंदर चलता ही रहता है, चलता ही रहता है। और हर आदमी की मन की इच्छा पूरी नहीं होती। ये नहीं होता कि आपने जो सोच लिया वो पूरा ही होगा, ऐसा संभव नहीं है।

हाँ, जो आपके लिए अच्छा है वो तब पूरा होगा जब आप संयमी बन जाओगे, जब आप प्रभु के नाम का सुमिरन करोगे, तब आप मानने लगोगे कि प्रभु ने जो किया ठीक था, जो कर रहा है ठीक है और आगे जो होगा ठीक होगा, ऐसा सोच लिया समझो भक्त बन गए। अदरवाइज, अगर आप तरह-तरह के विचारों की, प्रश्नों की दीवार खड़ी करते रहते हो भगवान के सामने, उससे होता कुछ नहीं, लेकिन आपके भक्ति मार्ग में बाधाएं आना शुरू हो जाती हैं, तो भाई सुमिरन कीजिये, कर्मयोगी, ज्ञानयोगी बनिए, चलते, बैठके, लेटके, काम-धंधा करते हुए सुमिरन किया करो। और कई बार, जैसे बच्चों ने कहा था कि गुरु जी वो कौन सा तरीका है, जो दौड़ने से वजन कम होता है, आज हमने वो आपके लिए डाला भी है फोन पर, कि कैसे वो दौड़ना चाहिए।

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