केजरीवाल महानायक का नया अवतार
उन्होंने अपने मतदाताओं से अपने काम के नाम पर वोट मांगे और साफ कहा यदि उन्होंने काम नहीं किया है तो वोट नहीं दे। उनकी यही बात लोगों ने पसंद की और झोली वोटों से भरदी।
कांग्रेस की ‘खुदकुशी’ कौन रोकेगा?
जब अनुशासन की बागडोर कमजोर होती है, विचार धारा जब स्पष्ट नहीं होती हैं, सक्रियता के राजनीतिक मुददों पर लाभ-हानि का विचार नहीं होता है तब कोई राजनीतिक संगठन कमजोर ही होता है, लगातार पतन की ओर ही जाता है, चुनावों में हार को ही प्राप्त करता है।
देश की बेहाली पर सुप्रीम कोर्ट का दर्द
इतना ही नहीं यहां उच्चतम न्यायरलय तब भी बेबस नजर आया है, जब न्यायालय के आदेश राजनीतिक पार्टियों से उनके दागी सांसदों, विधायकों का ब्यौरा मांगते हैं।
पूर्वोत्तर में शांति की उम्मीद
त्रिपक्षीय बोडो समझौते से इस क्षेत्र में 30 वर्ष से अधिक समय से चल रहे अतिवादी आंदोलन के समाप्त होने की आशा है ।
तो क्या अब अपराधविहीन होगी राजनीति!
अदालत के सुझाये बिन्दु जिसमें हर उम्मीदवार को नामांकन पत्र के साथ शपथ पत्र में अपने खिलाफ लगे आरोपों को मोटे अक्षरों में लिखने की बात निहित है साथ ही पार्टियों को उम्मीदवारों पर लगे आरोपों की जानकारी वेबसाइट पर मीडिया के माध्यम से जनता को देनी होगी।

























