स्वच्छ वातावरण को लेकर डेरा सच्चा सौदा की एक ओर अनूठी पहल

Dera Sacha Sauda followers pledge to run pollution free vehicles

साध-संगत ने हाथ खड़े करके लिया प्रण

बरनावा(सच कहूँ न्यूज)। बढ़ते प्रदूषण को लेकर एक बार फिर डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अनूठी पहल की। पूज्य गुरु जी डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक बेपरवाह साई शाह मस्ताना जी महाराज के पाक पवित्र अवतार माह के दौरान आनलाइन गुरुकुल के माध्यम से करोड़ों लोगों को प्रदूषण रहित गाड़ियां चलाने का आह्वान किया। जिसके बाद में समस्त साध-संगत ने हाथ खड़े करके ऐसा करने का प्रण लिया। (Dera Sacha Sauda followers pledge to run pollution free vehicles) जिसके बाद पूज्य गुरु जी ने सभी को अपने पावित्र आशीर्वाद से नवाजा।

बता दें कि इससे पूर्व शनिवार को बरनावा से आनलाइन गुरूकुल के माध्यम से रूहानी सत्संग में किए। इस अवसर पर पूज्य गुरू जी ने ताल स्टेडियम बिजड़ी, हमीरपुर (हिमाचल प्रदेश), मधुबाबा प्रांगण नाथननगर, भागलपुर (बिहार), बुलंदशहर नामचर्चा घर (यूपी), कृष्णा गार्डन, बदरपुर (दिल्ली), ढालमाण नामचर्चा घर सरदारशहर, चुरू (राजस्थान), शाह सतनाम जी धाम, सरसा (हरियाणा) और करनाल नामचर्चा घर (हरियाणा) में भारी तादाद में लोगों का नशा और बुराइयां छुड़वाकर गुरूमंत्र देकर राम, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड, खुदा, रब्ब के नाम से जोड़ा।

सेवादार और साध-संगत हमारे दिल के टुकड़े और आँखों के तारे

हमारे छह करोड़ बच्चे, जो सेवादार ये सेवा करते हैं। दिन-रात लगे रहते हैं। ये घर-घर जाते हैं उनको हाथ जोड़ते हैं कि भाई जी आप चलो, आपका नशा छुड़ाएंगे, बुराइयां छुड़ाएंगे। तो वो सोचते हैं कि इनको कोई कमीशन मिलता होगा। जी नहीं, दुनियावी कमीशन नहीं मिलता, पर जो नर की सेवा करता है तो वो नारायण जरूर झोलियां भरता है। वो राम, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड कभी कमी नहीं छोड़ता। तो ऐसे सेवादार, ऐसी साध-संगत हमारे दिल के टुकड़े हैं, हमारी आँखों के तारे हैं और जान से भी बढ़कर प्यारे हैं।

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‘झुकने का नहीं’ डायलॉग पर क्या बोले पूज्य गुरु जी

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि हो सकता है कि ‘झुकने का नहीं’ का अर्थ कोई और हो, पर आज बच्चे तो उसे हर जगह पर लगा रहे हैं। बोलने वाले ने तो हो सकता है कि अपना कोई मिनिंग (अर्थ) निकाला हो, अपनी जगह पर हो सकता है वो डायलॉग सही हो, जहां से इन्होंने पकड़ा है। लेकिन ये तो हर जगह कहने लगे। अपने बाप को भी झुकने का नहीं, पैरों के हाथ नहीं लगाना। पैसा नहीं देता तो झुकने का नहीं, अकड़ गए सामने खड़े हो गए। ये क्या है? कल्चर किधर जा रहा है हमारा? क्या ये संस्कृति है हमारी? जी नहीं, हमारी संस्कृति सर्वोत्तम संस्कृति है, बड़ों के सामने झुकना और बड़ों का हाथ अपने आप सिर पर आ जाए आशीर्वाद के लिए, ये है हमारी भावना।

छाया: सुशील कुमार

बचपन में हमें माँ-बाप पालते हैं और जब बुजुर्ग हो जाते हैं, हिल नहीं पाते, तो आपका नौ महीने नहीं दो साल तक हो सकता है माँ-बाप ने टट्टी-पेशाब साफ किया हो, तो लास्ट में जाकर अगर माँ-बाप का दो-चार महीने अगर साफ करना पड़ गया तो कौन सी आफत आ गई भाई। ये हमारी संस्कृति है, कि पहले बच्चों का बुजुर्ग साथ देते हैं और फिर बच्चे बुजुर्गों का साथ देते हैं। विदेशों में ये नहीं पाया जाता, पता नहीं किसका बुजुर्ग कहां बैठा है। 8-10 शादियां हो जाती हैं, ना माँ का पता चले ना बाप का। सब जगह ऐसा नहीं है, पर हम जहां गए बहुत जगहों पर ऐसा देखा।

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