प्रेरणास्त्रोत : एरिक हॉफर का स्वाभिमान

Eric-hofer
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प्रख्यात दार्शनिक एरिक हॉफर बचपन से ही काफी मेहनती थे। वह कठिन से कठिन काम करने से भी नहीं घबराते थे। काम करते समय उन्हें परवाह भी नहीं होती थी कि उन्होंने खाना खाया है या नहीं। एक बार उनका काम छूट गया और उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई। अनेक प्रयासों के बाद भी उन्हें कहीं रोजगार नहीं मिला, लेकिन पेट तो भरना ही था। तीन-चार दिन उन्हें भूखे रहते हुए हो गए। भूख से व्याकुल हॉफर कुछ काम पाने की आस में घूम रहे थे। वह एक होटल पहुंचे। होटल वाला उन्हें पहचान गया। वह उनके लेखन से परिचित था। उसने उनके अनेक लेख पढ़े थे और उनका प्रशंसक भी था।
उसने उनसे बड़े प्रेम से पूछा कि वह भोजन में क्या लेंगे एरिक हॉफर ने कहा, ‘मैं भूखा तो हूं और भोजन भी करना चाहता हूं, लेकिन उसके लिए मेरी एक शर्त है।’ यह सुनकर होटेल मालिक बोला, ‘बताइए, मैं आपकी शर्त मानने के लिए तैयार हूं।’ हॉफर बोले, ‘भोजन के बदले आप मुझसे कुछ काम अवश्य करवाएंगे। मैं नि:शुल्क भोजन नहीं करूंगा और इस समय मेरे पास पैसे नहीं हैं। इसलिए, पैसे के बदले आप मेरी सेवा ले सकते हैं।’ होटल मालिक यह सुनकर हैरत में पड़ गया पर वह क्या करता। उसने उनकी बात का सम्मान किया। उसने उन्हें भरपेट खाना खिलाया। उसके बाद हॉफर ने होटल में अन्य वेटरों की तरह कुछ देर तक मन लगाकर काम किया। फिर वह होटेल मालिक के प्रति आभार व्यक्त करके वहां से निकले। होटल मालिक एरिक हॉफर के स्वाभिमान का कायल हो गया। हॉफर ने अपने स्वाभिमान, कठोर श्रम और प्रखर बुद्धि के बल पर अपनी अलग पहचान बनाई।

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