पटरी पर कटे पैर, फिर भी ट्रैक पर दौड़ाई जिदंगी

Amar Singh

(Amar Singh) हादसा। फूलों की गठरी को दूसरी ट्रेन में लादते वक्त फिसल गया था अमर सिंह

  • हौंसला हारे लोगों के लिए बन गया मिसाल

संजय मेहरा / सच कहूँ गुरुग्राम। ‘‘जिंदगी में हमारी अगर दुश्वारियां ना होती तो लोगों को हमपे यूं हैरानियां ना होती।’’ यह बात उस इंसान पर सटीक बैठती है, जिसने एक ट्रेन हादसे में अपने दोनों पैर गंवा दिये। ( Amar Singh ) इस विकट शारीरिक अक्षमता के बाद भी उसने जीवन को नये सिरे से शुरू किया। आज वह बिना पांव के न केवल शरीर का बेहतर बैलेंस बनाकर रखता है, बल्कि जीवन का भी उसने ऐसा बैलेंस बनाया कि हर कोई उनके जज्बे को सेल्यूट करता है।  गुरुग्राम जिला के ब्लॉक फर्रूखनगर के गांव पातली-हाजीपुर के रहने वाले 43 साल के अमर सिंह उर्फ कालू पुत्र धर्मपाल लोहचब उन लोगों के सामने बड़ा उदाहरण हैं, जो कि जीवन में कुछ कमियों की वजह से निराशा से घिर जाता है।

  • लोग बहुत बार आत्महत्या तक कर लेते हैं।
  • अमर सिंह ने सब तरह की निराशाओं, शारीरिक अक्षमताओं के बीच खुद को खड़ा किया।
  • बेशक उन्होंने ट्रेन हादसे में अपने दोनों पांव खो दिये।
  • देखने में उनका कद छोटा हो गया।
  • अपने आप को समाज में स्थापित करके उन्होंने अपने कद को लोगों की नजर में बड़ा भी कर लिया है।
  • अमर सिंह कहते हैं कि मन से दिव्यांगता रूपी कवच को उतारकर जीना ही असली जीत है।

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 जीवन की जद्दोजहद में ही मिली दिव्यांगता

अमर सिंह की जीवन की जद्दोजहद में ही दिव्यांगता मिली है। अतीत के झरोखे में झांककर अमर सिंह बताते हैं कि अगस्त 2013 में वह अपने खेतों में से गेंदे के फूलों की गठरी लेकर दिल्ली की खारी बावली स्थित फूल मंडी में जा रहा था। ट्रेन में ज्यादा भीड़ होने के कारण वह फूलों की गठरियों को शाहाबाद रेलवे स्टेशन, दिल्ली से दूसरी ट्रेन में रख रहा था। उसी दौरान उसका पैर फिसल गया और ट्रेन के नीचे आकर उसके दोनों पैर कट गए। कई माह के उपचार के बाद जब घर पहुंचा तो घर की आर्थिक हालत कमजोर हो चुकी थी।

  • दो बेटे, दो बेटी ओर उसकी पत्नी घर को जैसे-तैसे चला रही थी।
  • यह उधेड़बुन उनको सताने लगी कि आखिर वह क्यों बेटे, बेटियों और पत्नी पर बोझ बनकर रहे।
  • अमर सिंह जीवन को फिर से पटरी पर लाने के मन में विचार लाते रहे।
  • जब पांवों के घाव पूरी तरह से भरकर ठीक हुये तो उन्होंने काम करने की सोची।

छह एकड़ में खेती और पशुपालन कर पेश की मिसाल

अमर सिंह मात्र तीसरी कक्षा तक ही पढ़े हैं। उसके तीन भाई हैं। उसके पिता के पास करीब 6 एकड़ भूमि है। दोनों पैर गवां देने के बाद भी वह अपने परिवार का भार उठाने में अपने आप को सक्षम समझते हैं। दिव्यांगता को शिकस्त देते हुए अमर सिंह पिछले सात साल से अपने घुटनों के नीचे से कटे हुए दोनों पैरों में बोरी, पुराने कपड़े और पॉलीथीन आदि बांधकर अपनी पत्नी के साथ मिलकर कृषि, पशु पालन आदि कार्यों में साथ देता है। वह 2 एकड़ अपने हिस्से व भाइयों के हिस्से की करीब 4 एकड़ भूमि पर खेती करता है। साथ ही छोटे-बड़े 22 पशुओं को भी पाल रहा है।

तब पेंशन बनवाने को लेकर खाई थी कसम

अपनी दिव्यांगता पेंशन बनवाने को लेकर अमर सिंह कहते हैं कि वे सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटकर थक गये, लेकिन उनकी पेंशन नहीं बनाई गई। उन्हें बार-बार यही कहा गया कि वह अपना मेडिकल सर्टिफिकेट रिन्यू कराकर लायें। जब वे इसके लिए जाते तो कहा जाता है कि जब पांव कट चुके हैं तो फिर यही मेडिकल सर्टिफिकेट रहेगा। थक-हारकर उन्होंने कसम खाई कि जब तक राकेश जांघू दौलताबाद विधायक नहीं बनेंगे, वे पेंशन के लिए आवेदन नहीं करेंगे। अब 2019 के विधानसभा चुनाव में राकेश दौलताबाद विधायक बन चुके हैं। इसलिए अमर सिंह ने पेंशन बनवाने के लिए आवेदन किया है।

क्या कहते हैं विधायक राकेश जांघू ( Amar Singh )

इस बारे में जब बादशाहपुर के विधायक राकेश जांघू दौलाबाद से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हल्के का कोई भी व्यक्ति उनके पास पहुंचता है तो वे पूरी मदद करते हैं। अमर सिंह की पेंशन बनाने में किसी भी तरह की कोई दिक्कत आ रही है या फिर बेवजह उन्हें परेशान किया गया तो ठीक बात नहीं है। वे अमर सिंह की पूरी मदद करने का भरोसा देते हैं।

 

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