लैंगिक समानता की दिशा में अदालत का एक अहम फैसला

An important decision of the court on gender equality
सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए, महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने का फैसला दिया। अदालत का यह फैसला, सभी सेवारत महिला अधिकारियों पर लागू होगा। 14 साल से ज्यादा समय से नौकरी कर रही और स्थायी कमीशन का विकल्प नहीं लेने वाली महिला अधिकारी 20 साल तक नौकरी में रह सकेंगी, ताकि उन्हें पेंशन की पात्रता मिल जाए।
देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना में महिला अधिकारों और समानता को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि अगर कोई महिला अफसर स्थायी कमीशन चाहती है, तो उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता। भले ही उनकी नौकरी 14 साल से अधिक हो गई हो। उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए, जो यह विकल्प चुनना चाहती हैं। महिलाओं को शारीरिक आधार पर परमानेंट कमीशन न देना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। अदालत ने इसके लिए मार्च, 2019 के बाद सेना से जुड़ने की सरकारी शर्त भी हटा दी। अदालत ने परमानेंट कमीशन देने के हाई कोर्ट के आदेश पर एक दशक तक अमल न करने पर, केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू नहीं किया।
अदालत ने केन्द्र सरकार की इन दलीलों कि सेना में ज्यादातर जवान ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं और महिला अधिकारियों से फौजी हुक्म लेना उनके लिए सहज नहीं होगा। महिलाओं की शारीरिक स्थिति और पारिवारिक दायित्व जैसी बहुत सी बातें उन्हें कमांडिंग अफसर बनाने में बाधक हैं, को स्पष्ट तौर पर खारिज करते हुए कहा कि सरकार, अपने दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव लाए। उसकी यह सोच, अतार्किक और समानता के अधिकार के खिलाफ है। महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने से इंकार, स्टीरियोटाइप्स पूर्वाग्रह का उदाहरण है। महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। महिला अधिकारी अपने पराक्रम में कहीं से भी कम नहीं हैं। अदालत ने अपने फैसले में जो भी बातें कहीं हैं, वे सही भी हैं। इस तरह के मामलों में पहले भी शीर्ष अदालत ने लैंगिक समानता का पक्ष लिया है और लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव को गलत ठहराया है। सच बात तो यह है कि केंद्र सरकार ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन न देने की अदालत में जो दलीलें पेश की थीं, वे न सिर्फ दकियानूस और प्रतिगामी थीं, बल्कि सेना में महिलाओं के असाधारण प्रदर्शन के रिकॉर्ड से भी मेल नहीं खातीं।
अदालत ने अपने इस अहमतरीन फैसले में बाकायदा देश की उन 11 महिला सैन्य अधिकारियों जिसमें कैप्टन तानिया शेरगिल, ले. कर्नल सोफिया कुरैशी और मेजर मधुमिता शामिल हैं, की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियां गिनाई, जिन्होंने अपने बहादुरी भरे कारनामों से देश का सम्मान बढ़ाया और जिन्हें सेना पदक समेत कई वीरता पदक मिल चुके हैं। इन महिला अफसरों ने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भी भाग लिया है और पुरस्कार प्राप्त किए हैं। लिहाजा सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं के योगदान को शारीरिक संरचना के आधार पर कमतर आंकना सरासर गलत है। पुरूष समकक्षों के मुकाबले उन्हें कमतर समझा जाना, पुरुषग्रंथी के सिवाय और कुछ नहीं। महिला होने के आधार पर उनकी क्षमता पर सवाल उठाना न सिर्फ उनकी महिला होने की गरिमा का निरादर है, बल्कि भारतीय सेना के एक सम्मानित सदस्य का भी निरादर है।
जाहिर है अदालत के इस फैसले से सेना में महिलाओं को आगे आने का मौका मिलेगा। थलसेना में उन्हें स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग दिए जाने का रास्ता खुलेगा। फैसले से सेना में सेवारत 1,653 महिला सैन्य अधिकारियों को फायदा होगा। महिला होने के आधार पर उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित नहीं किया जा सकेगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2010 में उनके हक में फैसला सुनाया। सितंबर, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर अपनी मोहर लगा दी थी। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने इस पर अमल नहीं किया। हाईकोर्ट के फैसले के नौ साल बाद, फरवरी 2019 में सरकार ने सेना के 10 विभागों में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने की नीति बनाई, लेकिन साथ में यह शर्त भी जोड़ दी कि इसका फायदा, मार्च 2019 के बाद से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही मिलेगा। इस तरह वे महिलाएं स्थायी कमीशन पाने से वंचित रह गईं, जिन्होंने इस मसले पर लंबे अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी थी।
मामला फिर अदालत में पहुंचा और सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए, महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने का फैसला दिया। अदालत का यह फैसला, सभी सेवारत महिला अधिकारियों पर लागू होगा। 14 साल से ज्यादा समय से नौकरी कर रही और स्थायी कमीशन का विकल्प नहीं लेने वाली महिला अधिकारी 20 साल तक नौकरी में रह सकेंगी, ताकि उन्हें पेंशन की पात्रता मिल जाए। देश में महिलाएं 88 साल से भारतीय सेनाओं में हैं। सबसे पहले साल 1927 में महिलाओं को सेना में नर्सिंग सेवाओं की खातिर शामिल किया गया था। फिर उसके बाद साल 1943 में चिकित्सा अधिकारी के तौर पर उन्हें सेना में जगह मिली।
बहरहाल एक लंबे अंतराल के बाद साल 1992 में भारतीय सशस्त्र सेना की दीगर इकाइयों में भी महिलाओं को शामिल होने की इजाजत दी गई। समय के साथ हमारी सेना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। लेकिन जनसंख्या में उनकी भागीदारी के मुताबिक अभी भी वह उतनी नहीं है, जितनी की होनी चाहिएं। सेना की तीनों कमानों में कुल सैन्य अफसरों में महज 3.80 फीसदी महिला अफसर हैं। साल 2008 में सेना की दो ब्रांच में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया गया। जिसमें जज एडवोकेट जनरल और आर्मी एजुकेशन कोर शामिल हैं।
महिला अधिकारियों को कॉम्बैट रोल न देने के पीछे अक्सर यह दलीलें दी जाती है कि शारीरिक तौर पर वे पुरुषों के मुकाबले कमतर हैं। वे असाधारण परिस्थितियों को सामना नहीं कर सकतीं। महिलाएं 20 दिन पेट्रोलिंग ड्यूटी पर नहीं जा सकतीं, सियाचिन जैसी जगहों में वे ड्यूटी नहीं कर सकतीं। महिलाओं को पुरुष जवानों के साथ रहने में परेशानी होगी आदि-आदि। यह दलील भी दी जाती है कि अगर महिला अफसर को युद्धबंदी बना लिया गया तो फिर क्या होगा? जाहिर है कि यह सारी दलीलें तर्कसंगत नहीं। सच बात तो यह है कि लैंगिक भेदभाव की वजह से महिलाएं, पुरुषों से पीछे रही हैं। वरना उनकी काबिलियत में कहीं कोई कमी नहीं। अनुशासन, समर्पण, पराक्रम और सेना की प्रतिष्ठा बनाए रखने में महिलाएं कम नहींं। सेना में कॉम्बैट भूमिका भी वे बेहतर तरीके से निभ़ा सकती हैं। सेना में कई बार ऐसे मौके आए हैं, जब महिलाओं ने अपनी काबिलियत बेहतर तरीके से दिखलाई है।
वायुसेना में जब उन्हें कॉम्बैट भूमिका मिली, फाइटर विमान उड़ाने का मौका मिला, तो उन्होंने यहां भी अपने आप को साबित कर दिखाया। पुरुषों की तरह महिलाएं भी सेना के हर क्षेत्र में काम कर सकती हैं, बस जरूरत उन्हें और अधिक मौका देने की है। सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का शीर्ष अदालत का फैसला, निश्चित तौर पर लैंगिक समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। सच मायने में महिलाएं और भी ज्यादा सशक्त होंगी। अदालत ने अपने फैसले से सेना में महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म किया है। महिला-पुरुष के बीच समानता का संदेश दिया है। इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। पूरे देश में लड़कियों को उन क्षेत्रों में भी आगे आने की प्रेरणा मिलेगी, जिनमें पुरुषों का विशेषाधिकार माना जाता है।
शीर्ष अदालत के हालिया फैसले के बाद अब महिला अधिकारियों को 10 ब्रांच में स्थायी कमीशन मिलेगा। जिनमें आर्मी एविएशन कोर, सिग्नल, इंजीनियरिंग, आर्मी एयर डिफेंस, मेकेनिकल इंजीनियरिंग, आर्मी सर्विस कोर, आर्मी ऑर्डिनेंस और इंटेलिजेंस शामिल है। महिलाएं अब सेना में पूर्णकालिक रूप से कर्नल या उससे ऊपर रैंक पर पदस्थ हो सकती हैं। एक महिला कर्नल अब 850 पुरुषों की एक बटालियन की कमान संभाल सकती है। महिलाएं योग्यता के आधार पर ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और सैद्धांतिक रूप से सेना प्रमुख के पद तक बढ़ सकती हैं। अलबत्ता महिलाओं को कॉम्बैट रोल यानी युद्धक भूमिका देने का फैसला अदालत ने सरकार और सेना पर छोड़ दिया है। पीठ ने स्पष्ट किया कि युद्धक भूमिका में महिलाओं की तैनाती नीतिगत विषय है। इस पर संबंधित अधिकारियों को निर्णय लेना चाहिए।
जाहिद खान

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