पूर्वोत्तर में शांति की उम्मीद

Peace in the northeast (Bodo-peace accord 2020)

बोडो लोगों को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि अब उन्हें कोई कांटा नहीं चुभेगा और साथ ही बोडो क्षेत्रों में अवसंरचना विकास और रोजगार सृजन के लिए 1500 करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा भी की। प्रधानमंत्री ने बोडो लोगों को उनकी सुरक्षा, उनकी भाषा, संस्कृति और क्षेत्रीय हितों को बढावा देने का आश्वासन भी दिया।

राजग सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि 27 जनवरी 2020 को हुआ बोडो शांति समझौता है और आशा की जाती है कि इससे बोडो लोगों का अलगाववादी आंदोलन समाप्त हो जाएगा। Peace in the northeast (Bodo-peace accord 2020) इस समझौते के अंतर्गत अतिवादी बोडो गुटों ने अलग बोडोलैंड राज्य की मांग छोड़ दी है और यह पूर्वोततर में शांति और प्रगति की दिशा में एक बड़ा कदम है साथ ही इससे राष्ट्रीय सुरक्षा भी मजबूत होगी। इन अतिवादी गुटों ने अपने हथियार डाल दिए हैं।

असम में ब्रहमपुत्र घाटी के उत्तरी भाग में बोडो सबसे बडी जनजाति है और 50 प्रतिशत से अधिक बोडो अनुसचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं। 1966 में बोडो जनजातियों ने एक परिषद् का गठन कर एक अलग उदयांचल प्रदेश की मांग की। 1980 के बाद बोडो आंदोलन हिंसक हुआ और इसके तीन समूहों में से एक ने अलग राज्य की मांग की तो दूसरे ने अधिक स्वायत्ता की और तीसरे ने राज्य प्रशासन में अधिक शक्तियों की मांग की। नागरिकता संशोधन कानून पारित करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 8 फरवरी को असम का पहला दौरा किया और उनका यह दौरा बोडो समझौते के संपन्न होने के बाद समारोह में हिस्सा लेने के लिए था। इस समय बोडो समझौते से असमी एकजुट हुए हैं और असम के सारे लोगों ने इस समारोह में भाग लिया। यह समझौता भी 1985 के असम समझौते की तरह महत्वपूर्ण है।

सही मार्ग चुनने के लिए बोडो लोगों को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि अब उन्हें कोई कांटा नहीं चुभेगा और साथ ही बोडो क्षेत्रों में अवसंरचना विकास और रोजगार सृजन के लिए 1500 करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा भी की। प्रधानमंत्री ने बोडो लोगों को उनकी सुरक्षा, उनकी भाषा, संस्कृति और क्षेत्रीय हितों को बढावा देने का आश्वासन भी दिया। बोडो अतिवादी अपने हथियार डालने और शांतिपूर्ण ढंग से एक नई शुरूआत करने के लिए सहमत हुए। प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के और जम्मू कश्मीर के युवाओं का आह्वान किया कि वे बोडो लोगों का अनुसरण करें और शांति की खातिर बंदूक, गोला बारूद और पिस्टल को स्वेच्छा से त्याग दें।

इस समझौते के अंतर्गत बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र का गठन किया गया है, जिसे विधायी और कार्यकारी शक्तियां दी गयी हैं। इस क्षेत्र में बोडो भाषी क्षेत्रों को शामिल किया गया और इसके लिए कुछ बोडो बस्तियों को इसमें शामिल किया जाएगा और गैर-बोडो गांवों को इससे अलग रखा जाएगा। वर्ष 2003 के समझौते के अंतर्गत भी 40 सदस्यीय बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद् का गठन किया गया था। अब इस परिषद् में 20 सदस्य और बढ़ा दिए गए हैं। यह तीसरा बोडो समझौता है। पहला समझौता 1993 में किया गया था जिसके अंतर्गत संविाधान की छठी सूची के अधीन बोडोलैंड को स्वायत्तशासी इकाई बनाया गया था। दूसरा समझौता 2003 में किया गया और इसके अंतर्गत बोडो प्रादेशिक परिषद् को इस क्षेत्र के विकास के लिए शक्तियां दी गयी। जिसके अंतर्गत भूमि अधिकारों की रक्षा, भाषा और सामाजिक-सांस्कृतिक और जातीय पहचान को बढ़ावा देना शामिल था।

2005 में 40 सदस्यीय बोडो प्रादेशिक परिषद् का गठन किया गया। इस परिषद् में इस क्षेत्र में रह रहे ऐसे लोगों के हितों की रक्षा के लिए राज्यपाल द्वारा छह सदस्यीय नाम निर्दिष्ट किए गए जिन्हें परिषद् में प्रतिनिधित्व नहीं मिला था। बोडो प्रादेशिक क्षेत्र लंबे समय से अशांत क्षेत्र रहा है और यहां अतिवादी गुटों की संख्या बढ़ती गयी। दंगों के कारण बोडो प्रादेशिक स्वायत्तशासी जिले में हजारों लोग बेघर हुए। बोडो और मुसलमानों के बीच लगातार झडपें होती रही। इन मुसलमानों मेंं अधिकतर कथित रूप से अवैध बंगलादेशी प्रवासी हैं, जो वहां का सामान्य जीवन अशांत करते रहते हैं और ऐेसे संघर्ष के चलते वहां स्वायत्ता की मांग बढ़ती गयी।

वर्तमान समझौते में इस खामी को काफी हद तक दूर कर दिया गया है, जिससे इस क्षेत्र में शांति और सौहार्द स्थापित होने की संभावना बढ़ गयी है। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड के हजारों कार्यकर्ता शांतिपूर्ण जीवन जीने और मुख्य धारा में आने के लिए तैयार हैं और उन्होंने अपने हथियार डाल दिए हैं। अतिवादियों के लिए आम माफी का प्रावधान किया गया है। 2020 के बोडो समझौते में केन्द्र सरकार असम सरकार, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड, आॅल बोडो स्टूडेंट््स यूनियन और यूनाइटेड बोडो पीपुल्स आगेर्नाइजेशन ने हस्ताक्षर किए हैं और प्रादेशिक परिषद् के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 60 कर दी गयी है।

बोडो समझौता बोडोलैंड प्रादेशिक स्वयात्तशासी जिले में रहने वाले गैर-बोडो लोगों के लिए भी लाभप्रद है। इस क्षेत्र में गैर-बोडो लोगों को भी संतुष्ट रखना आवश्यक है अन्यथा समझौता विफल हो जाएगा। जातीय और सांस्कृतिक पहचान आवश्यक है, किंतु उन्हें राष्ट्रीय पहचान पर हावी नहीं होने दिया जाना चाहिए। किसी भी राज्य और किसी भी भाषा को बोलने वाले सबसे पहले भारतीय हैं। बोडो क्षेत्र के लिए प्रस्तावित परियोजनाओं में सबसे महतवपूर्ण राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, रेल कोच फैक्टरी, भारतीय खेल प्राधिकरण का केन्द्र, कैंसर अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, वेटरनरी कॉलेज, होटल मैनेजमेंट इंस्टिटयूट, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय परिसर, एनआईटी, ग्रामीण विकास संस्थान, व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र, आदि शामिल हैं। अब निकट भविष्य में बोडोलैंड के पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा भी दिया जा सकेगा।

बोडो लोगों को विशेष दर्जा प्राप्त होगा क्योंकि इस क्षेत्र में काम करने के लिए डोमिसाइल और बाहरी लोगों को परमिट लेना पड़ेगा। इस क्षेत्र को नागरिकता संशोधन कानून के दायरे से बाहर रखा गया है। इसका तात्पर्य है कि इस क्षेत्र में प्रवासियों को नागरिकता नहीं दी जाएगी ताकि स्थानीय बोडो लोगों के हितों की रक्षा हो। इस समझौते के अंतर्गत असम की प्रादेशिक अखंडता को बनाए रखा गया है अ‍ैर इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की विशेष आवश्यकताओं, आकांक्षाओं को ध्यान में रखा गया है। उन राज्यों में भी इसी तरह के समाधान क्यों नहीं किए जाते जहां पर अलग राज्यों की मांग उठ रही है? जब जातीय और भाषायी मतभेद किसी राजनीतिक आंदोलन का आधार बन जाते हैं तो राज्यों का विभाजन होता है। किंतु बोडो समझौता एक ऐसा मॉडल है जिस पर स्वायत्तता और अलग राज्यों की मांग कर रहे अतिवादी समूहों को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

बोडो प्रादेशिक स्वयात्तशासी जिला इस बात का उदाहरण है कि कैसे स्थानीय समुदायों के लिए स्वायत्तता की मांग गलत दिशा में जा सकती है विशेषकर तब जब बातचीत और राजनीतिक समझौतों में शांति और सुरक्षा की गारंटी न दी गयी हो। स्वायत्तता, विकेन्द्रीकरण और साझीदारी बढ़ाने के लिए संवैधानिक व्यवस्थाएं आवश्यक हैं, किंतु यह संघर्षरत गुटों के बीच शांति स्थापना के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए अतिवादी गुटों के साथ शांति समझौतों में हिंसा समाप्त करने की शर्त अवश्य जोड़ी जानी चाहिए।

इस त्रिपक्षीय बोडो समझौते से इस क्षेत्र में 30 वर्ष से अधिक समय से चल रहे अतिवादी आंदोलन के समाप्त होने की आशा है और आशा की जाती है कि यह समझौता पूर्वोत्तर क्षेत्र में ऐसी ही अन्य मांगों के समाधान में सहायक होगा। शायद नागा भी अब समझौते के लिए आगे आएं।

डॉ. एस. सरस्वती

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