लम्पी स्किन डिजीज का उपचार आयुर्वेदिक पद्धति से भी सम्भव

Lumpy Skin

श्रीगंगानगर (सच कहूँ न्यूज)। गौवंशीय पशुओं में फैल रही लम्पी स्किन डिजीज के बचाव एवं उपचार के लिये आयुर्वेदिक पद्धति से भी पशुपालन विभाग राजस्थान जयपुर द्वारा उपाय बताए गए है। लम्पी त्वचा रोग एक वायरल बीमारी है, जो मवेशियों में लम्बे समय तक रूग्णता का कारण बनती है। ये रोग पॉक्स वायरस के कारण होता है। पूरे शरीर में 2 से 5 सेंटीमीटर गांठों के रूप में प्रकट होता है।

आयुर्वेद पशु चिकित्सा औषध व्यवस्था : संक्रमण होेने के बाद प्रथम तीन दिनों के लिये पान के पत्ते 10 नग, काली मिर्च पाउडर 10 नग, ढेलेवाला नमक 10 नग व आवश्यकतानुसार गुड दिया जा सकता है। यह सामग्री एक खुराक की मात्रा है। सामग्री को अच्छी तरह से पीसकर गुड के साथ मिलाकर लड्डू बना लें। पहले तीन दिनों तक संक्रमित पशु को हर तीन घंटे में एक लड्डू खिलाए।

संक्रमण होने के चार से 14 दिनों में मुख से देने वाली औषध व्यवस्था : संक्रमित पशु को चार से 14 दिनों में नीम के पत्ते एक मुठ्ठी, तुलसी के पत्ते एक मुठ्ठी, लहसुन की कली 10 नग, लौंग 10 नग, काली मिर्च पाउडर 10 नग, पान के पत्ते 5 नग, छोटे प्याज 2 नग, धनिये के पत्ते 15 ग्राम, जीरा 15 ग्राम, हल्दी पाउडर 10 ग्राम व गुड मिलाकर दिया जाये। ये सामग्री एक खुराक की मात्रा है। सामग्री को पीसकर लड्डू बनाकर सुबह शाम और रात में खिलाएं।

खुले घाव के लिये स्थानीय उपचार : संक्रमित पशु के खुले घाव के लिये नीम के पत्ते एक मुठ्ठी, तुलसी के पत्ते एक मुठ्ठी, मेहंदी के पत्ते एक मुठ्ठी, लहसुन की कली 10 नग, हल्दी पाउडर 10 ग्राम व 500 मिलीलीटर नारियल का तेल मिलाकर धीरे-धीरे पका लें एवं ठण्डा करने के पश्चात उपयोग में लें। उपयोग से पूर्व नीम की पत्तियों से उबले हुए पानी से घाव साफ करे।

लम्पी स्किन रोग से बचाव एवं संक्रमित पशुओं के स्नान (सफाई) की व्यवस्था : पशुओं के स्नान के लिये 25 लीटर पानी में एक मुठ्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट एवं 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। इस घोल के स्नान के पांच मिनट पश्चात सादे पानी से स्नान कराना चाहिए।

लम्पी स्किन रोग से बचाव एवं संक्रमित पशुओं के लिये धूपन व्यवस्था : संक्रमण को रोकने के लिये पशु बाड़े में और गायों के बीच गोबर के छाणे, कण्डे, उपले जलाकर उसमें गुगल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते, लोबान को डालकर सुबह शाम धूपन की जा सकती है।

लक्षण

आमतौर पर हल्के से लेकर गंभीर रूप तक होते है, 41 डिग्री सेल्सियस से उपर तेज बुखार पहला लक्षण है। पशु सुस्त व उदास हो जाता है व चारा खाने से इनकार कर देता है और कमजोर हो जाता है। छाती क्षेत्रा और कोहनी क्षेत्रा के पास सूजन के परिणाम स्वरूप लंगड़ापन होता है। त्वचा के नीचे ढ़ाई सेंटीमीटर दृढ़ स्पष्ट गोल पिण्ड पूरे शरीर में विकसित हो जाते है। 7 से 15 दिनों के भीतर नोड्यूल्स फूटने लगते है और खून बहने लगता है। इस घाव से संक्रमित जानवरों में सांस लेने में कठिनाई दिखाई देती है।

संक्रमण से बचाव के उपाय

संक्रमण से बचाव के लिये तुलसी के पत्रा एक मुठ्ठी, दालचीनी 5 ग्राम, सोंठ पाउडर 5 ग्राम, काली मिर्च 10 नग व गुड आवश्यक मात्रा में दिया जा सकता है। ये सामग्री एक खुराक की मात्रा है। पशु को सुबह शाम खुराक के लड्डू बनाकर खिलाए या आवंला, अश्वगंधा, गिलोय एवं मुलेठी में से किसी एक को 20 ग्राम की मात्रा में गुड मिलाकर सुबह शाम लड्डू बनाकर खिलाए।

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