अपने शिष्य का मौत जैसा भयानक कर्म सपने में ही भुगतवा दिया

Satguru ji sachkahoon

प्रेमी हंस राज खट्टर पुत्र श्री गुरांदित्तामल गऊशाला रोड, सरसा से पूजनीय परम संत बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत का वर्णन करते हुए बताता है कि मेरा छोटा भाई इन्द्रजीत जोकि अपना शरीर छोड़कर सचखंड जा चुका है, उसने पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से नाम-दान लिया था और दरबार में रहकर ही सेवा व सुमिरन किया करता था। इंद्रजीत शादी नहीं करवाना चाहता था। किंतु मेरी माता ने एक दिन पूज्य शहनशाह जी के चरणों में अरदास की, कि सार्इं जी! इन्द्रजीत शादी नहीं करवाता। इस पर बेपरवाह जी ने इन्द्रजीत की तरफ मुखातिब होकर वचन फरमाया, ‘पुट्टर! तू अपना घर-बार बसा। अपने मां-बाप को राजी कर।’ शहनशाह जी के वचनों के अनुसार उसने शादी करवा ली।

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इसके बाद वह सिलाई मशीनों का एजेंट बनकर अपना कारोबार करने लग गया यानि वह कम्पनी से मशीनें मंगवाता और आगे अपना कमिश्न लेकर उन्हें बेच देता। इस तरह उसका रोजगार बहुत बढ़िया चल पड़ा। एक बार वह लुधियाना के किसी एजेंट के साथ व्यापार के संबंध में अहमदाबाद चला गया। काम पूरा कर लेने के बाद उन दोनों ने राय बनाई कि वो सुबह वाली गाड़ी में वहां से दिल्ली जाएंगे। उस रात्रि वे वहां किसी होटल में ठहरे हुए थे। यह सलाह-मशहवरा बनाकर वो दोनों सो गए। उस रात इन्द्रजीत को सपना आया कि वो दोनों रेलगाड़ी द्वारा अहमदाबाद से दिल्ली जा रहे हैं और रास्ते में उसी रेलगाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। उस दुर्घटना में लाशें ही लाशें पड़ी हुई हैं और सैंकड़ों आदमी घायल भी हैं। इन्द्रजीत ने बताया कि वह भी उन लाशों के बीच जख्मी हुआ पड़ा था, पर मुझे पूरी होश थी और वहीं पड़ा उन लाशों को देख रहा था। इतने में अचानक पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज पास आए। उसने देखा कि प्यारे सार्इं जी स्वयं उसके शरीर से बह रहे खून को कपड़े से साफ कर रहे हैं और इसी दरमियान उसकी आंख खुल गई।

अगली सुबह लुधियाना वाले एजेंट ने मेरे भाई से कहा कि ‘इन्द्रजीत! जल्दी कर, गाड़ी का टाईम हो गया है, हमने दिल्ली पहुंचना है।’ तो रात्रि के उस भयानक दृष्टांत के मद्देनजर इन्द्रजीत ने उसको जवाब दे दिया कि ‘मैं तो कल जाऊंगा, मुझे कोई काम है।’ दो-तीन दिन बाद इन्द्रजीत को पता चला कि उस रेलगाड़ी का एक्सीडेंट हो गया, जिसमें वो लुधियाने वाला एजेंट भी मारा गया। यह सुनकर इन्द्रजीत ने अपने पूजनीय सतगुरु बेपरवाह मस्ताना जी महाराज का कोटि-कोटि बार धन्यवाद किया जिनकी दया-मेहर से ही उसे दोबारा जिंदगी मिल पाई थी। प्रेमी हंसराज बताता है कि उपरोक्त सच्ची घटना मेरा भाई इन्द्रजीत खुद हमें बताया करता था।

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