शिक्षा के लिए बने मजबूत ढांचा

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कोविड-19 महामारी का प्रकोप बढ़ने से एक बार फिर स्कूल बंद रखने का निर्णय लिया है। पंजाब, हरियाणा सहित कई राज्यों ने स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना के कारण सबसे ज्यादा स्कूली शिक्षा प्रभावित हुई है। बेशक जीवन से बढ़कर कुछ भी नहीं, लेकिन शिक्षा के मामले में सरकारें कोई वैकल्पिक प्रबंध बनाने में असफल रही हैं। अभी तक न तो आॅनलाइन शिक्षा के लिए कोई ठोस प्रबंध किए और न ही स्कूलों को कम हाजिरी से चालू रखने का कोई रास्ता निकाला गया है। वास्तविक्त अर्थों में कहें तो सरकारी स्कूलों में आॅनलाइन शिक्षा तो न के बराबर है, होना तो यह चाहिए था कि पिछले दो सालों के समय में नए हालातों के मुताबिक व्यवस्था में बदलाव किया जाता। केवल आॅनलाइन कह देने से शिक्षा आनलाइन नहीं होती बल्कि इसके लिए सटीक ढांचा तैयार करने की आवश्यकता होती है जिसमें स्मार्टफोन, इंटरनेट सुविधा से लेकर कमरों को शोररोधी बनाने की आवश्यकता है।

यह भी किया जा सकता है कि विद्यार्थियों की शिफ्ट बनाकर शिक्षा को जारी रखा जाए। अभी तक राजनीतिक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को बंद रखने से परहेज किया जा रहा है ताकि आर्थिकता का पहिया घूमता रहे और सबसे पहले स्कूलों को लेकर ही फैसले लिए जाते हैं। मुश्किल यह है कि स्कूल तब बंद हो रहे हैं जब वार्षिक परीक्षाओं में केवल दो महीनों का समय रह गया है। भले ही जीवन का शिक्षा से ज्यादा महत्व है लेकिन कोरोना महामारी के मुताबिक शिक्षा ढांचें में सुधार के लिए नीतियां नहीं बन सकीं। हैरानी इस बात की है कि शिक्षा को लेकर निर्णय उस वक्त लिए जा रहे हैं जब राजनीतिक रैलियां भी हो रही हों। दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी कोरोना हो गया और महाराष्टÑ के दर्जनों मंत्री और विधायक कोरोना संक्रमित हो गए।

इन परिस्थितियों में स्कूल बंद करने का निर्णय गलत तो नहीं लेकिन इसे व्यवहारिक कहना भी कठिन है। स्कूल बंद हों, लेकिन शिक्षा का प्रवाह चलता रहना चाहिए। किसी भी काम के लिए दो सालों का समय अपर्याप्त नहीं। आज आवश्यकता है सरकार, संस्थान, समाज, इंडस्ट्री लीडर्स एवम स्वयं छात्रों को मिल जुलकर सभी छात्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करना होगा, परीक्षाओं का विकल्प तलाशने होंगे, आॅनलाइन प्रोजेक्ट्स, असाइनमेंट्स अच्छे विकल्प साबित हो सकते हैं, इंडस्ट्रीज को आगे आना चाहिए एवम छात्रों को प्लेसमेंट, प्रोजेक्ट्स इंटर्नशिप आदि देकर उन्हें तनाव से उभार सकते हैं। अभिवावकों की भी जिम्मेदारी है कि वो इस मुश्किल वक्त में अपने बच्चों का मनोबल बढ़ाते रहें उन्हें सकारात्मकता के लिए प्रेरित करें।

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