बदलते वैश्विक कारोबार में एफटीए हुए महत्वपूर्ण

गत दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शिखर बैठक संपन्न हुई। इसमें भारत और यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के बीच सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौते की संभावनाएं आगे बढ़ी हैं। इस समय अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका आदि प्रमुख देशों के साथ भी भारत एफटीए करने को लेकर आगे बढ़ रहा है। इन देशों को भारत जैसे बड़े बाजार की जरूरत है। बदले में वे भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने को उत्सुक हैं। हाल ही के वर्षों में विश्व व्यापार संगठन के तहत विश्व व्यापार वातार्ओं में जितनी उलझनें खड़ी हुई हैं, उतनी ही तेजी से एफटीए बढ़ते गये हैं। इस समय दुनियाभर में एफटीए की संख्या 300 के पार हो चुकी है।

एफटीए में दो या दो से ज्यादा देश आयात-निर्यात पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि में तरजीह देने पर सहमत होते हैं। सीमित दायरे वाले ट्रेड एग्रीमेंट मुक्त व्यापार समझौते की तरह बाध्यकारी नहीं होते हैं यानी किसी कारोबारी मुद्दे पर आ रही समस्या को दूर करने का विकल्प खुला होता है। नवंबर, 2020 को दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) ने 15 देशों के हस्ताक्षर के बाद मूर्तरूप लिया है, भारत उसमें शामिल नहीं हुआ। भारत की 27 देशों वाले यूरोपियन यूनियन के साथ 2013 से एफटीए पर कवायद चल रही है। यूरोपीय यूनियन भारतीय निर्यात का दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है, लेकिन कई मुद्दों पर मतभेद के कारण एफटीए को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। हालांकि, मई 2021 के बाद बदले वैश्विक आर्थिक परिवेश में भारत और यूरोपीय संघ के बीच एफटीए की संभावनाएं बढ़ी हैं। आॅस्ट्रेलिया, यूएई और ब्रिटेन समेत कुछ और देशों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए के लिए चचार्एं संतोषजनक हैं।

अब भारत मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित अपनी रणनीति में देश की कारोबार जरूरतों और वैश्विक व्यापार परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए जरूरी बदलाव के लिए तैयार हैं। भारत की विभिन्न देशों के साथ एफटीए वातार्ओं के लंबा खिंचने का एक बड़ा कारण विनिर्माण जैसे कुछ बेहद गतिशील व्यापार क्षेत्रों में ऊंचे घरेलू शुल्कों का होना है। स्थिति यह है कि भारत अपने एफटीए समझौतों में लगभग सभी व्यापार को अधिक तरजीही शुल्क ढांचे के रूप में प्रस्तुत करने से हिचकिचाता रहा है। लिहाजा, अब एफटीए पर होने वाली वातार्ओं में तरजीही व्यापार उदारीकरण के समकक्ष स्तर और भारत में नियामकीय नीतिगत सुधारों की बात मानी जा रही है। निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था के मद्देनजर एफटीए भारत के लिए लाभप्रद हो सकते हैं, लेकिन अब एफटीए का मसौदा बनाते समय यह ध्यान दिया जाना होगा कि एफटीए वाले देशों में कठिन प्रतिस्पर्धा के बीच कारोबारी कदम आगे कैसे बढ़ाये जा सकेंगे? निश्चित रूप से कोरोना संक्रमण और आरसेप के कारण बदली हुई वैश्विक व्यापार व कारोबार की पृष्ठभूमि में एफटीए को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए।

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