प्रेरणास्त्रोत: विचार बदलो
किसी द्वारा अच्छा कहने पर प्रसन्न न होंगे और किसी के कष्ट देने पर दुखी भी न होंगे। बाहरी जगत का मोह त्यागकर आंतरिक जगत में विचरण करने वाला व्यक्ति ही एक सच्चा भक्त बन सकता है।
वीणा का सम्मान
श्री शेषण्णा बोले, 'महाराज, आपने मुझे जो सम्मान दिया वह इस वीणा के कारण दिया। इसी के कारण लोग भी मुझे सम्मान देते हैं। वीणा मुझसे श्रेष्ठ है, क्योंकि आज मैं जो भी हूं इसी के कारण हूं।
बुद्ध का क्रोधी शिष्य
कई शिष्य एक साथ कह उठे- हमारे धर्म में तो जांतपात का कोई भेद नहीं, फिर वह अस्पृश्य कैसे हो गया? तब बुद्घ ने स्पष्ट किया- आज यह क्रोधित होकर आया है। क्रोध से जीवन की एकता भंग होती है।
परेशान हो उठे थे सुभाष
सुभाष बाबू बोले- यह देश हमारा है और हम आदेश विदेशियों का मानते हैं? क्या हम अपने घरों में उन लोगों के चित्र भी नहीं लगा सकते जिन्होंने हमारे लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। यह तो जुल्म है। आज मुझे आजादी का महत्व समझ में आ गया है। इस घटना के बाद सुभाष बाबू पर देशभक्ति का रंग और गहरा हो गया।
दोस्ती का अंदाज
कोई भी अनजान व्यक्ति दूसरे अनजान को देखकर अपना नाम बताते हुए हाथ आगे बढ़ा देता था। इस प्रकार अपरिचित लोग भी एक दूसरे के दोस्त बन जाते थे। दोस्ती करने का यह रिवाज वहां काफी लोकप्रिय था।
प्रेरणास्त्रोत: दृढ़ निश्चय
जब वह विद्यार्थी अपने निश्चय से टस से मस न हुआ तब गोरे हेडमास्टर साहब बोले, ‘यह विद्यार्थी किसी दिन बड़ी से बड़ी शक्ति को हिला देगा।
प्रेरणास्त्रोत: लेखक की पत्नी
'भामती' की रचना के पीछे एक त्याग भरी कहानी है। 'भामती' वाचस्पति पंडित के संपूर्ण जीवन की साधना है। उन्होंने इसकी रचना में लगभग अपना पूरा जीवन लगा दिया।
बापू-रामचरितमानस
गांधीजी रामचरित मानस के बड़े प्रशंसक थे। वे तुलसीदास रचित इस कृति को संसार का अनुपम ग्रंथ मानते थे।
हकीम का फर्ज
वह दूसरे राज्यों में भी रोगियों को देखने जाया करते थे। पैसे, मान-सम्मान की भूख उनको बिलकुल नहीं थी। सेवा ही उनके जीवन का लक्ष्य थी।