अपनी बात कहना भी एक कला है

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हमारे जीवन में बात करने या अपने पक्ष को प्रस्तुत करने के ढंग का बड़ा महत्त्व है, या यों कह लीजिये कि मनुष्य में वाक्य कौशलता एक सिद्धि है। जो मनुष्य बात करने की कला और महत्त्व को अच्छी तरह जानते-समझते हैं, वे अपनी बोलचाल की भाषा में उचित, सरल, नम्र और नपे तुले शब्द जोड़कर उसे इतना प्रभावशाली बना देते हैं कि सुनने वाला बरबस ही बात की सच्चाई पर विश्वास करने को मजबूर हो जाता है। हाजिर जवाबी की कला में माहिर व्यक्ति किसी को भी अपने शब्दजाल में फांसकर अपने पक्ष में करने के लिये विवश कर देता है।

दूसरी ओर ऐसा व्यक्ति जो विषय से हटकर इधर-उधर की हांकता है और जो मुंह में आये, बक देता है, वह मुंहफट कहलाता है। ऐसा व्यक्ति न तो किसी को प्रभावित कर पाता है, न ही विश्वास योग्य होता है और न ही समाज में आदर पाता है। महान मुगल सम्राट के दरबार में बीरबल उनके नौ रत्नों में से एक थे। अपने विवेक, सूझबूझ और हाजिर जवाबी के कारण ही वह बादशाह अकबर के चहेते और भरोसेमन्द थे।

वाक कौशल का एक उदाहरण प्रस्तुत है-

किसी देश में नियुक्त एक राजदूत का कार्यकाल पूरा हो गया था। उसे अपने देश वापस लौटने के आदेश दिये जा चुके थे।
अपने देश लौटने से एक दिन पहले राजदूत उस देश के सम्राट से विदा लेने के लिये उनके राजमहल में पहुंचा। राजदूत बड़ा चाटुकार और बातों का धनी था। उसने सम्राट से अपने कार्यकाल के दौरान उस राज्य में बिताये गये दिनों की खूब बढ़ चढ़कर बड़ाई की। तारीफों के अनेक पुल बांधे। अंत में बातों ही बातों में उसने सम्राट की बड़ाई में यहां तक कह डाला-महाराज, आप तो महान हैं। आपकी तो कोई तुलना ही नहीं है। आप तो पूर्णिमा के चांद के समान हैं।’ राजदूत के मुंह से अपनी उपमा पूर्णिमा के चांद के रूप में सुनकर सम्राट खुशी से फूला नहीं समाया। उसने राज्य की ओर से राजदूत को एक प्रशंसापत्र, उपहार और लाखों रुपए मूल्य के हीरे जवाहरात भेंट स्वरूप प्रदान किये। राजदूत अपने देश लौट आया।

राजदूत के आते ही राजा के एक विश्वासपात्र अधिकारी ने उसके खिलाफ राजा के कान भर दिये। उसने राजा से कहा-‘महाराज, आपका यह दूत वापस आते समय दूसरे देश के सम्राट को पूर्णिमा के चांद की उपमा देकर आया है। इसके बदले सम्राट ने खुश होकर उसे अनेक कीमती उपहारों से नवाजा है। महाराज दूसरे देश के सम्राट को पूर्णिमा के चांद के समान कहने का तो सीधा-सीधा अर्थ यहीं हुआ कि उस सम्राट के समान और कोई दूसरा है ही नहीं। एक तरह से तो उसने अपने ही राजा को नीचा दिखाकर अपमानित किया है।’ यह सुनकर राजा क्रोधित हो उठा। उसने दूत को बुलवाया और पूछा-झ्सुना है, तुमने विदेश में अपने राजा का अपमान किया है?’

राजदूत ने आश्चर्यचकित होकर कहा-‘अपमान, कैसा अपमान महाराज। अपने राजा के प्रति तो मेरे हृदय में पूरी निष्ठा और सम्मान भरा है।’ ‘क्या तुमने दूसरे देश के सम्राट को पूर्णिमा का चांद बताकर हमें नीचा दिखाया?’ राजा ने कहा।
राजदूत ने अपने वाक कौशल का परिचय देते हुए बड़े धैर्यपूर्वक और विन्रम शब्दों में कहा-‘ओह महाराज, उस राजा से भला आपकी क्या तुलना। आप तो दूज के चांद के समान हैं। दूज का चांद तो प्रगति और संभावनाओं से भरा हुआ है। उसे तो हर दिन आगे ही आगे बढ़ना है। पूर्णिमा का चांद तो पतन का प्रतीक है। आपका यश तो दिन दूना और रात चौगुना बढ़ेगा, उस राजा की कीर्ति तो समाप्ति पर है।’ राजदूत की बात सुनकर राजा बड़ा प्रभावित और प्रसन्न हुआ।

सच है, जो वाक कौशल के धनी होते हैं, वे अच्छे और लुभावने वचन बोलने में जरा भी कजूंसी नहीं बरतते। उसी का लाभ वे उठा जाते हैं।
-उर्वशी

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