आचार्य चाणक्य ने कहा
मनुष्य से अधिक कठोर कोई नहीं है, परिस्थितियाँ मनुष्य को अपने अनुकूल बना लिया करती हैं।
शासन और स्वाद
शांतिपूर्ण और सुखद वातावरण में हमारा मन शांत रहता है, तब हमें स्वादहीन चीजें भी स्वादिष्ट मालूम पड़ने लगती हैं। लेकिन जब चारों ओर त्राहि,त्राहि मची हो, तब मन अशांत रहता है और स्वादिष्ट चीजों का स्वाद भी पता नहीं चलता।'
दोस्ती का अंदाज
कोई भी अनजान व्यक्ति दूसरे अनजान को देखकर अपना नाम बताते हुए हाथ आगे बढ़ा देता था। इस प्रकार अपरिचित लोग भी एक दूसरे के दोस्त बन जाते थे। दोस्ती करने का यह रिवाज वहां काफी लोकप्रिय था।
बेकार की लड़ाई
युद्ध से शांतिप्रियता अधिक अच्छी है। इस लिए व्यक्ति को शांति और सुखपूर्वक जीवन जीने में विश्वास करना चाहिए।'
बच्चे को बोरी में बांध रहा था बदमाश, परम पिता जी ने खुद प्रकट होकर छुड़ाया
सरसा। मकान नं. 926 मोहल्ल...
























