जिज्ञासुओं के सवाल पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के जवाब:-
प्रश्न : कोई आत्महत्या कर लेता है तो क्या यह उस इन्सान की प्रारब्ध है? यदि उसका अंत ही ऐसा है तो उसे आत्महत्या का दंड क्यों?
उत्तर : एक-न-एक दिन हर किसी ने जाना है और कुदरती मृृत्यु के बारे में जन्म से पहले ही इन्सान के जीवन-काल में लिख दिया जाता है। इन्सान खुद-मुखत्यार है तथा वह आत्महत्या जान-बूझकर करता है। इसलिए आत्महत्या रूहानी संत-महापुरूषों, ऋषि-मुनियों, गुरू, पीर-फकीरों के अनुसार महापाप है। अत: वह इन्सान, किसी इन्सान की हत्या के समान मिलने वाली सजा का भागीदार है।
प्रश्न : दर्शनों के प्रति तड़प कैसे पैदा हो सकती है?
उत्तर : सतगुरू के हुक्मानुसार निरंतर सेवा, सुमिरन और दृढ़-विश्वास के द्वारा मालिक के प्रति ह्रदय में सच्ची तड़प पैदा हो जाती है।
प्रश्न : आत्माएं काल के जाल में कैसे फंसी?
उत्तर : अपने परम -पिता परमात्मा को भूल जाने के कारण रूहें काल के जाल में फंस गई। परमात्मा ने अपनी नूर-ए-किरण(रूहें) सृष्टि की रौनक बढ़ाने के लिए त्रिलोकी नाथ को सौंपते वक्त यह हिदायत दी थी कि जाओ और त्रिलोकी की रचना देखकर वापिस अपने घर आ जाना और परम पिता परमात्मा को भूलना मत। लेकिन रूहें काल की सुंदर रचना में ऐसी उलझी कि यहीं पर दिल लगा लिया और अपने मालिक को भूल गई और हमेशा के लिए काल के चक्करव्यूही-जाल में फंस कर रह गई।
प्रश्न : क्या कभी यह दुनिया भी नष्ट हो जाएगी?
उत्तर : प्रकृति का नियम है कि जो बना है, वह नष्ट भी जरूर होगा। रूहानी, संत, पीर-फकीर तो सबकी भलाई के लिए ही दुआ करते हैं। ‘मारै राखै आपे आप’ बचाने वाला या मारने वाला तो स्वयं परम पिता परमात्मा ही है, पर देखा जाए तो दुनिया के खात्मे का सामान तो इन्सान ने खुद ही बना कर रख छोड़ा है।
प्रश्न : इन्सान की मृत्यु के उपरांत अक्सर कहा जाता है कि हे प्रभु, ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरू, राम। इसकी आत्मा को शांति देना तो क्या इस तरह कहने से उस रूह को सचमुच शांति मिल जाती है?
उत्तर : किसी के भले के लिए मालिक, प्रभु-परमात्मा से दुआ करना कोई बुरी बात नहीं। हर जीवात्मा को फल उसके कर्मों के अनुसार ही मिलता है। जिस सत्संगी ने अपने जीवन में हमेशा नेक कार्य किए हैं तो मरणोंपरांत उसकी आत्मा को शांति ही मिलती है और जो जिंदगी भर दूसरों को तड़पाता रहा है तो उसकी आत्मा को रूहानी मंडलों में सजा भुगतनी होगी।
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