सियासत और तकनीकी गड़बड़ियों की भेंट चढ़ी दादूपुर नलवी नहर!

Assembly Budget Session

 विधानसभा के बजट सत्र में गूंजता रहा मुद्दा

(Dadupur Nalvi Canal Haryana)

  •  एसवाईएल में पानी आने की सूरत में सरप्लस पानी को अंबाला, कुरुक्षेत्र और यमुनानगर के किसानों को देने के लिए शुरू हुआ था प्रोजेक्ट (Dadupur Nalvi Canal Haryana)

चंडीगढ़ (अनिल कक्कड़)। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा बजट सत्र 2020-21 में दादूपुर नलवी नहर का जिक्र कई विधायकों द्वारा किया गया। रादौर, गुहला एवं अंबाला, कुरुक्षेत्र व यमुनानगर के अन्य हल्कों के विधायकों ने नहर के पक्ष और विपक्ष में कई तर्क पेश किए और नहर पर सरकार से मौजूदा स्थिति पर स्पष्टीकरण भी मांगा। जिस पर सरकार की ओर से बकायदा सदन के पटल पर नहर की मौजूदा स्थिति संबंधी दस्तावेज सदन के पटल पर रखा गया। दादूपुर नलवी नहर प्रोजेक्ट की शुरुआत से लेकर अब तक इसमें काफी सियासत भी हुई और तकनीकी गड़बड़ियां भी हुई। प्रदेश की जनता के गाढ़े कमाई से उगाहे गए टैक्स के कई सौ करोड़ रुपए इस नहर पर बर्बाद किए गए, लेकिन नहर न बन पाई और न ही किसानों को कोई फायदा दे पाई।

दादुपुर नलवी सिंचाई योजना की शुरुआत

दादूपुर नलवी योजना 1985 में शुरू की गई थी। शाहबाद के तत्कालीन माकपा विधायक डॉ. हरनाम सिंह ने इस नहर के निर्माण की मांग तत्कालीन सीएम चौ. देवीलाल के समक्ष की थी। तब यह माना गया था कि एसवाईएल नहर में पानी आने पर पश्चिमी यमुना नहर में पानी सरप्लस हो जाएगा। ऐसी स्थिति में करनाल, कुरुक्षेत्र व यमुनानगर जिलों के लोगों को यह पानी देने के लिए दादूपुर नलवी नहर बनाने का फैसला किया गया।

  • यमुनानगर, कुरुक्षेत्र और अंबाला जिलों में सिंचाई और भू-जल की रिचार्जिंग के लिए 13 करोड़ रुपये की लागत के साथ इस परियोजना को सरकार ने मंजूरी दी थी।
  • इस योजना के लिए 1987-90 के दौरान 190.67 एकड़ जमीन एक्वायर हुई थी, लेकिन इस योजना को आगे नहीं बढ़ाया जा सका।
  • वहीं स्कीम के पुनर्विचार के बाद, 80 के दशक के आखिर में अधिकृत 190.85 एकड़ भूमि सहित कुल 2247.53 एकड़ भूमि की जरूरत थी।

830 एकड़ जमीन हुई एक्वायर

2004 में दादूपुर नलवी नहर के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई। यमुनानगर जिले के दादूपुर से कुरुक्षेत्र के शाहाबाद तक 860 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई। उस समय इसके मुआवजे के तौर पर 166 करोड़ रुपये दिए गए। तत्कालीन भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने पांच लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया, लेकिन किसान इसे कम मुआवजे की बात कहते हुए कोर्ट चले गए।

  • इसके बाद कोर्ट ने 16 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देने को कहा।
  • कुछ गांवों के लोगों की अपील पर कोर्ट ने मुआवजे की दर 2887 रुपये प्रति वर्ग मीटर कर दी।
  • इसके बाद मुआवजा राशि बढ़ती चली गई, जिस कारण इसमें पेंच फंस गया।

हुड्डा सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर इस नहर के पहले चरण को पूरा कर दिया, लेकिन नहर तैयार नहीं हो पाई। वहीं बाकी की लगभग 1227.3427 एकड़ भूमि रजवाहों तथा माइनरों के निर्माण के लिए थी, भू-स्वामी किसानों द्वारा विरोध के कारण अधिकृत नहीं की जा सकी। क्योंकि वे इन चैनलों के निर्माण के लिए अपनी भूमि देने के लिए इच्छुक नहीं थे, जो केवल खरीफ मौसम (वर्षा ऋतु) के दौरान पानी लाते, जब उन्हें उसकी आवश्यकता नहीं होती।

इसलिए फेल हुई परियोजना

कुल परियोजना भूमि की आधी से अधिक का अधिग्रहण न होने के कारण योजना पूर्ण रूप से निष्फल हो गई थी, क्योंकि सिंचाई के लिए प्रस्तावित क्षेत्र के लिए रजवाहों तथा माइनरों के लिए भूमि का अधिग्रहण न होने के कारण पानी की आपूर्ति नहीं हो सकी। भारत के नियंत्रण तथा महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने वर्ष 2011-12 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में सोशल जनल एवं इकोनॉमिक सैक्टर (गैर सार्वजनिक सैक्टर उपक्रम) पर वर्ष 2013 की रिपोर्ट संख्या 3 में अवलोकन किया, जिसमें कहा गया कि परियोजना की उपयोगिता के बारे में विभाग का उत्तर ठोस नहीं था, क्योंकि नहर से सिंचाई प्रदान करने की परियोजना का प्राथमिक उद्देश्य पूरा नहीं हो सका और इसलिए यह योजना निष्फल मानी गई। इसलिए हरियाणा के महाअधिवक्ता की कानूनी राय ली गई, जिन्होंने सुझाव दिया कि भूमि को डी-नोटिफाई किया जाए और भूमि मालिकों को वापिस कर दिया जाएगा।

मनोहर कैबिनेट में जमीन लौटाने का फैसला

27 सितंबर 2017 को कैबिनेट ने मंजूरी दी कि भूमि का इस शर्त के साथ वापिस लिया जाए कि भूमि के मालिकों को जो मुआवजा मिला था वे उसे ब्याज सहित वापिस करेंगे। दादूपुर नलवी सिंचाई योजना की 814.71 एकड़ भूमि का सरकारी अधिसूचना संख्या 2/107/2017-1 आई.डब्ल्यू., दिनांक 3.8.2018 के द्वारा डी-नोटिफाई किया गया था और 5.39225 एकड़ भूमि को सरकारी अधिसूचना संख्या 2/107/2017-1आई.डब्ल्यू दिनांक 11-12-2018 के द्वारा डी-नोटिफाई किया गया। 25 जून 2018 को कैबिनेट की बैठक में इस मामले पर चर्चा हुई और विचार-विमर्श किया गया, जिसमें मूल भूस्वामियों और उनके कानूनन उत्तराधिकारियों को उक्त भूमि को वापिस करने के सरकार के निर्णय करने के बारे में सूचित करने का निर्णय लिया गया।

सरकार ने उन भूस्वामी किसानों के लिए भी साधारण ब्याज माफ करने का फैसला किया है, जो सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के बाद उसके उपयोग या क्षति के लिए मुआवजे का दावा नहीं करते हैं। इस संबंध में सरकार ने आदेश के रूप में सरकारी अधिसूचना संख्या 3/107/2017 1 आई.डब्ल्यू दिनांक 1 जुलाई 2019 को जारी की थी और हरियाणा सरकार के राजपत्र में संख्या नं. 28-2019, चंडीगढ़ से मंगलवार 9 जुलाई, 2019 को प्रकाशित भी की गई।

एक्ट में संशोधन के कारण हुई देरी

काबिलेगौर है कि 27 सितंबर 2017 की कैबिनेट मीटिंग के बाद जो नोटिफिकेशन 25 दिसंबर 2017 को होनी थी। वह दस महीने यानि 311 दिन बाद तीन अगस्त 2018 को हुई। बताया जा रहा है कि हरियाणा के इतिहास में यह पहली बार हुआ है। दरअसल कैबिनेट की मंजूरी के बाद 90 दिन के भीतर नोटिफिकेशन जारी किया जाना अनिवार्य है। लेकिन एक्ट में संशोधन में मंजूरी में देरी के चलते यह लेट हो गया।

नहर बंद करने का फैसला और विपक्ष

बेशक मनोहर सरकार ने पूर्ण तौर पर नहर बंद करने और किसानों को जमीन लौटाने का कड़ा फैसला ले लिया, लेकिन इस पर राजनीति लगातार होती रही। गत दिनों विधानसभा में रादौर से विधायक बिशन लाल सैनी ने साफ कहा कि यह नहर बन कर रहेगी, आज नहीं तो कल बनेगी। लेकिन सत्ता पक्ष ने साफ किया कि यह एक निष्फल प्रोजेक्ट था, जिस कारण यह बंद हुआ।

  • वहीं नहर के इलाकों के ग्रामीण सरकार के साथ खडे दिखाई देते हैं।
  • गोलनी गांव के किसानों ने नहर बंद करने की मांग को लेकर कई बार जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया।
  • ग्रामीणों का कहना है कि इस नहर से क्षेत्र को कभी फायदा नहीं हुआ।
  • नहर में मोड़-तोड़ बहुत ज्यादा हैं और नहर पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर जाती है।
  • तकनीक के हिसाब से ठीक नहीं है।
  • पश्चिम की दिशा में उंचाई होने के कारण नहर का पानी आगे नहीं जाता।
  • जिससे खेतों को नुकसान होता है।

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