सच कहूँ की वर्षगांठ पर विशेष

Poem
एक ऐसा अखबार जिसे पढ़ सकता है एक साथ पूरा परिवार

सच कहूँ सा कोई अखबार नहीं देखा
एक दौर था जब झूठ सरेआम बिकता था।
उस दौर में भी ये सच बेखौफ लिखता था।
इसने कभी भी दोगली नजरों से संसार नहीं देखा।

सच में, मैंने ‘‘सच कहूँ’’ सा कोई अखबार नहीं देखा।
सिर्फ खबरें नहीं, ये तहजीब भी ले कर आता है।
गुरुओं की अमूल्य वाणी का ज्ञान भी करवाता है।
इसके पन्नों में कभी कोई बेतुका समाचार नहीं देखा।

सच में, मैंने ‘‘सच कहूँ’’ सा कोई अखबार नहीं देखा।
विज्ञापनों के लिए कभी भी ईमान नहीं बेचा इसने।
सच लिखते हुए जात और मजहब नहीं देखा इसने।
इसके इलावा सच का कोई पहरेदार नहीं देखा।

सच में, मैंने ‘‘सच कहूँ’’ सा कोई अखबार नहीं देखा।
बेखौफ लिखने वालों के भी, “सच कहूँ” हरदम साथ रहा है।
‘त्रिदेव’ की कलम को निखारने में भी इसका पूरा हाथ रहा है।
समूचे मीडिया जगत में इस जैसा जिम्मेदार नहीं देखा।

सच में, मैंने ‘‘सच कहूँ’’ सा कोई अखबार नहीं देखा।
आइए, हम सब मिलकर ‘‘सच कहूँ’’ का जन्मदिन मनाएं।
पक्षियों के लिए छतों पर दाना-पानी जरूर डाल कर आएं।
अपने बर्थ डे पर इससे बेहतर कोई उपहार नहीं देखा।

सच में, मैंने ‘‘सच कहूँ’’ सा कोई अखबार नहीं देखा।
सच में, मैंने ‘‘सच कहूँ’’ सा कोई अखबार नहीं देखा।
                              – त्रिदेव दुग्गल मुंढालिया