जिंदगी की जंग के साथ सिद्धार्थ ने जीता दिल

battle with the battle of life

 ब्रेन ट्यूमर के चलते बना लेफ्टी, अब भिवानी बोर्ड 12वीं की कक्षा में 500 में से लिए 467 अंक

सच कहूँ/बिन्टू श्योराण नरवाना। जिंदगी की जंग तो जीती ही, साथ में बुलंद हौसलों के साथ लोगों का दिल भी जीत लिया। परिजन इकलौते बेटे की बीमारी से परेशान थे, बीमारी के चलते दायां हाथ तथा पांव ने काम करना बंद कर दिया था। जिसके चलते वह लैफ्टी बन गया, सेल्फ स्टडी कर जब 12वीं कक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो उसी युवक ने 500 में से 467 अंक लेकर खुद को अव्वल साबित कर दिया।

  अब उसी युवक का लक्ष्य लॉ में मास्टर डिग्री हासिल कर ज्यूडीशरी में जाना है। जहां समान रूप से सभी को न्याय दे सकें।  आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल का छात्र सिद्धार्थ भारद्वाज उन छात्रों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने है जो ब्रेन टयूमर से जूझ रहे है। गौरतलब है कि मूलत:सीवन हाल आबाद ब्रह्मा कुमारी कॉलोनी मॉडल टाऊन नरवाना निवासी सिद्धार्थ पिछले तीन साल से ब्रेन टयूमर से जूझ रहा था।

सिद्धार्थ के दायें हाथ तथा पांव ने काम करना बंद कर दिया था। सिद्धार्थ के पिता संजय भारद्वाज तथा मां रश्मिी ने बताया कि इकलौते बेटे की बीमारी ने उन्हें तोड़कर रख दिया था लेकिन बेटे को उन्होंने कभी अहसास नहीं होने दिया। यहां तक की इकलौते चिराग के बीमार होने से उन्होंने नरवाना छोड़ने का मन बना सीवन जाने का निर्णय ले लिया था।  बेटे ने सेल्फ स्टडी की, अच्छा परीक्षा परिणाम आया, सिद्धार्थ की खुद की इच्छा है कि वह ज्यूडशरी की तैयारी करे। जैसा सिद्धार्थ चाहेगा उसी के अनुसार वह अपना कैरियर बनाएगा। ईलाज तथा सिद्धार्थ की बीमारी से लड़ने की इच्छाशक्ति ने काफी मजबूती खुद के साथ-साथ उन्हें दी है। उन्होंने कहा कि दृढ़ इच्छाशक्ति से कोई भी लक्ष्य भेदा जा सकता है।

आर्य कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिस्ट्री के प्राध्यापक उनके पिता संजय भारद्वाज तथा गांव शिमला राजकीय स्कूल में प्राध्यापिका रश्मिी को अपने इकलौते बेटे सिद्धार्थ को ब्रेन ट्यूमर होने का पता चला तो दोनों बुरी तरह टूट गए लेकिन उन्होंने अपने बेटे का हौंसला नहीं टूटने दिया। हालात यहां तक पहुंच गए सिद्धार्थ को चलने, लिखने में दिक्कत हो गई तो उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। सिद्धार्थ के माता-पिता ने लगातार पढ़ाई के लिए उसे प्रोत्साहित किया तो बायें हाथ से लिखना शुरु कर दिया। माता-पिता के सहयोग और इंटरनेट की सहायता से सेल्फ स्टडी शुरु कर दी।

पढ़ाई के लिए माता-पिता ने सिद्धार्थ पर कभी भी दबाव नहीं बनाया। जब भिवानी शिक्षा बोर्ड ने 12वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित किया तो आर्ट संकाय में सिद्धार्थ ने 500 में से 467 अंक प्राप्त कर अपने हौंसले और जज्बे को दिखा दिया। सिद्धार्थ बताते हैं कि जब वह नौंवी कक्षा में था तो उसका हाथ कांपने लगा था। कुछ समय के बाद हाथ के साथ-साथ पांव में भी कंपन होने लगी। फि र दायें हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। परिजन उसे पीजीआई ले गए तो पता चला कि उसे ब्रेन टयूमर है।

माता-पिता ने सहयोग किया, उसने ईलाज लेने के साथ-साथ बीमारी को अनदेखा कर दिया और अपना ध्यान अपने कैरियर तथा पढ़ाई की तरफ रखा। ब्रेन टयूमर घोषित होने के बाद वह स्कूल में नहीं गया, घर बैठकर किताबें तथा इंटरनेट की सहायता से सेल्फ स्टडी की। परीक्षा के बीच में वह तीन दिन बीमार हो गया था, बावजूद इसके वह परीक्षा देने के लिए पहुंचा, जिसका परिणाम सभी के सामने है।

ज्यूडीशरी में जाना लक्ष्य

छात्र सिद्धार्थ भारद्वाज ने कहा कि उसका लक्ष्य एलएलएम कर ज्यूडशरी में जाना है। जिसके लिए वह जी तोड़ मेहनत करेगा, अपनी इच्छाशक्ति के बल पर उसने अपनी बीमारी पर भी काबू पा लिया है। सिद्धार्थ ने कहा कि दृढ़ इच्छा शक्ति और बुलंद हौंसलों से हर तरह की जंग जीती जा सकती है।

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