रूहानी मिट्ठी यादें हुई ताजा, बुजुर्ग बोले, हम धन्य हैं जो हमें ‘सच्चे सतगुरु’ मिले

Unwavering faith: Dera devotees SACHKAHOON

झीड़ी व झोरड़रोही की साध-संगत ने 14 मार्च के पावन दिन को धूमधाम से मनाया

  • नामचर्चा के दौरान सच्ची शिक्षा के विजेता पाठकों को किया सम्मानित
  • साध-संगत द्वारा जरूरतमंद लोगों को बांटा गया राशन

ओढां(सच कहूँ/राजू)। कहावत है कि जिस जगह पर संत-महापुरुषों के चरण टिक जाते हैं वो जगह सजदा करने के योग्य हो जाती है। इसी कड़ी में रोड़ी ब्लॉक की साध-संगत ने 14 मार्च के दिन को अपने मुर्शिद की यादों को ताजा करते हुए मनाया। बता दें कि पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने 14 मार्च 1965 को गांव झीड़ी व 14 मार्च 1970 को गांव झोरड़रोही में रूहानी सत्संग फरमाते हुए सैकड़ों जीवों को नाम की अनमोल दात प्रदान करते हुए उनका उद्धार किया था। इसी पावन दिवस पर सोमवार को गांव झीड़ी में ब्लॉक स्तरीय नामचर्चा का आयोजन किया गया।

नामचर्चा में साध-संगत ने गुरुयश गाते हुए जरूरतमंद लोगों को राशन भी वितरित किया। इस अवसर पर ब्लॉक भंगीदास पवन इन्सां ने साध-संगत को पावन दिवस की बधाई दी। वहीं 45 मेंबर बहन शीला इन्सां, रजनी इन्सां व सोनिया इन्सां ने नामचर्चा में शिरकत कर साध-संगत को मानवता भलाई कार्यांे को बढ़-चढ़कर गति देने की बात कही। नामचर्चा के दौरान सच्ची शिक्षा के विजेता पाठकों को सम्मानित भी किया गया। झीड़ी व झोरड़रोही में पूजनीय परम पिता जी द्वारा रूहानी सत्संग फरमाए जाने बारे जब कुछ बुजुर्ग सेवादारों से बातचीत की गई तो उन्होंने उन अनमोल क्षणों को ताजा करते हुए कहा कि वे स्वयं को अति भाग्यशाली मानते हैं जो उन्हेंं उस समय पूजनीय परम पिता जी के दर्शन नसीब हुए। उन्होंने उक्त अनमोल क्षणों को कुछ इस तरह से ब्यां किया।

जिस समय सत्संग था उस समय मेरी उम्र करीब 13 वर्ष की थी। मैं अपने माता-पिता के साथ सत्संग सुनने गया था। सत्संग के दौरान जब आंधी-बरसात आने लगी तो पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाए कि ‘भई एह तां काल का चक्कर है, किसे ने भी उठणा नीं।’ सारी साध-संगत ज्यों की त्यों बैठी रही। कुछ देर बाद सब शांत हो गया। फिर पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया कि ‘भई झोरड़रोही बहोत चंगा नगर है। एथों दे सारे लोक ही नाम ले लैण गे।’ हम खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि हमें पूर्ण सतगुरु के बचपन में ही दर्शन हो गए।
-काका सिंह इन्सां (झोरड़रोही)।

मेरी उम्र उस वक्त 25 वर्ष की थी जब गांव झोरड़रोही में रूहानी सत्संग था। उस समय पूजनीय परम पिता जी 2 दिन तक हमारे घर में ही रहे। हमारे पास जगह कम थी, इस बात पर पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाए कि ‘भई अज्ज तां तुहाडे थां घट हैै, आण वाले टेम च तुहाडे कोठियां होणगियां। किसी वी चीज की थोड़ नीं रेहणी।’ पूजनीय परम पिता जी के सभी वचन पूरे हो गए।
-जरनैल कौर इन्सां (झोरड़रोही)।

उस समय सत्संग रात को हुआ था और रात के 12 बजे तक चला था। गांव के बीच में पूजनीय परम पिता जी ने सत्संग फरमाया था। सतगुरु ने भजन-बंदगी के बाद साध-संगत को अपने रुहानी वचनों एवं हंसी मजाक के जरिए खूब खुशियां लुटाई। इस दौरान समय का पता ही नहीं चला। झीड़ी में सत्संग से एक दिन पूर्व साथ लगते पंजाब क्षेत्र के गांव सरदूलेवाला में भी सत्संग फरमाया था। मैं साइकिल पर सवार होकर वहां भी गया था।
-गुरचरण सिंह इन्सां, महंत (रोड़ी)।

14 मार्च 1965 को जब पूजनीय परम पिता जी ने झीड़ी में अपने पावन चरण टिकाए थे तो उस समय मेरी उम्र करीब 20 वर्ष थी। हम सत्संग सुनने के लिए रोड़ी से साध-संगत के साथ ट्रैक्टर पर सवार होकर आए थे। गांव के नंबरदार विशाखा सिंह ने पूजनीय परम पिता जी से कहा कि गुरु जी आप भजनों में आशिकों की कव्वालियां बहुत बुलवाते हैं। इस बात पर पूजनीय परम पिता जी काफी हंसे और फरमाया कि ‘भई नंबरदारा रब्ब दा आशिक बणना बहोत ओक्खा है, जेहड़ा आशिक बण जांदा है ओह सारियां हदां तो पार हो जांदा है। फेर ओह सिर दी बाजी ला दिंदा है।’
-चिड़िया सिंह इन्सां (रोड़ी)।

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