भोजन करते वक्त इन बातों का रखें ध्यान

कोरोना काल में जीवन शैली में आए बदलाव के चलते आमजन बीमारियों से परेशान है। ऐसे में हर व्यक्ति के लिए स्वस्थ रह पाना एक चुनौती बन गया है। ऐसे में आज हम रूबरू करवा रहे हैं भोजन-संबंधी चरक संहिता में बताए गए 10 सूत्र जो आपको सेहतमंद रखने के साथ बलवान भी बनाएंगे।

1. गर्म : ताजा, गर्म भोजन का सेवन करने से जठराग्नि तेज होती है, जिससे भोजन जल्दी से पच जाता है। आमाशय के कफ का शोषण और मल-मूत्र का सुखपूर्वक निष्कासन होता है।

2. स्निग्ध : स्निग्ध भोजन पेट में जाने पर जठराग्नि को जगाता है, पचता भी जल्दी है। शरीर का पोषण, वृद्धि और बलवर्धन करता है। त्वचा का रंग भी साफ करता है।

3. मात्रापूर्वक : उचित मात्रा यानि पाचनशक्ति के अनुकूल मात्रा में किया गया भोजन वात-पित्त-कफ को कुपित नहीं करता और जठराग्नि को हानि पहुंचाए बिना, सरलता से पाचन होकर मलद्वार तक पहुँच के मल के रूप में विसर्जित हो जाता है।

4. पूर्व का पचने पर ही : पहले का खाया हुआ भोजन यदि पचा नहीं है तो ऐसी अवस्था में भोजन करने से पेट में पहले पड़ा अनपचा रस नये भोजन में मिल के दोषों को बढ़ाता है। पहले का भोजन पच जाने पर, जठराग्नि प्रदीप्त रहने व भूख लगने पर एवं पेट हलका होने पर ही भोजन करने से भोजन शीघ्र पचकर शरीर हलका व फुर्तीला रहता है।

5. विरुद्ध भोजन : जो पदार्थ परस्पर वीर्य-विरुद्ध न हों उन्हें ही एक साथ खाना चाहिए। इससे विकार और रोग उत्पन्न नहीं होते। परस्पर विरुद्ध वीर्य (गुण व शक्ति) वाले पदार्थ एक साथ लेने से विकार और रोग उत्पन्न होते हैं। जैसे-नमक या खटाई युक्त भोजन के साथ दूध का सेवन, गर्म भोजन के साथ ठंडा पानी पीना आदि।

6. सात्विक : उचित व सात्त्विक स्थान पर अपने ऊँचे लक्ष्य एवं कर्म अनुकूल सात्त्विक सामग्री से बना भोजन करने से मन प्रसन्न रहता है, तृप्त होता है। मन में प्रतिकूल विचार भी उत्पन्न नहीं होते।

7. चबा-चबा कर करें भोजन : जल्दी-जल्दी भोजन करने से भोजन में लार ठीक से मिल नहीं पाती, जिससे पाचन में विलम्ब होता है और शरीर को आहार-द्रव्यों का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। अत: खूब चबा-चबाकर धीरे-धीरे भोजन खाना चाहिए।

8. ज्यादा धीरे न खाएं : बहुत धीरे-धीरे, रुक-रुक के भोजन करने से तृप्ति नहीं होती और ज्यादा मात्रा में खा लिया जाता है तथा आहार ठंडा भी हो जाता है। इससे विकृत आहार-रस उत्पन्न होता है। अत: बहुत धीरे-धीरे और रुक-रुक के भोजन नहीं खाना चाहिए।

9. एकाग्रचित्त : किसी चिंतावाले विषय पर विचार करते हुए या बातचीत करते हुए और हँसते-खिलखिलाते हुए भोजन नहीं करना चाहिए। एकाग्रचित्त होकर, मौन व प्रसन्नता पूर्वक भगवान को धन्यवाद देते हुए भोजन करना चाहिए। इससे शरीर की पुष्टि व मन की संतुष्टि होती है।

10. आत्मशक्ति के अनुसार : अपनी आत्मा को भली प्रकार समझकर भोजन करना चाहिए। ‘यह आहार-द्रव्य मेरे लिए लाभकारी है और यह हानिकारक है’- इस प्रकार अपनी आत्मा का हित व अनुकूलता किस आहार में है यह अपने आत्मा से विदित होता है।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।