जहरीली सब्जियों से सेहत को खतरा

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हरी सब्जियां का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होता है। डॉक्टर भी अक्सर हरी पत्तेदार सब्जियां, साग एवं फल खाने की सलाह देते है। पोषकता से भरपूर होने के कारण ये हमारे आहार का अनिवार्य हिस्सा है। इसीलिए ‘गो ग्रीन’ फंडा सबसे ज्यादा प्रचलन में भी है। लेकिन आजकल मंडी से लेकर सड़क किनारे जो हरी भरी, चमकती दमकती सब्जियां आप बड़े चाव से खरीदते है और खाते है वो अधिकांश मिलावट के कारण स्वादहीन, गुणहीन तो होती ही है साथ ही साथ वह जहरीली भी होती है। जी हां! हम में से हर कोई जाने अनजाने हर दिन बाजार से कीटनाशकों के छिड़काव वाली खतरनाक सब्जियों और फलों को खरीद रहे है। प्राकृतिक रूप से पकी सब्जियां थोड़ी पीली और कुम्हलाई हुई हो सकती है लेकिन जो एक दम हरी और साफ सब्जियां दिखाई देती है जिन्हें देखते ही खरीदने की प्रबल इच्छा होने लगती है वही सेहत के लिए खराब होती है। लेकिन मजबूरी यह भी है कि उसको खरीदने के अलावा कोई और विकल्प भी दिखाई नहीं देता।

Vegetable Prices

आजकल कम समय में ज्यादा उपज और कमाई के लालच में मुनाफाखोर और मिलावटखोर सब्जियों की कुदरती उपज को पेस्टीसाइड, केमिकल और दवाई के प्रयोग से जहरीली बनाने से भी नहीं चूक रहे है। विभिन्न प्रकार के कीटनाशक, मेटल्स और रसायन का उपयोग इस स्वस्थ आहार को ‘धीमा जहर’ बना रहे है। पत्तेदार सब्जियों के पत्ते पेस्टीसाइड और मेटल्स को अवशोषित कर लेते है जो खाने के साथ हमारे पेट में चले जाती है। सामान्यतया धोने से कीटनाशक निकल जाते है लेकिन ज्यादा मात्रा में प्रयोग होने से ये स्थाई हो जाते है। जागरूकता के अभाव में और प्रशासनिक लापरवाही दोनों ही कारणों से किसान सब्जियों को कीट पतंगों से बचाने के लिए, खरपतवार मिटाने के लिए और अधिक से अधिक पैदावार के लालच में प्रतिबन्धित कीटनाशकों, दवाइयों और अन्य कई रसायनों का भारी तादाद में प्रयोग करते है जिनमें डायल्ड्रिन, डीडीआई, डाईआॅक्सीन, आर्सेनिक, आॅक्सीटोसिन आदि का उपयोग प्रमुख हैं।

ये सभी तत्व मानव स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक होते है। हालांकि सीवर और गंदे नालों में सब्जियां उगाना पूर्णतया प्रतिबंधित है मगर मॉनिटरिंग की कमी के कारण ऐसा धड़ल्ले से हो रहा है। कई सब्जियां शहर के किनारे फैक्ट्रियों से निकले रसायनयुक्त पानी के गंदे नालों में उगाई जा रही है। साथ ही साथ जो खेतों में ट्यूबवेल के पानी से सिंचित सब्जियां होती है उनको भी तोड़कर गंदे नालो में ही धोया जाता है। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद में अक्सर इस तरह के समाचार टीवी या सोशल मीडिया में देखने को मिलते रहते है। हाल ही में एक टीवी समाचार में दिखाया गया था कि किसान कई ट्रेक्टरों की ट्रॉलियां में भरी सब्जियों को हिंडन नदी के केमिकल और मेटल्स से प्रदूषित काले पानी में धो रहे है। दी एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट(टेरी) की रिपोर्ट के हिसाब से तो यमुना के आस पास की मिट्टी भी खेती के लिहाज से खराब हो चुकी है। कारखानों के निकले रासायनिक पानी को सोखने से जमीन ही जहरीली हो गई है।

इन सबके अलावा सब्जियों को ताजा रखने और गहरा हरा रंग दिखाने के चक्कर में केमिकल से बने हरे रंग में डुबोते है। ताकि वह अच्छी खासी कीमत पर बेची जा सके। भिंडी, गोभी, टमाटर, मटर, लौकी, खीरा आदि को ताजा रखने के लिए केमिकल युक्त पानी में भिगोकर रखा जाता है। जब सब्जियां कृत्रिम रूप से चमकदार हो जाती है तो वहीं सब्जी मंडी में सजाकर रख दी जाती है। दिखने में तो बहुत सुंदर नजर आती है लेकिन होता जहर है। कद्दू या लौकी जैसी सब्जियों को सामान्य रूप से पकने के लिए ढाई से तीन माह का समय चाहिए होता है और एक बीघा खेती में करीबन सत्तर से अस्सी क्विंटल पैदावार प्राप्त होती है लेकिन किसान रसायनों और दवाई के प्रयोग से इतने ही समय में तीन से चार गुना पैदावार ले रहे है। कई सब्जियां तो बेमौसम भी बाजार में उपलब्ध रहती है यह सब कृत्रिम रूप से पैदा की गई होती है।

कुछ रसायन तो इतने असरकारी होते है कि रात में इनका प्रयोग करने के उपरांत सुबह होते ही सब्जियों में अप्रत्याशित वृद्धि हो जाती है। लौकी के उत्पादन में अमूमन इसका प्रयोग अधिक देखने में मिलता है। बैंगन, करेला, ककड़ी, गोभी आदि में मिलावट के कारण आकार बड़ा हो जाता है।इसके लिए सर्वाधिक उपयोग ओक्सीटोसिन इंजैक्सन का होता है। इसकी डोज आसानी से बेहद सस्ते दामों में बाजार में मिल जाती है। वहीं सब्जियों और फलों को पकाने में उपयोगी कैल्सियम कार्बाइड भी बाजार में उपलब्ध है। मिलावट के पीछे आमदनी के लालच के आलावा प्रमुख कारण है खेती योग्य भूमि की कमी और बढ़ती जनसंख्या की मांग की पूर्ति करना है। डॉक्टरों के अनुसार ऐसी सब्जियों का सेवन करने से माउथ अल्सर, गेस्ट्रिक, फूड प्वाइजनिंग के साथ फेफड़ों में इंफेक्शन, अल्सर, एलर्जी, तंत्रिका तंत्र सम्बन्धी रोग और कैंसर जैसी बीमारियां पैदा होती है। क्रोमियम के उपयोग से चर्म, श्वांस, इम्यूनिटी, आंख, लीवर, हाईपरटेंशन का खतरा रहता है।

टोंसिल की अधिकता सब्जियों के स्वाद और गुणों के नकारात्मक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है। दरअसल सब्जियों की गुणवत्ता पर किसी तरह का सीधा सरकारी नियंत्रण नहीं होने से मिलावटखोरों के हौसले बुलंद है। मार्केट में प्रतिबंधित पेस्टीसाइड की बिक्री बदस्तूर जारी है। विडंबना यह भी है कि जानकारी के अभाव में किसानों को खुद को कीटनाशकों के मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव का पता नहीं है। लोगों के स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी तो सरकार की ही बनती है कि वह ये सुनिश्चित करें कि आम आदमी की थाली में हरा जहर न पहुंचे। हालांकि यह भी सच है कि पेस्टीसाइड की बिक्री पर पूर्ण रूप से पाबन्दी लगाना मुमकिन नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि इनके सही इस्तेमाल की मात्रा को सीमित किया का सकता है। भारत में यूरोपियन देशों की तुलना में कई गुना अधिक पेस्टीसाइड का उपयोग किया जाता है।

अत:सरकार और प्रशासन के साथ ही आम लोगों और किसानों को भी जागरूक रहने की आवश्यकता है। कहने को तो देश में फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी बनी हुई है पर फल सब्जियों में कीटनाशकों के अवशेष की कितनी इजाजत है इसका सीमा निर्धारण अभी तक नहीं हो पाया है। जबकि यह देश की जनता के सीधा सेहत से जुड़ा गम्भीर मामला है। अगर इस पर समय रहते नियंत्रण नहीं हो पाया तो हम दवाइयों और अस्पताल पर ही निर्भर हो जाएंगे। वैसे हमारे यहां इसके लिए कानून भी है। अब समय रहते फल और सब्जियों के सेंपल जांच की पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए। दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, मुंबई, कोलकाता सहित तमाम बड़े शहरों में दूरस्थ क्षेत्रों से सब्जियां आती है वहां भंडारण की व्यवस्था नहीं के बराबर है जिसके कारण सब्जियों को अधिक समय तक ताजा रखने के लिए रसायन का प्रयोग किया जाता है।

मिलावटी सब्जी को मंडी में बिकने पर प्रतिबन्ध लगना चाहीए। साथ ही जैविक कृषि के लिए किसानों को जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान चलाए जाने की भी जरूरत है। इसके लिए व्यापक स्तर पर रोडमैप बनाकर अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय की जानी चाहिए। कानून को भी ओर अधिक कठोर बनाए जाने की जरूरत है। इसके लिए हमें चीन से बहुत कुछ सीखना होगा। चीन में खाद्य सामग्री में मिलावट पाए जाने पर मिलावटखोर को फांसी की सजा तक देने का प्रावधान है। तो क्या हम ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते। स्वास्थ्य सरकार की पहली प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। जिस देश के नागरिक स्वस्थ रहेंगे वही देश प्रगति पथ पर आगे जा सकता है।

-वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार – नरपतदान बारहठ

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